पहेलियां

नहीं सुदर्शन चक्र मगर

मैं चकरी जैसा चलता

सिर के ऊपर उलटा लटका  फर्श पर नहीं उतरता

बर्फ  नहीं पर हवा है मुझमें ठंडक मैं पहुंचाता

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लाल रंग है घर मेरा अंग है। 

सबमें ही मैं पाया

जाऊं, लेकिन तब हो बड़ी

मुसीबत  जब  मैं कहीं बह

जाऊं।  हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई हरेक के

अंदर मैं मिलता भाई

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दो मुंह वाली बड़ी निराली

ऊपर से चौड़ी अंदर से खाली  पीटो मुझे तो निकले हैं

बोल घर में खुशी हो या गाना बजाना

तो बढ़ जाता है मेरा रोल

बड़े काम की है मेरी पोल

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सारे तन में छेद कई हैं

इन छेदों का भेद यही है

ये न हों तो मैं बेकार

नसें ही है मेरा संसार

तब ही मैं लाऊं सुरों की बहार।

उत्तरः 1. पंखा , 2.  खून , 3. ढोलक, 4. बांसुरी