ब्यास नदी के किनारे किसी समय औट दो-तीन घरों का और वैसा ही थलौट गांव बसा था। पंडोह क्षेत्र, ब्यास नदी , बाखली और जिऊणी खड्डों का संगम स्थल होने से काफी खुला स्थान है, अतः वहां काफी पुराने समय से बस्ती रही है। उसके बाद वर्तमान मंडी नगर वाला स्थान प्राचीन काल से आदमी का निवास स्थल रहा है…
गतांक से आगे …
सरयाल नदी पार की उत्तर की ओर की ढलानों का पानी मैंगल, द्रंग, नारला, गुम्मा और जोगिदं्रनगर की ‘रणा खड्ड’ आदि में बहता हुआ ब्यास नदी में पहुंचता है। ब्यास नदी के किनारे किसी समय औट दो-तीन घरों का और वैसा ही थलौट गांव बसा था। पंडोह, क्षेत्र ब्यास नदी , बाखली और जिऊणी खड्डों का संगम स्थल होने से काफी खुला स्थान है, अतः वहां काफी पुराने समय से बस्ती रही है। उसके बाद वर्तमान मंडी नगर वाला स्थान प्राचीन काल से आदमी का निवास स्थल रही है। मनाली से लौट तक के भाग में ब्यास नदी अपेक्षाकृत खुली उपत्यका के बीच से बहती है। इस क्षेत्र में मनाली से लौट तक के भाग में ब्यास नदी नग्गर, कटराई, कुल्लू, भुंतर, बजौरा नगवाई आदि गांव व शहर इसके दाएं और बाएं तटों आसपास समय-समय पर बसते व उजड़ते भी रहे हैं और पुनः आबाद होते रहे हैं ब्यास नदी का जल सिंचाई के लिए औट से हारसीपतन तक ही प्रायः काम नहं आता रहा जबकि सहायक शाखाओं में से लारजी के अलावा सभी से सुविधाजनक स्थानों/ क्षेत्रों में कूहलें निकाली मिलती हैं। औट से मंडी नगर तक औट और थलौट के छोटे-छोटे गांव ही ब्यास के तट के पास बसे मिलते हैं। ये भी तब जब पठानकोट मंडी-कुल्लू मनाली सड़क का निर्माझा हुआ। ब्यास नदी के तट क्षेत्र के साथ पंडोह ब्यास बाखली और जिउणी खड़डों का संगम स्थल होने से दो-तीन किलोमीटर भाग में कुछ खुला और समतल क्षेत्र है। सन 1963 ईसवी में ब्यास नदी के जल को सुरंगों द्वारा सतलुज नदी में मिलाने और उसके प्रोजैक्ट के नाम से आरंभ किया गया कुछ वर्ष पूर्व से ब्यास नदी की सहायक नदियों पार्वती और लारजी पर भी जल-विद्युत परियोजनाओं का काम शुरू हुआ और औट तथा थलौट भी उपनगर बन गए। मंडी जिले से निकलने के बाद संधोल के आसपास ब्यास नदी जिला कांगड़ा घाटी के संगूर क्षेत्र में प्रवेश करती है। यहीं पर हारसी के निकट त्रिवेणी स्थान पर ब्यास नदी और बिनवा नदी का संगम होता है।