ड्ढकुंडलिनी साधनाएं : कुंडलिनी क्या है

यह कुंडलिनी क्या है और उसे किस प्रकार जागृत किया जाता है, इसको जागृत करने से क्या लाभ हैं, ये सब बातें जानने से पहले हमें यह जानना चाहिए कि कुंडलिनी जागृत करने में जिन सात चक्रों का जिक्र किया जाता है, वे सातों चक्र क्या हैं और शरीर में कहां स्थित होते हैं। योगशास्त्र में इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना की चर्चा की गई है। सुषुम्ना नाड़ी रीढ़ की हड्डियों के रिंग से होकर गुजरती है। इससे नाडि़यों का जाल निकल कर समस्त शरीर में फैला होता है। इस सुषुम्ना नाड़ी में गुदा मार्ग के समीप से मस्तक तक सात शक्ति-चक्र हैं…

-गतांक से आगे…

किंतु, योग में ध्यान का उद्देश्य कुंडलिनी को जागृत करना है। यह कुंडलिनी क्या है और उसे किस प्रकार जागृत किया जाता है, इसको जागृत करने से क्या लाभ हैं, ये सब बातें जानने से पहले हमें यह जानना चाहिए कि कुंडलिनी जागृत करने में जिन सात चक्रों का जिक्र किया जाता है, वे सातों चक्र क्या हैं और शरीर में कहां स्थित होते हैं। योगशास्त्र में इड़ा, पिंगला एवं सुषुम्ना की चर्चा की गई है। सुषुम्ना नाड़ी रीढ़ की हड्डियों के रिंग से होकर गुजरती है।  इससे नाडि़यों का जाल निकल कर समस्त शरीर में फैला होता है। इस सुषुम्ना नाड़ी में गुदा मार्ग के समीप से मस्तक तक सात शक्ति-चक्र हैं। बहुत से इसे आठ मानते हैं। वस्तुतः इस नाड़ी से संबंधित शक्ति-चक्र अनेक हैं। मुख्य रूप से शक्ति-चक्र सात हैं। इसके संबंध में कुंडली अध्याय में विस्तार से बताया गया है। कुंडलिनी एक वर्तुलाकार आकृति की संरचना है, जो गुदास्थि में मूलाधार चक्र में स्थित है। इसका मुंह नीचे की ओर होता है। योगीगण ध्यान के द्वारा इसके मुंह को ऊपर करते हैं। इससे उसकी आत्मिक-शक्ति में असीम शक्ति आ जाती है और वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञाता बनकर काल से परे हो जाता है। प्रश्न यह उठता है कि योग के इस सिद्धांत की वैज्ञानिकता क्या है? आधुनिक विज्ञान के अनुसार रीढ़ के मध्य गुजरने वाली नाड़ी में कहीं भी किसी प्रकार का चक्र नहीं है। गुदास्थि में कोई भी वर्तुलाकर रचना नहीं है। वस्तुतः ये रचनाएं अवस्थित हैं। वास्तविक जीवन सूक्ष्म शरीर ही है, ढांचा नहीं। एक उदाहरण देखिए। एक टीवी सेट में अनेक पार्ट-पुर्जे लगे होते हैं। उसका एक संपूर्ण ढांचा और व्यवस्थित क्रम होता है। हम सामान्यतः इसी ढांचे को टीवी कहते हैं, लेकिन यह ढांचा टीवी नहीं है। वास्तविक टीवी तो ऊर्जा का एक खास भंवर है, जिसका प्रादुर्भाव यह ढांचा करता है। यह भंवर-चक्र यदि किसी भी प्रकार पैदा कर ली जाए, तो वह टीवी का फल देगा, ढांचे की कोई अहमियत नहीं है। टीवी का एक निश्चित सर्किट होता है। एक ओर से पावर अंदर आकर विभिन्न पुर्जों से गुजरता हुआ ऊर्जा का एक ‘भेवरेशन-सर्किल’ बनाता है। यदि इस सर्किट में परिवर्तन कर दिया जाए तो इसका प्रभाव निश्चित ही टीवी की तस्वीरों पर पड़ेगा। सारी आधुनिकतम तकनीकी का अनुसंधान इसी सिद्धांत के तहत होता है।