जानकारियां

स्कूल जाते वक्त क्यों रोते हैं बच्चे

क्या आप जानते हैं कि कई बच्चे स्कूल जाते वक्त महज इसलिए रोते हैं क्योंकि वह आपसे कुछ कहना चाहते हैं

यूं तो स्कूल के नाम पर सभी बच्चो का पसीना छूटने लगता है और ज्यादातर बच्चे स्कूल जाने के नाम पर रोने लगते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई बच्चे स्कूल जाते वक्त महज इसलिए रोते हैं क्योंकि वह आपसे कुछ कहना चाहते हैं। बच्चो के स्कूल में रोने के कई कारण हो सकते हैं। कई बच्चो को सुबह-सुबह जल्दी उठने या नींद खराब होने से भी रोना आता है जिससे वह स्कूल जाने से कतराने लगते हैं। कुछ बच्चे किसी दूसरे बच्चे के कारण स्कूल जाने में आना-कानी करते हैं यानी आपका बच्चा किसी दूसरे बच्चे द्वारा सताया जा रहा है और आपका बच्चा उसका ठीक से मुकाबला नहीं कर पाता। कई बार बच्चे स्कूल से माहौल से भागने लगते हैं या फिर बच्चे को स्कूल का माहौल रास नहीं आता, तो वह स्कूल जाने से रोने लगते हैं। और भी हो सकते हैं कारण कुछ बच्चो में आत्मविश्वास की कमी होती है या फिर कई बच्चो में मोटापा होने के कारण उन्हें लोगों की नजरों में आना पसंद नहीं जिससे वह टीचर के किसी भी सवाल का जवाब देने से घबराते हैं, ऐसे में वह टीचर के सामने जाते ही रोने लगते हैं। कुछ बच्चे जो कि अन्य बच्चो से बहुत तेज होते हैं अपनी किसी गलती को छिपाने के लिए या फिर दूसरों का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए भी रोना शुरू कर देते हैं। कई बार बच्चे को कोई बीमारी या तकलीफ  होती है या फिर स्कूल की किसी एक्टिविटी से परेशानी होते हैं, लेकिन टीचर के डर से कह नहीं पाते। ऐसे में बच्चे स्कूल जाते ही रोने लगते हैं। इसलिए आप अपने बच्चो से गुस्सा मत हो उसकी तकलीफ को समझो और उसका उपाय सुझाओ।

आकाशवाणी की ओपनिंग धुन किस संगीतकार ने बनाई और कब

इस बारे में कई तरह की बातें हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि इसे ठाकुर बलवंत सिंह ने बनाया कुछ मानते हैं कि पं रविशंकर ने इसकी रचना की और कुछ लोग वॉयलिन वादक वीजी जोग को इसका रचेता मानते हैं। संभव है इसमें इन सबका योगदान हो, पर इसकी रचना का श्रेय चेकोस्लोवाकिया के बोहीमिया इलाके के संगीतकार वॉल्टर काफमैन को जाता है। इसकी रचना तीस के दशक में हुई होगी। कम से कम 1936 से यह अस्तित्व में है। वॉल्टर काफमैन उस वक्त मुंबई में ऑल इंडिया रेडियो के पश्चिमी संगीत विभाग में कंपोजर का काम कर रहे थे।  इस धुन में तानपूरा, वायोला और वॉयलिन का इस्तेमाल हुआ है। वॉल्टर कॉफमैन को यूरोप की राजनीतिक स्थितियों के कारण घर से बाहर आना पड़ा। वह अंततः अमरीका में बसे, पर भारत में भी रहे और यहां के संगीत का उन्होंने अध्ययन किया। कहा जाता है कि उनके एक सोनाटा यानी बंदिश या रचना में यह धुन भी थी। कॉफमैन ने इसमें कुछ बदलाव भी किया। इस रचना में वॉयलिन जुबिन मेहता के पिता मेहली मेहता ने बजाया है। कुछ लोगों का कहना है कि यह राग शिवरंजिनी में निबद्ध है।