विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व

अनीश्वरवाद का पृष्ठ पोषण भौतिक विज्ञान ने यह कहकर किया कि ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व का ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, जो प्रकृति के प्रचलित नियमों से आगे तक जाता हो। इस उभयपक्षीय पुष्टि ने मनुष्य की उच्छृंखल अनैतिकता पर और भी अधिक गहरा रंग चढ़ा दिया, तदनुसार वह मान्यता एक बार तो ऐसी लगने लगी कि ‘आस्थाओं का अंत’ वाला समय अब निकट ही आ पहुंचा। अतिमानववाद के अर्थ का भी अनर्थ हुआ…

-गतांक से आगे….

अनीश्वरवाद का पृष्ठ पोषण भौतिक विज्ञान ने यह कहकर किया कि ईश्वर और आत्मा के अस्तित्व का ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, जो प्रकृति के प्रचलित नियमों से आगे तक जाता हो। इस उभयपक्षीय पुष्टि ने मनुष्य की उच्छृंखल अनैतिकता पर और भी अधिक गहरा रंग चढ़ा दिया, तदनुसार वह मान्यता एक बार तो ऐसी लगने लगी कि ‘आस्थाओं का अंत’ वाला समय अब निकट ही आ पहुंचा। अतिमानववाद के अर्थ का भी अनर्थ हुआ और यूरोप में हिटलर, मुसोलिनी जैसे लोगों के नेतृत्व में नृशंस अतिमानवों की एक ऐसी सेना खड़ी हो गई, जिसने समस्त संसार को अपने पैरों तले दबोच लेने की हुंकार भरना आरंभ कर दिया। खोट, प्रजातंत्र और साम्यतंत्र की तरह अनीश्वरवाद में भी है। इसका उचित समाधान बहुत दिन पहले वेदांत के रूप में ढूंढ लिया गया है। तत्त्वमसि, सोअहम, अयमात्मा ब्रह्म, प्रज्ञानंब्रह्म-सूत्रों के अंतर्गत आत्मा की परिष्कृत स्थिति को ही परमात्मा माना गया है। इतना ही नहीं, इच्छा शक्ति को, मनोबल और आत्मबल को-प्रचंड करने के लिए तप-साधना का उपाय भी प्रस्तुत किया गया है। वेदांत अतिमानव के सृजन पर पूरा जोर देता है। मनोबल प्रखर करने की अनिवार्यता को स्वीकार करता है। ईश्वरवाद का खंडन किसी विज्ञ जीव को ईश्वर स्तर तक पहुंचा देने की वेदांत मान्यता बिना रिक्तता उत्पन्न किए, बिना अनावश्यक उथल-पुथल किए वह प्रयोजन पूरा कर देती है, जिसमें ईश्वरवाद के नाम पर प्रचलित विडंबनाओं का निराकरण करते हुए अध्यात्म मूल्यों की रक्षा की जा सके। बुद्धिवाद अगले दिनों वेदांत दर्शन को परिष्कृत अध्यात्म के रूप में प्रस्तुत करेगा। तब अतिमानव की कथित दार्शनिक मान्यताएं अपूर्ण लगेंगी और प्रतीत होगा कि इस स्तर का प्रौढ़ और परिपूर्ण चिंतन बहुत पहले ही पूर्णता के स्तर तक पहुंच चुका है।

विराट का प्रतिनिधि जीव

जिस चेतना को विराट विश्व ब्रह्मांडव्यापी माना जाता है, जीव उसी का एक अंश, एक घटक है। जीवात्मा का, परमात्मा का स्वरूप क्या है? आत्मा परमात्मा का प्रतीक अंश किस प्रकार है? इन प्रश्नों का समाधान करते हुए केनोपनिषद में ऋषि ने एक बहुत मार्मिक बात कही है, जिज्ञासु पूछता है ः

ओउम केनेषितं पतति प्रेषितं मनः,

केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।

केनेषितां वाचमिमां वदंति,

चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो-युनक्ति।       

(यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा रचित किताब ‘विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व’ से लिए गए हैं)