मंचासीन मनोग्रस्ति से छुटकारा कब?

डा. विनोद गुलियानी, बैजनाथ

किसी भी अव्यवस्थित कार्यक्रम में मंच तक दौड़ का प्रचलन आम बात है। मुख्य अतिथि के साथ दो-तीन नेताओं का सुविधाजनक स्थान पाना तो अपरिहार्य है, परंतु छुट भैये नेता अपनी होिशयारी से मंचासीन होने के साथ अपने आकाओं द्वारा भाषणों में नाम पुकारे जाने व अंत में सम्मानित होने की इच्छा जैसी मनोग्रस्ति का शिकार रहते हैं। अधिकांश सभाओं में हमारे नेता यह आकलन करने में असमर्थ रहते हैं कि भीड़ का बड़ा भाग सरकारी कर्मचारियों व गैर सरकारी इकट्ठ के पीछे अपने कामों की स्वार्थसिद्धी रहती है। इस भीड़ तंत्र को देखने की प्रवृत्ति, अवांछित व मंच की दौड़ की होड़ जैसी मृगतृष्णा से मेरा भारत कब छुटकारा पाएगा?