चकौताधारकों को मालिकाना हक की उम्मीद

हमीरपुर – रेवन्यू डिपार्टमेंट द्वारा चकौता धारकों की मांगी गई डिटेल के बाद प्रदेश के सभी चकौता धारकों को उन जमीनों का मालिकाना हक मिलने की उम्मीद जगी है, जो वर्षों पूर्व उन्हें गुजर-बसर करने के लिए मिली थीं। एडिशनल चीफ सेक्रेटरी रेवन्यू डिपार्टमेंट ने सभी जिलों के जिलाधीशों से इस बारे में रिपोर्ट देने को कहा है, जिसमें उनसे पूछा गया है कि आपके जिला में कितने चकौता धारक हैं। उनका मौजूदा स्टेटस क्या है, किस-किस को अभी तक लाभ मिल चुका है। बता दें कि आजादी के बाद जब हिमाचल पंजाब का हिस्सा था, उस वक्त पंजाब ग्राम शामलात भूमि अधिनियम 1961 के तहत पंचायतों को यह पावर दी गई थी कि वे अपने गांव के उन लोगों को जमीनें दे सकती हैं, जिनके पास गुजर-बसर करने के लिए जमीन नहीं है, ताकि वे इसमें खेतीबाड़ी आदि कर अपनी अजीविका कमा सकें। उस वक्त जिसने जितनी जमीन मांगी, उसे दे दी गई, लेकिन वे उसके मालिक नहीं बन पाए। 25 जनवरी, 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा मिला, तो लैंड रिफोर्मस एक्ट 1972 के तहत सारी जमीन हिमाचल सरकार के नाम हो गई। उसके बाद हिमाचल प्रदेश विलेज कॉमल लैंड यूटिलाइजेशन एक्ट 1974 आया, तो चकौते पर दी जाने वाली जमीन को पांच बीघा तय किया गया, जबकि पहले यह पांच बीघे से भी अधिक दी जाती थीं। लोग चकौते पर मिली जमीनों पर गुजर बसर करते रहे, लेकिन मालिक सरकार ही रही। 1992-93 में फिर लीज रूल तो बदले, लेकिन फिर भी चकौता धारकों को जमीनों का मालिकाना हक नहीं मिल पाया। ऐसे में जो चकौताधारक थे वे चकौते पर मिली जमीन को बेच नहीं सकते थे। इसके अलावा उन्हें किसानों के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली स्कीमों का लाभ नहीं मिल पाता था। जैसे उन्हें खेतीबाड़ी के औचार, पोलीहाउस निर्माण, बीज और खेती की बाड़ आदि के लिए मिलने वाली स्कीमों का लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा था, क्योंकि जमाबंदी पर जमीनों की मालिक प्रदेश सरकार थी। चकौता धारक पिछले कई वर्षों से यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें चकौते पर मिली जमीनों का मालिकाना हक दिया जाए।