चंद्रयान तक भारतीय उड़ान

शाबाश…! भारत और इसरो के काबिल 130 वैज्ञानिको! आप सबने घर-परिवार भूलकर एक चुनौतीपूर्ण और मुश्किल मिशन का ऐतिहासिक सफर सफलता से शुरू किया है। आपकी बारीक, सूक्ष्म और पेचीदा इंजीनियरिंग को सलाम। चंद्रयान-2 की इस छलांग के साथ ही आपने कामयाबी का सातवां आसमान छू लिया है। अब हमारा मिशन चांद की ओर अग्रसर होगा। अब ‘चंदा मामा’ दूर का नहीं रहेगा। चंद्रयान-2 भारत की पूरी तरह स्वदेशी उपलब्धि है। यह 135 करोड़ भारतीयों के अरमानों और सपनों की उड़ान है। यह भारत की महाशक्ति बनने के दौर की उड़ान है। यदि मिशन का लैंडर और रोवर 48 दिनों के बाद चांद की सतह, उसके दक्षिणी धु्रव पर उतरने में सफल रहे, तो वह भी भारत और इसरो की ‘अभूतपूर्व उपलब्धि’ होगी। इस सफलता पर संसद के दोनों सदनों ने बधाई दी, प्रधानमंत्री मोदी अपने दफ्तर में उड़ान के पल-पल को देखते रहे और फिर ताली बजाकर वैज्ञानिकों के हुनर की सराहना की। बेशक यह भारत का मिशन है। चांद की धरती पर भारत का तिरंगा स्थापित कर फहराया जाएगा। चांद की सतह पर भारत और इसरो अंकित किया जाएगा। अमरीका,रूस,चीन के बाद भारत विश्व का चौथा देश होगा। यह किसी की निजी उपलब्धि नहीं है। भारत से बढ़कर कोई भी शख्स, संस्था और राजनीतिक दल या सरकार नहीं हो सकते। चंद्रयान-2 के संदर्भ में भी यह कहना पड़ रहा है, क्योंकि उस पर भी राजनीति शुरू की गई है। यह शर्मनाक ही नहीं, राष्ट्र-विरोधी सोच भी है। हम इससे पहले वाले संपादकीय में चंद्रयान-2 की विशेषताएं लिख चुके हैं। तब दुर्भाग्य से मिशन स्थगित करना पड़ा था। लिहाजा आज उन आवाजों पर प्रहार करेंगे, जो इस ऐतिहासिक प्रयास को अपने सियासी पाले में खींचने के लिए उभरी हैं। कुछ आवाजें इसे प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों से जोड़ रही हैं, तो दूसरी ओर कहा जा रहा है कि 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने ही चंद्रयान को मंजूरी दी थी। इतने महान और ऐतिहासिक मिशन पर बधाई देने या गर्व महसूस करने के बजाय कांग्रेस ने ट्वीट किया है कि यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के दूरदर्शी प्रयासों को भी याद करने का समय है, जिनकी कोशिशों से इसरो की स्थापना हुई। एक और बयान इसरो के पूर्व प्रमुख माधवन नायर का है, जिन्होंने बीती जून में ही सार्वजनिक तौर पर कहा था कि देश को चंद्रयान-2 की जरूरत नहीं है। बंद करो इसे। नतीजतन यूपीए सरकार के दौरान, तमाम तैयारियों के बावजूद चंद्रयान-2 पर ढक्कन लगाना पड़ा था। सवाल यह है कि श्रेय लेने वाली राजनीति चंद्रयान-2 पर भी शुरू क्यों हुई है? किसी भी नेता और राजनीतिक दल ने अंतरिक्ष में चांद की सतह तक इस ऐतिहासिक उड़ान का श्रेय नहीं लिया है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्पीकर और सांसदों ने हमारे हुनरमंद और नवोन्मेषी वैज्ञानिकों को ही बधाई दी है। गर्व और सम्मान के एहसास इसरो के साथ ही साझा किए हैं, तो फिर हरेक अप्रतिम उपलब्धि के लिए नेहरू-गांधी परिवार को ही श्रेय क्यों दिया जाए? क्या हर उपलब्धि कांग्रेस के बिना अधूरी है? हर मुद्दे पर कांग्रेसवादी प्रधानमंत्री मोदी को क्यों कोसने लगते हैं? ऐसी राजनीति और सोच पर मन विक्षुब्ध होता है। किसी ने भी ऐसा कब कहा है कि यह प्रधानमंत्री मोदी की उपलब्धि है, प्रधानमंत्री भारत से ऊंचे कब माने गए हैं? प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू के बाद कई प्रधानमंत्री आए हैं। इसरो के चेयरमैन भी बदलते रहे हैं। यदि नेहरू के प्रयासों का श्रेय उन्हें मिलता रहा है, तो मोदी को चंद्रयान-2 का इतना श्रेय क्यों नहीं दिया जाना चाहिए कि उस ऐतिहासिक मिशन के दौरान वह देश के प्रधानमंत्री हैं। चंद्रयान-2 के मिशन पर करीब 978 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। यह राशि जारी करने का आदेश किसने दिया? बहरहाल राजनीति की इस चकचक को छोड़ते हैं और छह-सात सितंबर को होने वाली ऐतिहासिक और अभूतपूर्व घटना के सपनों में खो जाते हैं। भारतीय लैंडर और रोवर चांद के दक्षिणी धु्रव की उस सतह पर उतरेंगे, जहां आज तक कोई देश नहीं गया। वहां अंधकार, गहरे गड्ढे, पत्थर और खूब धूल होगी। उस माहौल में हमारे रोबोट मिट्टी का विश्लेषण करेंगे और डाटा भारत को भेजेंगे। वहां के वातावरण की रपट भेजी जाएगी। चांद पर मौजूद रसायनों का विश्लेषण कर इसरो को भेजा जाएगा। सबसे मानवीय प्रयास यह होगा कि चांद पर जीवन कब तक संभव हो सकेगा। क्या ऐसे मुद्दों पर भी राजनीति की जानी चाहिए?