मृत्युंजय जप कैसे करें

अर्थात तुम्हीं विश्वजननी मूलप्रकृति ईश्वरी हो, तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिक बन जाती हो। हालांकि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो, तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो। तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परमतेजः स्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने के हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वबीजस्वरूपा, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्वमंगलोकी भी मंगल हो…

-गतांक से आगे…

स्वयं भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-

त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।

त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका।।

कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गणा स्वयम।

परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सतनातनी।।

तेजः स्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रह।

सर्वस्वरूपा सवैशा सर्वाधारा परात्परा।।

सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।

सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमग्डलग्डला।।

अर्थात तुम्हीं विश्वजननी मूलप्रकृति ईश्वरी हो, तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिक बन जाती हो। हालांकि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो, तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो। तुम परब्रह्मस्वरूप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो। परमतेजः स्वरूप और भक्तों पर अनुग्रह करने के हेतु शरीर धारण करती हो। तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी, सर्वाधार एवं परात्पर हो। तुम सर्वबीजस्वरूपा, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो। तुम सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करने वाली एवं सर्वमंगलोकी भी मंगल हो। उपनिषदों में इन्हीं को पराशक्ति के नाम से कहा गया है। उस पराशक्ति से ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उत्पन्न हुए। उसी से सब मरूद्गण, गंधर्व, अप्सराएं और बाजा बजाने वाले किन्नर सब ओर से उत्पन्न हुए। समस्त योग्य पदार्थ और अंडज, स्वेदज, जरायुज, जो कुछ भी स्थावर मनुष्यादि प्राणीमात्र है, सब उसी पराशक्ति से उत्पन्न हुए हैं। ऐसी वह पराशक्ति है। इसी तत्त्व को ऋग्वेदोक्त देवीसूक्त में आभूषण ऋषि की वाड्नाम्नी कन्या के मुख से स्वयं परम्बा प्रकट करती है।

ओउम अहं रुद्रेर्विसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः।

अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यमिंद्राग्नी अहमश्विनोभा।।

मैं एकादश रुद्र रूप से विचरण करती हूं, मैं सब वसुओं के रूप में अवस्थान करती हूं, मैं विष्णु आदि द्वादश आदित्य होकर विचरण करती हूं, मैं ही समस्त देवताओं के रूप में अवस्थान करती हूं, मैं ही आत्मा के रूप में अवस्थान करके मित्र और वरुण को धारण करती हूं। मैं ही इंद्र एवं अग्नि को धारण करती हूं। मैंने ही दोनों अश्विनी कुमारों को धारण कर रखा है।