कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकरण नाकाम

आखिर यह कब तक साबित करते रहना पड़ेगा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लिहाजा उससे जुड़े फैसले भी आंतरिक मामले हैं? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अनौपचारिक विमर्श, बंद कमरे में, का निष्कर्ष भी यही है। हालांकि इस विमर्श की न तो ब्रीफिंग की जाती है, न प्रसारण किया जाता है और न ही पत्रकार कवर कर सकते हैं। इस  विमर्श का कोई रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है। लिहाजा जो राजनयिकों ने बयान दिए हैं या चीन-पाकिस्तान के राजदूतों की टिप्पणियों से स्पष्ट है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि सुरक्षा परिषद में जाने की न तो चीनी कूटनीति कामयाब रही और न ही पाकिस्तान को कोई समर्थन मिला। चीन चाहता था कि विमर्श के बाद सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष-राष्ट्र पोलैंड कोई बयान जारी करे। चीन की इस कूटनीति को ब्रिटेन का भी समर्थन था, लेकिन पोलैंड ने साफ  इंकार कर दिया। बल्कि संयुक्त राष्ट्र ने चीन और पाकिस्तान को आईना दिखाया। कश्मीर के मुद्दे पर दखल देने की चीन की जो भी मंशा रही हो, लेकिन वह पाकिस्तान की किरकिरी नहीं रोक पाया। दरअसल चीन जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता था और संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के मुताबिक उसके समाधान का पक्षधर था। वह कूटनीति भी नाकाम रही। पाकिस्तान के आका अमरीका ने भी भारत का समर्थन किया। पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान के फोन करने पर भी अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंप ने नसीहत दी कि भारत के साथ द्विपक्षीय बातचीत शुरू की जाए और मौजूदा तनाव को घटाएं। उसके बावजूद इमरान लगातार युद्ध की भाषा बोलते रहे हैं। उनका दावा है कि उनकी फौज जंग के लिए तैयार है। इमरान ट्विटर पर बेलगाम लगते रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हमारे प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘फासीवादी’ शब्द का इस्तेमाल किया है और सबक सिखाने की धमकी दी है। आखिर पाकिस्तान की फितरत क्या है और वह कितनी पटखनियां खाना चाहता है? संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने पाकिस्तानी पत्रकारों के ही सवालों के जवाब में साफ कहा है-‘आतंकवाद रोकिए और बातचीत शुरू कीजिए।’ भारतीय राजनयिक ने एक बार फिर दोहराया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। किसी बाहरी का उससे कोई लेना-देना नहीं है।

अनुच्छेद 370 को संविधान के तहत ही, संसद के जरिए, समाप्त किया गया है। बहरहाल सुरक्षा परिषद के इस अनौपचारिक विमर्श ने तय कर दिया है कि अब संयुक्त राष्ट्र जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करेगा। विमर्श के दौरान भी अमरीका, रूस, फ्रांस समेत ज्यादातर देशों ने इसे द्विपक्षीय मामला करार दिया और शिमला समझौते के तहत इस पर बातचीत करने की सलाह दी। दरअसल हमारा मानना है कि जब जम्मू-कश्मीर भारतीय गणराज्य का संवैधानिक, अविभाज्य हिस्सा है, तो उस पर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी क्यों की जाए? कश्मीर विवादास्पद मुद्दा नहीं है। जो कश्मीर पाकिस्तान के कब्जे में है, वहां उसके आतंकियों की मदद के लिए एक बड़ा संचार केंद्र विकसित किया गया है। उसके जरिए 60 किलोमीटर के दायरे में बातचीत की जा सकती है। आतंकियों की घुसपैठ सीमा पार से कराने की कोशिशें और साजिशें लगातार जारी हैं। ये पाकिस्तान की तरफ  से छद्म-युद्ध के स्पष्ट संकेत हैं। संघर्ष विराम का उल्लंघन भी किया जा रहा है। बीते दो दिनों में भारी गोलाबारी हुई है, रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया गया है। पलटवार में हमारे सैनिकों ने भी पाकिस्तान की चौकियां तबाह की हैं, उनके कुछ फौजियों के मरने की भी खबरें हैं, लेकिन हमारा भी एक सैनिक ‘शहीद’ हुआ है। क्या इस तरह पाकिस्तान के साथ कोई दोतरफा संवाद संभव है? बहरहाल हमारे कश्मीर के हालात सामान्य होते जा रहे हैं। जम्मू तो लगभग सामान्य है, लेकिन कश्मीर घाटी में अभी पाबंदियां जारी रहेंगी। वहां सचेत निगाह रखना भी जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तान पूरी तरह हमलावर मुद्रा में है। एक सलाह उन ‘काली भेड़ों’ के लिए है, जो भारतीय हैं, लेकिन चीन-पाकिस्तान की कूटनीति की प्रश्ांसा करते हैं, वे कमोबेश ऐसे संवेदनशील मामलों में तो एक सुर में बोलना सीख लें।