प्राकृतिक खेती से खुशहाल होंगे किसान

नौणी -प्राकृतिक खेती अपनाने से किसानों की आय में काफी वृद्धि हो सकती है और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को भी पूरा करने में मद्दगार साबित होगी। प्राकृतिक खेती के जनक सुभाष पालेकर ने यह विचार डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. परविंदर कौशल के साथ बैठक में व्यक्त किए। इस बैठक में हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती तकनीक को बढ़ावा देने पर बातचीत की गई, ताकि राज्य के किसान न्यूनतम इनपुट लागत से अपनी आय में बढ़ावा कर सकें। मूलरूप से महाराष्ट्र के निवासी सुभाष पालेकर लगभग 20 वर्षों से अपनी प्राकृतिक खेती पद्धति का प्रचार और प्रसार कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्र में इस पद्धति के ऊपर काफी कार्य किया। इस मॉडल को पिछले साल सुभाष पालेकर प्राकृतिक कृषि का नाम दिया गया। इस मॉडल में हिमाचल सहित कई राज्यों ने रुचि दिखाई है। हिमाचल सरकार द्वारा ‘प्राकृतिक खेती-खुशहाल किसान’ कार्यक्रम के तहत हजारों किसानों को इस कृषि मॉडल में प्रशिक्षित भी किया जा रहा है। शनिवार शाम को सोलन में हुई बैठक के दौरान, पद्मश्री पुरस्कार विजेता सुभाष पालेकर ने कहा कि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य मिलना चाहिए और प्राकृतिक उत्पादों से अच्छे दाम मिलने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती को अपनाने से उपभोक्ताओं को प्राकृतिक और स्वस्थ भोजन की आसान उपलब्धता होगी और कृषि गतिविधियों में रसायनों के उपयोग पर निर्भरता कम होगी, जिससे इनपुट लागत में कमी आएगी। उनके अनुसार ऋण माफी लंबे समय तक संभव नहीं है और इससे किसान की निर्भरता भी ठीक नहीं है। इसके बजाय स्थायी ऋण मुक्ति की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए। इस कृषि मॉडल को हाल ही में एक बड़ा बढ़ावा मिला, जब इस वर्ष के बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस विधि का उल्लेख एक ऐसे मॉडल के रूप में किया, जिसके माध्यम से किसानों की आय वर्ष 2022 तक दोगुनी की जा सकती है। डा. कौशल ने सुभाष पालेकर को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय राज्य के किसानों के बीच प्राकृतिक कृषि पद्धति के व्यवस्थित प्रसार के लिए राज्य में विभिन्न स्थानों पर स्थित कृषि विज्ञान केंद्रों में प्रदर्शन मॉडल स्थापित करके प्राकृतिक कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने का भरपूर प्रयास करेगा।