किसी अजूबे से कम नहीं हैं महाभारत के पात्र

आज भी लाखों हिंदुओं के लिए कर्ण एक ऐसा योद्धा है जो जीवनभर दुखद जीवन जीता रहा। उसे एक महान योद्धा माना जाता है जो साहसिक आत्मबल युक्त एक ऐसा महानायक था जो अपने जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से जूझता रहा। विशेष रूप से कर्ण अपनी दानप्रियता के लिए प्रसिद्ध है। वह इस बात का उदाहरण भी है कि किस प्रकार अनुचित निर्णय किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और उत्तम गुणों के रहते हुए भी किसी काम के नहीं होते। कर्ण को कभी भी वह नहीं मिला जिसका वह अधिकारी था, पर उसने कभी भी प्रयास करना नहीं छोड़ा। भीष्म और भगवान कृष्ण सहित कर्ण के समकालीनों ने यह स्वीकार किया है कि कर्ण एक पुण्यात्मा है जो बहुत विरले ही मानव जाति में प्रकट होते हैं। वह संघर्षरत मानवता के लिए एक आदर्श है कि मानव जाति कभी भी हार न माने और प्रयासरत रहे…

-गतांक से आगे…

महायोद्धा

आज भी लाखों हिंदुओं के लिए कर्ण एक ऐसा योद्धा है जो जीवनभर दुखद जीवन जीता रहा। उसे एक महान योद्धा माना जाता है जो साहसिक आत्मबल युक्त एक ऐसा महानायक था जो अपने जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से जूझता रहा। विशेष रूप से कर्ण अपनी दानप्रियता के लिए प्रसिद्ध है। वह इस बात का उदाहरण भी है कि किस प्रकार अनुचित निर्णय किसी व्यक्ति के श्रेष्ठ व्यक्तित्व और उत्तम गुणों के रहते हुए भी किसी काम के नहीं होते। कर्ण को कभी भी वह नहीं मिला जिसका वह अधिकारी था, पर उसने कभी भी प्रयास करना नहीं छोड़ा। भीष्म और भगवान कृष्ण सहित कर्ण के समकालीनों ने यह स्वीकार किया है कि कर्ण एक पुण्यात्मा है जो बहुत विरले ही मानव जाति में प्रकट होते हैं। वह संघर्षरत मानवता के लिए एक आदर्श है कि मानव जाति कभी भी हार न माने और प्रयासरत रहे।

अर्जुन से तुलना

कर्ण और अर्जुन में बहुत सी समानताएं हैं। दोनों ही अपने समय के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, दोनों ने ही द्रौपदी का हाथ जीतने के लिए प्रतियोगिता में भागीदारी की और दोनों को अपने भाइयों के विरुद्ध युद्ध में लड़ना पड़ा। एक और गहरा संयोजन यह कि दोनों ही कौरवों से निकटता से जुड़े हुए थे, कर्ण मित्रतावत और अर्जुन रक्तरत। उनके निर्णय और तद्नुरूप इसके उन पर और उनके परिवाओं पर पड़ने वाले परिणामों पर इस बात के लिए बल दिया जाता है कि अपने कर्त्तव्यों का पालन करने का क्या महत्त्व है, जैसा कि भगवद गीता में भगवान कृष्ण द्वारा बताया गया है। कर्ण एक ऐसे व्यक्तित्व का उदाहरण है जो गुणी, दानवीर, न्यायप्रिय और साहसी था, लेकिन फिर भी उसका पतन हुआ क्योंकि वह अधर्मी दुर्योधन के प्रति निष्ठावान था। कर्ण में वे पांचों गुण थे जो द्रौपदी ने अपने वर के रूप में महादेव से मांगे थे, केवल एक को छोड़कर और वह था दुर्योधन से घनिष्ठ मित्रता। अर्जुन व कर्ण में समानताएं और विषमताएं दोनों ही थीं। अर्जुन को आरंभ से ही सुख, संपत्ति और मातृप्रेम मिला, जबाकि कर्ण को हर वस्तु प्राप्त करनी पड़ी। अर्जुन के पास हर वो वस्तु थी जो उसको विजयी बनाती, लेकिन कर्ण सर्वथा अकेला था। अपनी सच्चाई के कारण ही उसे सारे अभिशाप मिले जिसे उसने नतमस्तक होकर स्वीकार किया। एक विश्लेषण के अनुसार कर्ण और अर्जुन के युद्ध के समय एक ऐसा अवसर आया, जब अर्जुन ने इतनी शक्ति से एक ऐसा बाण चलाया जो सीधे कर्ण के रथ पर लगा और उसका रथ दस कदम पीछे खिसक गया। इस पर कर्ण ने भी इतनी शक्ति से एक ऐसा बाण चलाया जो सीधे अर्जुन के रथ पर लगा और उसका रथ दो कदम पीछे खिसक गया। कर्ण के ऐसा करने पर भगवान कृष्ण, कर्ण की प्रशंसा करने लगे। जब अर्जुन ने भगवान कृष्ण से कर्ण की इस प्रशंसा का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे रथ पर त्रिभुवन का भार लेकर मैं बैठा हूं तथा तुम्हारे रथ की ध्वजा पर स्वयं हनुमानजी विराजमान हैं।