खोने के बाद जब जैनी दोबारा मिल गई…

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन ः एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है सत्रहवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

संडे सुबह शहनाज और मल्लिका जल्दी उठकर तैयार हो गए, इस उम्मीद में कि उनके पापा उनसे मिलने आएंगे। अपनी पिछली मुलाकात पर उन्होंने इस बार जैनी को लाने का वादा किया था। बच्चों को प्यार करने के बाद जस्टिस बेग आराम से बैठकर उनसे पूरे हफ्ते की बात पूछते, अपनी बताते और फिर अगले हफ्ते लाने वाले सामान की लिस्ट बनाते। लेकिन यह संडे वैसा नहीं था। इस बार जस्टिस बेग कुछ परेशान लग रहे थे। इंतजार करते बच्चों को देखकर उन्हें अजीब सी बेचैनी होने लगी। ‘क्या हुआ पापा?’ वल्ली ने अपने पापा के परेशान चेहरे को देखकर पूछा। ‘मम्मी ठीक तो हैं न?’ ‘मम्मी ठीक हैं, लेकिन एक बुरी खबर है।’ वह आगे कुछ बोल नहीं पा रहे थे। ‘जैनी कहां है?’ बच्चे अचानक बोल पड़े। ‘मुझे बहुत अफसोस है कि मैंने उसे नवाबगंज स्टेशन पर खो दिया।’ कहते हुए जस्टिस बेग अपने बच्चों से नजरें नहीं मिला पाए। बच्चों की आंखें भर आईं। जैनी सिर्फ पालतू जानवर नहीं थी, वह तो फरिश्ता थी, उनके बोझिल हफ्तों को हल्का बनाकर अगले संडे का इंतजार करने की हिम्मत देती थी। वो दिन फिर कभी लौटकर नहीं आए क्योंकि वह ऐसी दोस्त थी, जो हमसे छुट गई थी। कुछ महीनों बाद एक सुहानी शाम को, जस्टिस बेग इलाहाबाद में शिफ्ट होने से पहले, रेजिडेंसी गार्डन में कुछ पल बिता रहे थे। अचानक उन्होंने दूर बरगद के पेड़ के नीचे एक सुनहरे स्पैनियल कुत्ते को बैठे देखा। जब वह पास आए तो अविश्वास से उनकी सांस ही थम गई। वह जैनी थी। किसी अतिमानवीय प्रेरणा के चालित होकर वह उसी जगह पर पहुंच गई थी, जहां मि. लिटिल उन्हें बच्चों से मिलवाने के लिए लाते थे। जस्टिस बेग तेजी से उसकी तरफ बढ़े। छोटी सी जैनी खड़ी हो गई, वह लंबे सफर से बेहद थक गई थी। जब वह उनकी तरफ बढ़ी, तब जस्टिस बेग ने ध्यान दिया कि वह बहुत कमजोर हो गई थी और बीमार भी थी। जैनी धीरे-धीरे अपनी पूंछ हिला रही थी, वह प्यार से उन्हें चाट रही थी, फिर उसने उनके पैरों में अपना सिर रख दिया और हमेशा-हमेशा के लिए आंखें बंद कर लीं। आज भी जैनी की बात करते हुए मम्मी की आंखों में आंसू आ जाते हैं और मैंने उसके बारे में इतना सुना है कि कभी-कभी तो वह मुझे अपनी ही लगती है, अजीब है न। जिंदगी चलते रहने का नाम है-रुकती नहीं, हमेशा बदलती रहती है और यह विश्वास कि कुछ भी चीज हमेशा नहीं रहेगी, उतना ही सच है जितना दर्द और खुशी। जब बच्चे बोर्डिंग स्कूल के अकेलेपन में जैनी के शोक से उबर रहे थे, तभी उनके सामने एक हैरानी भरा मोड़ आया। एक शाम जब वे चाय व बिस्किट के लिए बैठे थे, तो वार्डन ने उन्हें किसी से मिलने के लिए बुलवाया। शाम की रौशनी में खिड़की के पास उनकी मां खड़ी थीं। वह किसी फरिश्ते की तरह खूबसूरत लग रही थीं।