जब तक दूध दे माता, फिर नहीं कोई नाता

प्रदेश में 25 हजार पहाड़ी गउएं आज भी लावारिस, पशुपालन विभाग के सर्वे में हुआ खुलासा

शिमला -हिमाचल प्रदेश में अभी भी 25 हजार पहाड़ी गाय सड़कों पर घूम रही हैं। हैरत है कि गाय को माता और जब उसी गाय से कोई फायदा नहीं, तो उसे सड़कों पर छोड़ा जा रहा है। पशुपालन विभाग के हाल ही में किए गए सर्वे में खुलासा हुआ है कि राज्य के हर जिला में दूध न देने की सूरत में गाय को सड़कों पर खुले में छोड़ा जा रहा है। ऐसे में जहां आवारा घूम रही गउओं को कई तरह की बीमारियां से जूझना पड़ रहा है, वहीं सड़कों पर इस तरह से आवारा घूम रही गउओें से प्रदेश की छवि भी बिगड़ रही है। बता दें कि हिमाचल में गउओं को गोसदन में रखने के लिए जगह भी कम पड़ गई है। बताया जा रहा है कि पशुपालन विभाग सड़कों में घूम रही गायों को आइडेंटिफाई करने के बाद भी गोसदनों में नहीं रख पा रहे है। प्रदेश के सभी गोसदन पैक हो गए हैं। हालांकि राज्य के पांच से छह ऐसे जिले हैं, जहां पर सबसे ज्यादा गउएं सड़कों पर घूमने को मजबूर हैं। इसमें शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा, बिलासपुर, व हमीरपूर शामिल हैं। यहां पर आवारा घूम रही गउओं के लिए आशियाना मुहैया करवाने में प्रदेश सरकार व पशुपालन विभाग नाकाम रहा है।गौर हो कि प्रदेश सरकार ने पशुपालन विभाग को आदेश जारी किए थे कि हर जिले में जरूरत के हिसाब से गोसदन बनाए जाएं। फिलहाल इस मामले पर अभी त्वरित रूप से कोई भी कार्य नहीं हुआ है।  हालांकि सोमवार को पशुपालन मंत्री ने अधिकारियों के साथ बैठक भी आयोजित की थी। बैठक में गौ संवर्धन को लेकर कई अहम फैसले भी लिए गए थे। इसमें गउओं की सुरक्षा के लिए एक महिला व कर्मचारी को तैनात करने का फैसला लिया गया था। इसके साथ ही करोड़ों का बजट भी नए गोसदन खोलने के लिए स्वीकृत किया गया। इससे पहले कृषि व पशुपालन विभाग को एक साथ ही बजट मिलता था। अब पहली बार ऐसा किया गया है कि पशुपालन विभाग को अलग से केंद्र सरकार से भी मांग के अनुरूप बजट का प्रावधान किया गया है। अहम यह कि बजट की कमी से जूझ रहे पशुपालन विभाग पर आवारा घूम रही गउओं की स्थिति सुधारने की बड़ी जिम्मेदारी है। हिमाचल में पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे में खुलासा हुआ है कि राज्य के जो लोग गउओं का आवारा छोड़ते हैं, उसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों के पास पशुओं को खिलाने के लिए चारा नहीं है।

प्राकृतिक खेती से आकंड़ा कम होने की उम्मीद

प्रदेश में लावारिस गउआों की बढ़ती तादाद को देखते हुए अब केवल प्राकृतिक खेती ही एक ऐसा विकल्प बचा है, जिससे पहाड़ी गउओं को किसानों द्वारा पाला जाए। हालांकि यह भी सत्य है कि जीरो बजट खेती के लिए किसान केवल पहाड़ी गउओं को ही पालेंगे। ऐसे में दस प्रतिशत जर्सी गउओं के लिए गोसदन का निर्माण करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।