श्री गोरख महापुराण

मछेंद्रनाथ बोले, मैं तो यती नाम से प्रसिद्ध होऊंगा ही, पर मेरे मन में एक शंका है। हनुमानजी मुस्करा कर बोले, क्या? तब योगीराज ने कहा , आपने त्रिकालदशी होकर मेरे से वाद-विवाद क्यों किया? आपसे मेरी पहली भेंट नागाश्वत्थ वृक्ष के तले हुई थी। उस समय सांवर विद्या की कविता लिखवाकर आपने ही मुझे वरदान दिया था। ये सब जानते हुए वृथा झमेला क्यों किया? इतना सुन हनुमानजी बोले कि  जब आप समुद्र में स्नान कर रहे थे तभी मैंने आपको पहचान लिया था कि आप ही कवि नारायण के अवतार हो और आपने मछली के गर्भ में जन्म धारण किया है। मुझे यह सब विदित है। परंतु मेरे मन में यह विचार आया कि नागश्वत्य वृक्ष के नीचे देवताओं ने वरदान दिए, उनमें कितनी शक्ति है? इसके अलावा अभी आपको काफी संकटों का सामना करना है और मैं जांचना चाहता था आपमें कितनी शक्ति है। फिर हनुमानजी कहने लगे, अब तुम त्रिया राज्य में चले जाओ और वहां आराम से रहो। आपकी और मेरी भेंट वृथा नहीं हुई। आपके कारण मेरा सारा बोझ हल्का हो गया। मछेंद्रनाथ बोले, वह किस प्रकार? हनुमान जी ने कहा, जब हम रावण को मार लंका को जीत कर श्रीराम सीता के संग आ रहे थे तब जानकी जी ने कहा, हनुमान रामजी का परम भक्त है इसलिए इसकी शादी करवा, संतति और संपत्ति दोनों का सुख पहुंचाऊंगी, लेकिन इस कार्य के लिए उसका राजी होना कठिन है। जब जानकी जी के मन में ऐसी शंका हुई तो उन्होंने मुझे गृहस्थी बनाने के लिए अपने पास बुलाया और पहले वचनबद्ध करने के लिए बड़े प्रेम से बोली, बेटा हनुमान जी! तुम तीनों में धन्य हो। मैं तुम से एक वचन मांगना चाहती हूं। बोलो दोगे? जानकी जी के वचन सुन मुझे संतोष हुआ और मैंने कहा, ऐसा कौन सा काम है? लेकिन वचन लिए बिना वह बताने को तैयार नहीं हुई। फिर मैंने सोचा माता की आज्ञा मानना मेरा परम कर्त्तव्य है। ये मेरा भला ही करेंगी। बुरा तो बेटे का मां सपने में भी नहीं सोचती। ये समझ मैंने उनकी आज्ञा मानना स्वीकार कर लिया। तब उन्होंने मुझे शादी रचा गृहस्थी बनाने को बाध्य किया। स्त्री सुख भोगने से संकट में पड़ूंगा। ऐसा सोच मैं उदास हो गया। तब माता जानकी जी मेरी तरफ क्रोध की दृष्टि से देख कर बोलीं, हनुमान! तुम जरा भी मत घबराओ। त्रिया राज्य की सारी नारियां तुम्हारी  होंगी। मुझे और तुम्हें चार युगों के बाद बार-बार जन्म लेना पड़ता है। मेरे और रामजी के निन्यानवें जन्म हो चुके हैं और तुम भी निन्यानवें हनुमान हो। रावण भी निन्यानवा था। उसके मर जाने के बाद अब तुम्हें त्रिया राज्य में जाना होगा। अब वह समय आ पहुंचा है। समय के अनुसार चलना हर इंसान का परम धर्म है। जब भगवान राम ने मेरी और देखा तब मैंने हाथ जोड़ कर कहा, प्रभु! ब्रह्मचर्य व्रत का पालन मेरा दृढ़ निश्चय है। तब त्रिया राज्य में जाने से उनको क्या लाभ होगा? इतना सुन भगवान राम बोले, तुम उध्वरिस हो इसलिए भू भूःकार करने से वहां की नारियां गर्भवती हो जाएंगी। इसलिए तुम अपने मन से चिंता बिसार दो और त्रिया राज्य जाया करो। इस तरह तुम्हारा ब्रह्मचर्य व्रत भी बना रहेगा। अतः भगवान राम के कहने से मैं त्रिया राज्य गया। वहां की महारानी का नाम मैनाकिनी है। यहां पृथ्वी भर के पशु पक्षी, नर-नारी एकसाथ रहते थे। ये सब सुनकर रानी का शरीर गुस्से में चूर हो गया। मेरे साथ रहने के लिए उसने अनुष्ठान करना शुरू कर दिया और अपने शरीर के मांस को काट-काट कर अग्निकुंड में मंत्रों द्वारा आहुतियां डालना शुरू कर दीं। उसका यह अनुष्ठान बारह वर्ष तक चला। जब उसका मांस समाप्त होने पर आ गया और दृढ़ निश्चय में फर्क न पड़ा तब मुझे उस पर प्रसन्न हो दर्शन देने पड़े। वह मेरे पैरों पर गिर पड़ी और अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करने लगी।