छात्र चुनाव को फिलहाल सरकार की हरी झंडी नहीं

कह गए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर; बिना प्रत्यक्ष चुनावों के ही पूरी हो रही मांगें, एससीए इलेक्शन की जरूरत नहीं

 शिमला —राज्य सरकार ने इस साल भी शिक्षण संस्थानों में एससीए चुनाव पर रेड सिग्नल दे दिया है। सरकार नहीं चाहती कि इस बार एससीए चुनाव हों, यही वजह है कि सोमवार को एचपीयू के स्थापना दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि छात्रों की मांगें बिना प्रत्यक्ष चुनाव के भी पूरी हो रही हैं, इसीलिए अभी प्रत्यक्ष रूप से एससीए चुनाव की कोई जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के इस बयान से प्रदेश विश्वविद्यालय सहित राज्य के सभी शिक्षण संस्थानों के लगभग 30 हजार छात्रों को बड़ा झटका लगा है। बता दें कि लंबे समय से शिक्षण संस्थानों में छात्र नेता एससीए चुनाव की बहाली का इंतजार कर रहे थे। अब जब सरकार ने एससीए चुनाव को अभी न करवाने के संकेत दे दिए हैं, तो साफ है कि वर्तमान भाजपा सरकार भी एससीए चुनाव के मामले पर कांग्रेस की ही राह में चल रही है। हालांकि एचपीयू के प्रोफेसर सिकंदर कुमार ने विश्वविद्यालय में इस बार एससीए चुनाव को लेकर सरकार तक प्रोपोजल ले जाने की भी बात कही थी। फिलहाल अब जब सोमवार को सरकार ने चुनाव को लेकर इनकार कर दिया है, तो देखना होगा कि क्या फिर से विवि प्रशासन इस मामले पर सरकार को विचार करने की मांग करेगा या नहीं। गौर हो कि एचपीयू सहित कालेज छात्रों को लोकतांत्रित अधिकार मिला है, लेकिन वर्तमान में अधिकारों का हनन होता नजर आ रहा है। एससीए चुनाव न होने के पीछे सरकार का छात्र संगठनों द्वारा हिंसात्मक वारदातों को अंजाम देना भी मुख्य कारण रहा है, जिस कारण वर्ष 2014 में विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी मजबूर होकर चुनाव पर रोक लगा दी। प्रदेश में उस वक्त कांग्रेस की सरकार थी और प्रो. एडीएन बाजपेयी वीसी थे। यानी पिछले पांच वर्षों से छात्रों को लोकतांत्रिक अधिकार नहीं मिला। पूर्व वीसी प्रो. एडीएन बाजपेयी ने एससीए चुनाव के लिए नई पहल शुरू की थी, जो सभी छात्र संगठनों को हमेशा से ही अखरा रहा। यानी अप्रत्यक्ष चुनाव करवाकर छात्र प्रतिनिधियों का चयन प्रक्रिया शुरू कर दी। ऐसे चुनाव से एचपीयू कैंपस सहित प्रदेश के सभी कालेजों में सक्रिय छात्र राजनीति नहीं हो रही है। इस पद्धति के तहत होने वाले चुनाव से साफ जाहिर है कि इन छात्र प्रतिनिधियों को राजनीति की एबीसी ही मालूम नहीं। ऐसे अधिकार के खिलाफ छात्र संगठन पिछले पांच सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन सफलता नहीं मिली। बता दें कि एससीए चुनाव में विजयी रहे छात्र प्रतिनिधि छात्रों की मांगें प्रशासन तक पहुंचाते हैं। बताया गया कि एचपीयू प्रशासन ने प्रदेश के सभी कालेज प्रशासनों से राय भी मांगी है।

1995 में छात्र नेता के मर्डर के बाद लगी थी रोक

वर्ष 1995 तक प्रदेश विश्वविद्यालय सहित सभी कालेजों में एससीए चुनाव प्रत्यक्ष तरीके से हो रहे थे। उसी साल कैंपस में एक छात्र नेता का मर्डर हुआ, तो तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने चुनाव पर रोक लगा दी। वर्ष 1995 से अगस्त 2000 तक छात्र संगठनों ने चुनाव बहाली के लिए आंदोलन किया, सरकार के खिलाफ मोर्चा भी खोला और तत्कालीन धूमल सरकार ने बहाल कर दिया। वर्ष 2000 से लेकर लगातार 14 वर्षों तक चुनाव होते रहे। इस दौरान एचपीयू कैंपस में माहौल तनावपूर्ण बना रहा, जिस वजह से पूर्व की वीरभद्र सरकार ने प्रत्यक्ष चुनाव पर रोक लगा दी और अप्रत्यक्ष चुनाव करवाने का फैसला किया।

कब, क्या हुआ

जब-जब भी कांग्रेस की सरकार थी, तब-तब छात्र संघ चुनाव पर रोक लगी। वर्ष 1995 में कांग्रेस की सरकार थी और एससीए चुनाव पर रोक लगा दी। पांच साल तक छात्र संगठनों ने आंदोलन किया। वर्ष 2000 में भाजपा सत्ता में थी और एससीए चुनाव बहाल करवाया। यही नहीं, 2014 में जब कांग्रेस की सरकार थी, तो पूर्व वीसी प्रो. एडीएन बाजपेयी ने चुनावों पर रोक लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उस साल से लेकर अब तक एससीए चुनाव बहाल करवाने के लिए छात्र संगठन आंदोलन की राह पर चले हैं। हिंसक राजनीति से बेबस हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी प्रशासन ने मजबूर होकर प्रत्यक्ष चुनाव पर रोक लगा दी। ऐसे में इस सत्र में छात्र संघ चुनाव करवाने के लिए छात्र संगठनों ने आंदोलन करने की रणनीति तैयार कर दी है।