चंबा का उत्तरी क्षेत्र परगना साही- गुदियाल कहलाता है

चंबा का उत्तरी क्षेत्र परगना साही- गुदियाल कहलाता है।

इस क्षेत्र की उत्तर की शिखर श्रेणियों से प्रभावित होने वाली जलधारा  को होल खड्ड तथा पंचजुंगला की पर्वत श्रेणियों से बहने वाली खड्ड को कीड़ी खड्ड कहा जाता है।  साहल खड्ड अपने में सिल्लाघराट खड्ड तथा छोटी-छोटी अन्य खड्डों को साथ में लेते हुए चंबा के समीप बालू नामक स्थान पर रावी में विलय होती है…

गतांक से आगे …           

भरमौर के सुदूर पूर्व में होली गांव से होकर  बहती हुई रावी नदी खड़ामुख नामक स्थान पर बुड्डल खड्ड को अपने में मिलाती है। इसी  नदी में  मिलने वाली अन्य प्रमुख खड्डों में तुंदा क्षेत्र से बहने वाली ‘खड्ड तुंदैन’ है। तथा औहारा फाटी पर्वत श्रेणियों से बहने वाली खड्डें दुनाली के नाम से जानी जाती है।  ये दोनों खड्डें कलसुई के सपीप रावी नदी में विलीन हो जाती हैं। खजियार की ऊपरी सभी पर्वत श्रेणियों का पानी तीन खड्डों में बंट जाता है। एक खड्ड तो ‘मंगला खड्ड’ कहलाती है, यह चंबा में शीतला पुल के सपीप रावी नदी में मिल जाती है। तीसरी खड्ड खड्ड कहलाती है। तीसरी खड्ड खजियार के पश्चिमी-उत्तरी वनों से बहती हुई चंबा  नगर के निलोरा नामक स्थान पर रावी में मिलती है। चंबा का उत्तरी क्षेत्र परगना साही- गुदियाल कहलाता है। इस क्षेत्र की उत्तर की शिखर श्रेणियों से प्रभावित होने वाली जलधारा को होल खड्ड तथा पंचजुंगला की पर्वत श्रेणियों से बहने वाली खड्ड की कीड़ी खड्ड कहा जाता है। यह साहल खड्ड अपने में सिल्लाघराट खड्ड तथा छोटी-छोटी अन्य खड्डों को साथ में लेते हुए चंबा के समीप बालू नामक स्थान पर रावी में विलय होती है। संधी-झुलाड़ा के शिखरों से प्रवाहित होने वाली जलधारा ‘ईंड-खड्ड’ कहलाती है। यह खड्ड ईंड गांव के नीचे रावी नदी  में मिल जाती है। डलहौजी की पश्चिमी चोटियों से प्रभावति होने वाले पानी को दो खड्डें सृजित करती हैं। इनका नाम है। ‘चनेड खड्ड तथा सरू खड्ड’ ये दोनों क्रमशः भगोत तथा उदयपुर गांव के समीप विलय होती है। डलहौजी की उत्तरी पहाडि़यों से प्रभावित होने वाली जलधारा को बाथरी खड्ड कहते हैं, जो शेरपुर गांव के समीप रावी नदी में मिलती है। बकलोह की पश्चिमीत्तरी पहाडि़यों से प्रवाहित होती हैं। रावी नदी की प्रमुख सहायक खड्ड स्यूल है। चुराह घाटी के समस्त जल स्त्रोत से स्यूल खड्ड का सृजन होता है।