बुआ क्यों भागी?

अजय पाराशर

स्वतंत्र लेखक

जब से गांव की सबसे बड़ी पार्टी के दो भाई बुआ को अपने साथ भगा लाए हैं, बुआ के तीन सगे भतीजे-भतीजियां और कुछ रिश्तेदार बौरा बैठे हैं। बुआ का घर अपने मौहल्ले में सबसे सुंदर था और बुआ स्वयं भी सौंदर्य की त्रिमूर्ति थी, लेकिन विडंबना थी कि आजादी के 70 साल गुजर जाने के बाद भी वह कुंवारी बैठी थी। गांव भर की उसकी उम्र की तमाम लड़कियां पढ़-लिख कर ब्याहने के बाद अपने-अपने घरों में फल-फूल रही थीं, लेकिन बेचारी बुआ, सबसे सुंदर होने के बावजूद अपने ही घर-गांव में कैद बैठी थी।  पहले बुआ के भाई-बहनों ने उसके अथाह सौंदर्य के चलते उसके घर से बाहर निकलने  पर पाबंदी लगा रखी थी। उसे स्कूल का मुंह दिखाना तो दूर, पढ़ना-लिखना भी नहीं सिखाया। भाई-बहनें दलीलें करते रहे कि उसके घर से बाहर निकलते ही कोई दूसरी जात वाला उसे भगा ले जाएगा। फिर जो नस्ल पैदा होगी, मिलावटी होगी। उसे पहनने के लिए कभी साफ-सुंदर कपड़े भी नहीं दिए जाते। कहा जाता कि जब घर से बाहर नहीं निकलना, तो अच्छे कपड़ों की क्या जरूरत? किसी तरह बुआ का पेट तो भर जाता, लेकिन उसे खिड़की के पास बैठने की इजाजत तक न थी। उसके घर वाले खुद  पकवान खाते, भरे पेट डकार मारते हुए बुआ के सौंदर्य की तारीफ करते फिरते और गांव भर में आखें तरेरते हुए कहते कि अगर किसी ने हमारी बुआ की ओर नजर उठाकर भी देखा, तो उसकी आंखें निकाल देंगे। दलीलें बेतुकी थीं, पर बहन भी उनकी थी, बुआ भी, लेकिन उनकी नजर बुआ की उस जायदाद पर थी, जो उसके पिता उसके नाम कर गए थे। गांव वाले उसकी हालत देखकर मन ही मन पसीजते, लेकिन तब गांव भर में बुआ के घर वालों की पूछ थी, क्योंकि गांव के जमींदार से उनका उठना-बैठना था। जमींदार की नजर में खोट था, लेकिन अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए वह केवल बुआ के दर्शनों से अपना काम चला लेता। पर गांव वालों ने कभी दिल से उसे अपनी बेटी नहीं माना और उसे उसी हालत में स्वीकार कर लिया। हालांकि जब भी पड़ोसी गांव के मुश्टडों ने बुआ के मौहल्ले पर धावा बोलकर, उसे भगाने की कोशिश की, तब गांव वालों ने उसे अपनी प्रतिष्ठा मानकर उन्हें मारकर भगा दिया। दूसरी पार्टी की नजर में कोई खोट तो न था, पर उसे बुआ अपनी सी लगती, वह उसकी आजादी-तरक्की चाहती थी, लेकिन ताकतवर न होने से मन मसोस कर रह जाती। फिर समय के साथ पुराने जमींदार की जमींदारी छिनी और दूसरी पार्टी ने उसकी जगह ले ली। फिर एक दिन मौका मिलते ही दोनों भाई बुआ को अपने साथ ले लाए। तब से उसके घर वाले दोनों भाइयों और गांव की ईंट से ईंट बजाने का मनसूबा लिए बैठे हैं, पर अब उनके घर में ही इस मामले को लेकर फूट पड़ गई है। कुछ लोगों को छोड़कर बाकी घर वाले बोल रहे हैं, ‘अच्छा हुआ, बेचारी आजाद हो गई।’