पुलिस भर्ती का अपहरण

पुलिस से उसकी ही भर्ती को छीनने की साजिश का बेनकाब होना सुखद है, लेकिन इस बीच कई प्रश्न नत्थी हो जाते हैं। सरकारी नौकरी की दौड़ में आदर्शों की बोली और ऐसी जमात की होली अगर पूरे परिदृश्य को बदरंग कर रही है, तो कहीं न कहीं ऐसी नियुक्तियों को सतर्क निगहबानी की जरूरत है। पुलिस के अपने इंतजाम रहे हैं और इसीलिए फर्जी चेहरे सामने आए हैं, लेकिन लिखित परीक्षाओं की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने की चुनौती भी सामने आई है। आश्चर्य यह कि हिमाचल में परीक्षा केंद्रों की अधोसंरचना पर कोई कार्य नहीं हुआ है। परौर जैसी जगह में किसी आश्रम के आश्रय में लिखित परीक्षा का संचालन मजबूरी का हल हो सकता है, लेकिन इसे परीक्षा केंद्र के  रूप में स्वीकृत नहीं करता। इसी तरह हर विभाग अपनी मात्रात्मक नियुक्तियों के लिए विभागीय कौशल का एक हद तक इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन लिखित परीक्षाओं की चटाई नहीं बिछा सकता। विडंबना यही है कि नियुक्तियों की फेहरिस्त बनाते विभागों ने खुद को ही परीक्षा संचालक बना लिया। ऐसे में हमीरपुर स्थित अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की विशिष्टता में परीक्षा का औचित्य क्यों नजरअंदाज होने लगा, इस पर गौर होना चाहिए। तकनीकी तौर पर अगर उम्मीदवारों के शारीरिक या मानसिक परीक्षण लाजिमी हैं, तो भी यह व्यवस्था स्वतंत्र व निष्पक्ष तौर पर दक्ष विशेषज्ञों की मौजूदगी में होनी चाहिए। प्रायः पुलिस, होम गार्ड या वन रक्षकों की भर्ती बेरोजगार युवाओं के लिए अति कष्टप्रद व अमानवीय बना दी जाती है। इन्हें आवश्यक चरणों की पड़ताल तथा औपचारिक लिखित परीक्षा की अनिवार्यता में देखा जाता है, जबकि इसका विस्तार करते हुए कम से कम छह महीने का चक्र बनाया जाए। शारीरिक परीक्षा में उत्तीर्ण उम्मीदवारों को कम से कम छह महीने तक पनपने का अवसर दिया जाए। इस दौरान पुलिस विभाग अपने प्रशिक्षण के अनुरूप चयनित प्रत्याशियों को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करे और अंतिम दौर की परीक्षा प्रक्रिया आते-आते, इनकी आंतरिक और बाह्य शक्ति को जांचे। दूसरी ओर केंद्रीय तथा हिमाचल की विभिन्न परीक्षाओं को देखते हुए विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा स्कूल शिक्षा बोर्ड को अपने परिसर में परीक्षा केंद्र और परीक्षा प्रक्रिया को सशक्त करने की व्यवस्था करनी होगी। हिमाचल में निजी तौर पर स्थापित कुछ ऑनलाइन परीक्षा केंद्रों के स्थान व स्थिति को लेकर भी परेशानियां बढ़ रही हैं, अतः स्कूल शिक्षा बोर्ड या महत्त्वपूर्ण शहरों में जाया हो रही स्कूली इमारतों को परीक्षा केंद्रों के रूप में समृद्ध करना होगा। भले ही एक दर्जन से अधिक लोगों को पुलिस भर्ती की जालसाजी में गिरफ्तार किया जा चुका है और पूरी प्रक्रिया रद्द कर दी है, लेकिन अंतिम चरण में पहुंच कर यह हजारों हिमाचली युवाओं की निराशा का सबब है। यह उन युवाओं के भविष्य से किया गया खिलवाड़ है, जो वर्षों की मेहनत के बाद पुलिस की शारीरिक अहर्ताओं के योग्य बन पाते हैं। पुलिस भर्ती को विवादित मोड़ पर लाने वाले गैंग की शिनाख्त, हमारे समाज का वीभत्स चेहरा भी है। अंततः जिन बच्चों की हाजिरी में आपराधिक कलम लिखित परीक्षा दे रही थी, उनके आचरण से हिमाचल भी पतित हुआ। यह फिर साबित करता है कि प्रदेश में एक तपका ऐसा तैयार हो रहा है, जो नौकरी हासिल करने के लिए हर गुनाह कबूल कर रहा है। यह शिक्षा प्रणाली का दोष भी है कि छोटी सी परीक्षा को लिखने के लिए आपराधिक मेहनताना ढूंढा जा रहा है। जिन बच्चों ने अपने जुर्म की बदौलत पूरी परीक्षा को असफल किया, क्या उनकी आज तक की पढ़ाई निर्मूल व दिशाहीन साबित नहीं होती। क्या हर साल स्कूली परीक्षाओं में बढ़ती नकल की प्रवृत्ति ने हिमाचल के बच्चों का इतना नैतिक पतन नहीं कर दिया कि वे भाडे़ के टट्टुओं पर अपने भविष्य का बोझ उठाना अपनी क्षमता समझने लगे। क्या वे अध्यापक इस दोष से मुक्त होंगे, जिनकी कक्षा में पढ़ाई की लौ इस कद्र बुझ गई कि दसवीं से बारहवीं तक की परीक्षा के लिए बाजार की अकादमियां ही जतन करती हैं। पुलिस भर्ती की कोख में जन्म ले चुके अपराध की पूर्ण, स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच होगी, तो पता चलेगा कि ऐसे रैकेट के पीछे हिमाचल में कितने और रैकेट बिछे हैं।