किसानों को आय बढ़ाने के टिप्स देगी नौणी यूनिवर्सिटी

प्रशिक्षण को सतलुज जल विद्युत निगम फाउंडेशन के साथ करार, प्रदेश भर में लगेंगे सेमिनार

नौणी –डा. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी और सतलुज जल विद्युत निगम फाउंडेशन शिमला के बीच किसानों और बागबानों में प्रशिक्षण के माध्यम से निपुणता लाने हेतु एमओयू पर हस्ताक्षर हुए हैं। एक साल का यह समझौता लगभग 55 लाख रुपए का है, जिसके तहत नौणी विश्वविद्यालय अपने मुख्य परिसर और राज्य में स्थित विभिन्न स्टेशनों पर 32 किसान प्रशिक्षण शिविर आयोजित करेगा। विवि की ओर से विस्तार शिक्षा निदेशक डा. राकेश गुप्ता तथा सतलुज जल विद्युत निगम के वरिष्ठ एजीएम (एचआर) अवदेश प्रसाद ने विश्वविद्यालय के कुलपति डा. परविंदर कौशल की उपस्थिति में इस एमओयू पर हस्ताक्षर किए। निदेशक अनुसंधान डा. जेएन शर्मा, कुलसचिव राजीव कुमार, संयुक्त निदेशक (संचार) डा. राज कुमार ठाकुर, संयुक्त निदेशक (प्रशिक्षण) डा. माई चंद और एसजेवीएन के उप प्रबंधक (एचआर) हर्ष जैन भी इस अवसर पर उपस्थित रहे। योजना के तहत वर्ष 2022 तक नवीनतम कृषि तकनीकों में 6000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है। अगले एक वर्ष में विश्वविद्यालय एसजेवीएन के परियोजना क्षेत्रों सहित राज्य के विभिन्न जिलों के 800 किसानों को कृषि प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण देने के लिए छह दिवसीय आवासीय कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित करेगा। एसजेवीएन फाउंडेशन इन प्रशिक्षणों की कुल लागत वहन करेगा। 2016 से इस समझौते के तहत विवि द्वारा 86 शिविर आयोजित किए गए हैं, जिससे 2100 से अधिक किसान लाभान्वित हो चुके हैं। एसजेवीएन अपने सीएसआर और सस्टेनेबिलिटी परियोजनाओं को छह वर्टिकल, हैल्थ एंड हाईजीन, एजुकेशन एंड स्किल डिवेलपमेंट, सस्टेनेबल डिवलपमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चरल एंड कम्युनिटी डिवेलपमेंट, प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहायता, संस्कृति और खेल को बढ़ावा देता है। एसजेवीएन पंचायत घर, महिला मंडल, खेल के मैदानों के विकास में भी सक्रिय है और पिछले कुछ वर्षों में 200 से अधिक सामुदायिक संपत्ति का निर्माण इनके द्वारा किया गया है। विवि के कुलपति डा. परविंदर कौशल ने कहा कि किसानों को व्यावहारिक ज्ञान देने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

नई तकनीक की टे्रनिंग

प्रतिभागियों को आधुनिक कृषि तकनीकों के उपयोग सहित कृषि और बागवानी के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित किया जाएगा। प्राकृतिक खेती, फल, सब्जी और मशरूम उत्पादन, फूलों की खेती, पोस्ट हार्वेस्ट तकनीक, मधुमक्खी पालन, औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती, और बागवानी और वानिकी फसलों की नर्सरी उत्पादन के क्षेत्रों में किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। एग्रीप्रिन्योरशिप, पौध संरक्षण, जैविक खेती और पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन और स्वच्छ भारत अभियान की गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए जैव-विविधता पर जागरूकता, जैव-कचरे को खाद में बदलना और कृषि के लिए अपशिष्ट जल का उपयोग जैसे विषय भी इसमें शामिल किए जाएगें।