श्री गोरख महापुराण

जब मछेंद्रनाथ देवी द्वार पर दर्शनों को पहुंचे, तो दरवाजे पर मध प्रतापी, अष्ट भैरव को खड़े पाया। उन्होंने मछेंद्रनाथ को देखते ही पहचान लिया कि इन्होंने सावरी मंत्र के प्रभाव से नागपाश अवस्था में पेड़ के नीचे सब देवताओं को वशीभूत कर उनसे वरदान प्राप्त किए हैं और इनका कार्य कहां तक सिद्ध हुआ देखना चाहिए। ऐसे विचार कर भैरव अपना भेष बदल संन्यासी बन दरवाजे पर अड़कर खड़ा हो गया और मछेंद्रनाथ से बोला, ‘कहां जा रहे हो…

तब मैंने पूछा, रानी!’ तुम्हारी जो भी मनोकामना हो मुझसे कहो।’ मैनाकिनी बोली, ‘हनुमान जी!’ आपके भूभूःकार से यहां की सभी नारियां गर्भवती हो जाती हैं और आप सब के प्राणनाथ कहलाते हो, परंतु मेरी इच्छा प्रत्यक्ष मैथुन की पद्धति का प्रचलन त्रिभुवन में प्रचलित है और हमें वह सपने में भी नसीब नहीं। इसलिए आप मुझे प्रणाम किया करें।  इस प्रकार का प्रस्ताव उसने मेरे सम्मुख रखा। तब मैंने उसे समझाया कि-‘मैं अखंड ब्रह्मचारी हूं और तुम कहती हो ऐसा प्रचलन तीनों लोकों में है। इसलिए मैं आपकी इच्छापूर्ति करने में असमर्थ हूं।  मेरे सांस द्वारा तुम लोगों को जितनी तुप्ति होती है काम शांत करने को उतनी ही पर्याप्त है। इससे अधिक इच्छापूर्ति के लिए यहां मछेंद्रनाथ आएंगे तब अपनी इच्छापूर्ति कर लेना। वह साक्षात कवि नारायण के अवतार हैं।  इस तरह उसे धीरज बंधा और अब आप वहां पहुंच रानी की मनोकामना पूर्ण कर राज्य सुख भोगो। ऐसी भामिनी देवताओं को मिलनी भी दुर्लभ है।’ हनुमान जी की वार्ता सुन मछेंद्रनाथ बोले। ‘मैं भी ऊर्ध्वरेत हूं। मेरा ब्रह्मचार्य खंडित हो जाएगा और दुनिया भर में भारी बदनामी फैलेगी।  इसलिए यह पाप कर्म मुझसे क्यों करवाते हो? वैसे भी नारी का संग नरक में ले जाता है, इसलिए मैं भी ऐसे काम को तैयार नहीं हूं।’ मछेंद्रनाथ की बात सुन हनुमान जी बोले, ‘अनाविकाल से जो रीति चली आ रही है, उसमें पाप कैसा? जिस तरह निन्यानवां हनमान, उसी तरह मछेंद्रनाथ। इसी क्रम से मोनोनाथ का जन्म आपके द्वारा होता आया है आप घबराएं नहीं। आपकी कीर्ति सूर्य के समान ही चमकेगी।’ हनुमान जी ने उन्हें इस प्रकार समझाकर उन्हें त्रिया राज्य में भेजने को राजी कर लिया और मछेंद्रनाथ भी हनुमान जी की आज्ञा का उल्लंघन न कर सके और दोनों संत एक-दूसरे को नमस्कार कर अपने-अपने रास्ते चल पड़े। सेतुबंध रामेश्श्वर से मछेंद्रनाथ हनुमान जी को नमस्कार कर हिंग्लाज देवी के दर्शनों को गए। वह ज्वाला देवी भगवती जहां अदीप्त आदि शक्तियां हैं  मछेंद्रनाथ वहां जा पहुंचे। जब मछेंद्रनाथ देवी द्वार पर दर्शनों को पहुंचे, तो दरवाजे पर मध प्रतापी, अष्ट भैरव को खड़े पाया। उन्होंने मछेंद्रनाथ को देखते ही पहचान लिया कि इन्होंने सावरी मंत्र के प्रभाव से नागपाश अवस्था में पेड़ के नीचे सब देवताओं को वशीभूत कर उनसे वरदान प्राप्त किए हैं और इनका कार्य कहां तक सिद्ध हुआ देखना चाहिए।  ऐसे विचार कर भैरव अपना भेष बदल संन्यासी बन दरवाजे पर अड़कर खड़ा हो गया और मछेंद्रनाथ से बोला, ‘कहां जा रहे हो?’ मछेंद्रनाथ बोले, ‘मेरी इच्छा देवी दर्शन की है। इसलिए मैं दर्शन करने आया हूं। आप भी तो संन्यासी हैं क्या आपको भी दर्शन की  अभिलाषा है?’  तब वह बोले, ‘हम यहां पर द्वारपाल हैं और अंदर जाने वालों के पाप पुण्य की परीक्षा कर पूर्णवान को ही भीतर जाने देते हैं, इसलिए आप अपने पाप पुण्य की परीक्षा देकर ही अंदर जाएं और जो दुष्ट कर्म छिपाकर रखता है वह बीच दरवाजे में ही अटक जाता है, फिर झूठे को झटका कर हम पीछे खींच लेते हैं और भारी सजा देते हैं। आपने जितने पाप-पुण्य किए हों उन्हें बताकर दर्शन करने को अंदर जा सकते हो।’ मछेंद्रनाथ भैरव का भाषण सुन कर बोले, पाप-पुण्य का मुझे कुछ नहीं मालूम और जो पाप-पुण्य मुझसे हुए भी वह सब ईश्वर के लिए हुए है।