निराशा के बाद परिवार संग रहने के दिन आए

सौंदर्य के क्षेत्र में शहनाज हुसैन एक बड़ी शख्सियत हैं। सौंदर्य के भीतर उनके जीवन संघर्ष की एक लंबी गाथा है। हर किसी के लिए प्रेरणा का काम करने वाला उनका जीवन-वृत्त वास्तव में खुद को संवारने की यात्रा सरीखा भी है। शहनाज हुसैन की बेटी नीलोफर करीमबॉय ने अपनी मां को समर्पित करते हुए जो किताब ‘शहनाज हुसैन : एक खूबसूरत जिंदगी’ में लिखा है, उसे हम यहां शृंखलाबद्ध कर रहे हैं। पेश है अठारहवीं किस्त…

-गतांक से आगे…

उन्हीं के पास उनके पापा खड़े थे, उनके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी। सईदा बेगम घुटनों के बल बैठकर बांहें खोले अपने बच्चों को बुला रही थीं, उनकी आंखें खुशी से भर गई थीं और वे फिर से एक परिवार के रूप में साथ होने वाले थे। मां के प्यार जैसा दुनिया में कुछ भी नहीं है।

स्टेनले रोड का घर

इलाहाबाद में गंगा किनारे 33 स्टेनले रोड का वह दो मंजिला घर। पूर्णमासी की रातों में चमकती लहरों का लता से लदी दीवारों से टकराना मन मोह लेता था। उस मकान में चारों तरफ खामोशी पसरी हुई थी, मानो उसका खालीपन किसी का इंतजार कर रहा हो, जिसे प्यार से भरे जाने की जरूरत थी। अब वह मकान घर बन गया था। बच्चे अपनी मां और चहकते पिता के साथ गाड़ी से बाहर निकले, उनका संसार एक बार फिर से खुशियों से भर गया था और मन में सुकून था। अनिश्चितता और निराशा के दिनों के बाद अब परिवार के फिर से साथ रहने के दिन आए थे। मिसेज बेग बहुत बहादुरी से अपनी बीमारी से लड़ी थीं और इस तरह वे लोग जिंदगी के इम्तिहान को पास कर पाए थे। छोटी-सी खुशी, जिसकी कभी कद्र नहीं की जाती, आज वही उनके लिए नेमत थी। नूरा, आया, अपनी खुशी में आपे से बाहर हो गई थी, बच्चों को गले लगाते हुए वह कहे जा रही थी, ‘मेरे प्यारे बच्चों’, वह बहुत भावुक पल था, ऐसा पल जो हमेशा मेरी मम्मी के लिए यादगार, बेशकीमती और पवित्र रहा। घर के अंदर, फर्नीचर पर पॉलिश की जा चुकी थी, कमरे दो बार साफ किए गए थे, खाली पड़े फूलदानों में फूल लग गए थे। रसोइया खाना बनाने में व्यस्त था, उसे बच्चों के पसंदीदा व्यंजन बनाने थे, उन पर ज्यादा गार्निश डालकर। घर की महारानी वापस आ गई थीं और उस बात का सुकून हर किसी के चेहरे पर दिख रहा था। मेरी नानी घर में महारानी की तरह घूम रही थीं, हर चीज का बारीकी से मुआयना करती हुईं। उनकी अपनी उपस्थिति में हुई छोटी सी छोटी चीज को भी देख लेना चाहती थीं। आखिरकार उनकी गैर-मौजूदगी में ही घर को लखनऊ से इलाहाबाद शिफ्ट किया गया था। वह एक-एक परदे को छूकर देख रही थीं कि कहीं धूल तो नहीं रह गई। क्रॉकरी को अच्छे से जांचा और फिर अपने कमरे में जाकर आसन लगाया और नमाज के साथ अल्लाह की बख्शी नेमतों का शुक्रिया अदा किया। कितना अजीब है न कि हम अल्लाह से बड़ी-बड़ी चीजें तो मांगते हैं, लेकिन अक्सर भूल जाते हैं कि छोटी-छोटी चीजें हमारे लिए ज्यादा महत्त्व रखती हैं, जैसे आप सुबह उठे और अपने प्रियजनों को अपने आसपास देखो, कि आप अपने पैरों पर चल पाओ, कि आप स्वस्थ हों। मुझे यकीन है कि हम सभी इन बेशकीमती नेमतों से नमाजे गए हैं।