मणिमहेश यात्रा चंबा से शुरू होकर राख, खड़ा मुख इत्यादि स्थानों से होती हुई भरमौर पहुंचती है। यात्रा की खोज का श्रेय सिद्ध योगी चरपटनाथ जी को जाता है। यात्रा शुरू करने से पहले भरमौर से 6 किलोमीटर पहाड़ी के शिखर पर ब्रह्मा जी की पुत्री भ्रमाणी देवी का मंदिर स्थित है। मणिमहेश की यात्रा से पूर्व यहां पर आने से ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है। आदिकाल से ही संत महात्मा योगी और भक्तजन मणिमहेश यात्रा की शुरुआत चंबा से ही करते रहे हैं क्योंकि चंबा का ऐतिहासिक प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर यात्रा का आधार एवं प्रारंभिक शिविर हुआ करता था। आजकल चंबा से 65 किलोमीटर दूर भरमौर चौरासी में रुक कर यात्री आगे बढ़ते हैं। चौरासी एक धार्मिक स्थल है, जो चौरासी सिद्धों की तपस्थली है, जहां विश्व का एकमात्र धर्मराज मंदिर स्थित है। चंबा से भरमौर 70 किलोमीटर व भरमौर से हड़सर 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इसके आगे हड़सर से मणिमहेश खड़ी चढ़ाई, संकरे व पथरीले रास्तों वाली 14 मील की पैदल यात्रा है, तंग पहाड़ी में बसा हड़सर इस क्षेत्र का अंतिम गांव है। हड़सर से पैदल चढ़ाई करते हुए पहला पड़ाव आता है धनछो। यह रास्ता बहुत कठिन व मुश्किल है। धनछो से आगे और मणिमहेश झील से लगभग डेढ़-दो किलोमीटर पहले गौरीकुंड आता है। मणिमहेश झील आम यात्रियों व श्रद्धालुओं के लिए यही अंतिम स्थान है। मणिमहेश की डल झील शिव भगवान की स्नान स्थली है। सदियों से चल रही इस यात्रा को तभी सफल माना जाता है, जब यहां रात्रि व्यतीत कर भोर होते ही कैलाश पर्वत के दर्शन कर वहां कुदरती तौर पर उत्पन्न होने वाले दिव्य प्रकाश में झील में स्नान किया जाए। मणिमहेश यात्रा इस वर्ष 24 अगस्त को प्रारंभ होकर 6 सितंबर तक चलेगी।