भयावह जल संकट का दौर

डा. वरिंदर भाटिया

पूर्व कालेज प्रिंसीपल

देश के अनेक राज्य भू-जल की कमी से त्रस्त हैं। देश में जल संकट पर अब सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री ने 30 जून को मन की बात प्रोग्राम में इस पर चर्चा की कि देश के काफी राज्य इससे भयभीत हैं। हाल ही में जब राज्यसभा में जल संकट पर चर्चा हुई, तो एक सांसद ने तो इतना कह दिया कि चेन्नई में आज पानी से सस्ता सोना है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक देश में कई शहरों में पानी खत्म होने की कगार पर आ जाएगा। साथ ही देश की 40 प्रतिशत आबादी के पास पीने का पानी नहीं होगा। इनमें दिल्ली, बेंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद समेत देश के 21 शहर शामिल हैं। अंदाजों के अनुसार समस्त जल राशि का लगभग 97.5 प्रतिशत भाग खारा है और शेष 2.5 प्रतिशत भाग मीठा है। इस मीठे जल का 75 प्रतिशत भाग हिमखंडों के रूप में, 24.5 प्रतिशत भाग भू-जल, 0.03 प्रतिशत भाग नदियों, 0.34 प्रतिशत झीलों एवं 0.06 प्रतिशत भाग वायुमंडल में विद्यमान है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का 0.3 प्रतिशत भाग ही साफ एवं शुद्ध है।  जल मनुष्य ही नहीं, अपितु समस्त जीव जंतुओं एवं वनस्पतियों के लिए एक जीवनदायी तत्त्व है। जब से पृथ्वी बनी है, पानी का उपयोग हो रहा है। ज्यों-ज्यों पृथ्वी की आबादी में वृद्धि एवं सभ्यता का विकास होता जा रहा है, पानी का खर्च बढ़ता जा रहा है। आधुनिक शहरी परिवार प्राचीन खेतिहर परिवार के मुकाबले छह गुना पानी अधिक खर्च करता है। संयुक्त राष्ट्र संगठन का मानना है कि विश्व के 20 प्रतिशत लोगों को पानी उपलब्ध नहीं है और लगभग 50 प्रतिशत लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं है। इसलिए मानव जाति को वर्तमान एवं भावी पीढ़ी को इस खतरे से बचाने के लिए जल संरक्षण के उपायों पर सबसे अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। बोरिंग अथवा नलकूपों के माध्यम से अत्यधिक पानी निकालकर हम कुदरती भू-गर्भ जल भंडार को लगातार खाली कर रहे हैं। शहरों में कंक्रीट का जाल बिछ जाने के कारण बारिश के पानी के रिसकर भू-गर्भ में पहुंचने की संभावना कम होती जा रही है। इन परिस्थितियों में हम वर्षा के जल को भू-गर्भ जलस्रोतों में पहुंचाकर जल की भूमिगत रिचार्जिंग कर सकते हैं। वर्षाजल को एकत्रित करने की प्रणाली चार हजार वर्ष पुरानी है। जल संरक्षण के छोटे व आसान तरीके हैं। घर के लॉन को कच्चा रखें, घर के बाहर सड़कों के किनारे कच्चे रखें अथवा लूज स्टोन पेवमेंट का निर्माण करें। पार्कों में रिचार्ज ट्रेंच बनाई जाएं, औद्योगिक प्रयोग में लाए गए जल का शोधन करके उसका पुन: उपयोग करें। मोटर गैराज में गाडिय़ों की धुलाई से निकलने वाले जल की सफाई करके पुन: प्रयोग में लाएं। वाटर पार्क और होटल में प्रयुक्त होने वाले जल का उपचार करके बार-बार प्रयोग में लाएं। होटल, निजी अस्पताल, नर्सिंग होम्स व उद्योग आदि में वर्षाजल का संग्रहण कर टायलट, बागबानी में उस पानी का प्रयोग करें। भू-जल की समस्या को हल्के  से नहीं लिया जाना चाहिए। हमारी विद्या संस्थाओं, स्वयं सेवी संगठनों को और राजनीतिक पार्टियों को भी अपने सामाजिक एजेंडे में भू-जल के सदुपयोग के बारे में जागृत करना चाहिए। यह जल संकट देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर देगा। इसकी वजह से जीडीपी को छह प्रतिशत का नुकसान होगा। रिपोर्ट के अनुसार 2020 से ही पानी की परेशानी शुरू हो जाएगी। यानी कुछ समय बाद ही करीब 10 करोड़ लोग पानी के कारण परेशानी उठाएंगे। 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। इसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा। बढ़ते जलसंकट का असर पांच जुलाई को पेश होने वाले बजट में भी दिख सकता है। जानकारी के मुताबिक सरकार घर-घर तक पानी पहुंचाने और जल संचय को बढ़ावा देने के लिए खास ऐलान कर सकती है। ऐसा लगता है कि जल संकट दूर करने के लिए बजट में खास एलान संभव है। इसके लिए नीरांचल योजना के तहत फंड बढ़ सकता है। इसके अलावा बारिश के पानी का संचय बढ़ाने पर खर्च बढ़ सकता है। हर घर जल योजना के लिए रकम बढ़ाई जा सकती है। सरकार का फोकस 2024 तक हर घर तक पानी पहुंचाने पर है। पहले गांवों और शहरों में तालाब और पोखर हुआ करते थे। हमने उन्हें पाटकर प्लाट काट दिए और घर बना लिए। आबादी बढऩे के कारण पेयजल का दोहन भी हमने जारी रखा। नतीजतन भू-जल स्तर तेज गति से नीचे खिसक रहा है। करीब 15 साल पहले केंद्र सरकार ने वर्षा जल संरक्षण के लिए कुछ प्रयास किए थे, लेकिन बाद में कागजी साबित हुए। समूचे हिंदुस्तान का भू-जल लगातार घट रहा है। देश का 72 फीसदी हिस्सा चिंताजनक क्षेत्र के तहत आता है, जहां भू-जल का जरूरत से ज्यादा दोहन किया जा रहा है। ईमानदारी से आज तक किसी ने जल संचयन और जलाशयों को भरने के तरीकों को आजमाने की परवाह नहीं की। बारिश का पानी बर्बाद न हो, इसके लिए भारत में कई जगहों पर जलाशय बनाए गए, पर आज वह सभी जलाशय सूखे पड़े हैं। जल संकट से निपटने के लिए कई जगहों पर विशाल जलाशय बनाए गए थे। उनको सिंचाई, विद्युत और पेयजल की सुविधा के लिए हजारों एकड़ वन और सैकड़ों बस्तियों को उजाड़कर बनाया गया था, मगर वे भी दम तोड़ रहे हैं। केंद्रीय जल आयोग ने इन तालाबों में जल उपलब्धतता के जो ताजा आंकड़े दिए हैं, उनसे साफ जाहिर होता है कि आने वाले समय में पानी और बिजली की भयावह स्थिति सामने आने वाली है। इन आंकड़ों से यह साबित होता है कि जलापूर्ति विशालकाय जलाशयों (बांध) की बजाय जल प्रबंधन के लघु और पारंपरिक उपायों से ही संभव है, न कि जंगल और बस्तियां उजाड़कर। बड़े बांधों के अस्तित्व में आने से जल के अक्षय स्रोत को एक छोर से दूसरे छोर तक प्रवाहित रखने वाली नदियों का वर्चस्व खतरे में पड़ गया है। जल संकट से निपटने के लिए नीति आयोग ने करीब 450 नदियों को आपस में जोडऩे का एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार किया है। बरसात में या उसके बाद बहुत सी नदियों का पानी समुद्र में जा गिरता है। समय रहते इस पानी को उन नदियों में ले जाया जाए, तो स्थिति बेहतर होगी। जल संरक्षण पर यदि हमारा नजरिया लापरवाही वाला रहा, तो एक दिन देश के लोग पानी की कमी से ऐसे तड़पेंगे, जैसे जल बिन मछली।