नृत्य से ज्यादा सुगम

ओशो

परमात्मा नटराज है। निश्चित ही मैं नृत्य की बात करता हूं क्योंकि मेरे लिए नृत्य ही पूजा है। नृत्य ही ध्यान है।  नृत्य से ज्यादा सुगम कोई उपाय नहीं, सहज कोई समाधि नहीं। नृत्य सुगमतम है, सरलतम है। क्योंकि जितनी आसानी से तुम अपने अहंकार को नृत्य में विगलित कर पाते हो उतना किसी और चीज में कभी नहीं कर पाते। नाच सको अगर दिल भरकर तो मिट जाओगे। नाचने में मिट जाओगे। नाच विस्मरण का अद्भुत मार्ग है, अद्भुत कीमिया है और नाच की और भी खूबी है कि जैसे-जैसे तुम नाचोगे, तुम्हारी जीवन ऊर्जा प्रवाहित होगी। तुम जड़ हो गए हो। तुम सरिता होने को पैदा हुए थे, गंदे सरोवर हो गए हो। तुम बहने को पैदा हुए थे, तुम बंद हो गए हो। तुम्हारी जीवन ऊर्जा फिर बहनी चाहिए, फिर झरनी चाहिए। फिर उठनी चाहिए तरंगें। नाचने का अर्थ, तुम्हारी ऊर्जा बहे। तुम जमे-जमे मत खड़े रहो, पिघलो। तरंगायित होओ। गत्यात्मक होओ। दूसरी बात नाच में अचानक ही तुम प्रसन्न हो जाते हो। उदास आदमी भी नाचना शुरू करे, थोड़ी देर में पाएगा, उदासी से हाथ छूट गया। क्योंकि उदास होना और नाचना साथ-साथ चलते नहीं। रोता आदमी भी नाचना शुरू  करे, थोड़ी देर में पाएगा आंसू धीरे-धीरे मुस्कराहटों में बदल गए। नृत्य दुख जानता ही नहीं। नृत्य आनंद ही जानता है।  इसीलिए तो हिंदुओं ने परमेश्वर के परम रूप को नटराज कहा है, कृष्ण को नाच की मुद्रा में, होंठो पर बांसुरी रखे, मोर मुकुट बांधे चित्रित किया है। जरा वृक्षों को देखो, पक्षियों को देखो। सुनते हो यह पक्षियों का कलरव। फूलों को देखो, चांद-तारों को देखो। विराट नृत्य चल रहा है। रास चल रहा है। यह अखंड रास। तुम इसमें भागीदार हो जाओ। पूछा है तुमने, नृत्य कब घटित होता है। नृत्य तब घटित होता है जब नर्तक मिट जाता है। नृत्य तब घटित होता है जब नाच तो होता है, तुम नहीं होते। नाचने वाला नहीं होता। पश्चिम का बहुत बड़ा नर्तक हुआ निजिंस्की। ऐसा नर्तक कहते हैं मनुष्य जाति के इतिहास में शायद दूसरा नहीं हुआ है। उसकी कुछ अपूर्व बातें थीं। एक अपूर्व बात तो यह थी कि जब वह नृत्य की ठीक-ठीक दशा में आ जाता था, जिसको मैं नृत्य की दशा कह रहा हूं, जब नर्तक मिट जाता है, तो निजिंस्की ऐसी छलांगें भरता था कि वैज्ञानिक चकित हो जाते थे। क्योंकि गुरुत्वाकषर्ण के कारण वैसी छलांगें हो ही नहीं सकतीं और साधारण अवस्था में निजिंस्की भी वैसी छलांगें नहीं भर सकता था। उसने कई दफा कोशिश करके देख ली थी। अपनी तरफ  से भी उसने कोशिश करके देख ली थी, हर बार हार जाता था। जब उससे किसी ने पूछा कि इसका राज क्या है? उसने कहा, मुझसे मत पूछो। मुझे खुद ही पता नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब आप अपने मन में किसी चीज को ठान लो, तो तब तक मत रुको जब तक तुम उस तक पहुंच नहीं जाते। जब आप किसी चीज का बार-बार अभ्यास करते हो, तो वह तुम्हारी आदत बन जाती है। अर्जुन ने भी इसी लक्ष्य को साध कर निशाना लगाया था। बाकी सब को अपना लक्ष्य साधना नहीं आया, इसलिए वे अपन मार्ग से भटक गए।