संकट में हिमाचल का पावर सेक्टर

सरकार ने भी माना, परियोजना क्षेत्र में स्थानीय लोग बन रहे बाधक

शिमला – हिमाचल प्रदेश का ऊर्जा क्षेत्र संकट के दौर से गुजर रहा है। जिस ऊर्जा राज्य की कल्पना कर हिमाचल आगे बढ़ा था, आज उसमें कई तरह की रुकावटें पैदा हो चुकी हैं। खुद सरकार ने यह माना है कि यहां पर पावर प्रोजेक्ट खतरे हैं। यहां ऊर्जा के दोहन को बढ़ाने के लिए सरकार अपनी ओर से प्रयास कर रही है, परंतु कई कारक इसमें बाधा डाल रहे हैं। सदन में चंबा जिला के सियूल पावर प्रोजेक्ट को लेकर विधायक आशा कुमारी ने सवाल उठाया था, जिस पर मुख्यमंत्री ने कहा कि स्थानीय लोग व झंडा यूनियनें बाधा उत्पन्न कर रही हैं। कई तरह की रियायतें यहां पर ऊर्जा उत्पादकों को सरकार की ओर से दी जा रही हैं, परंतु  मजबूरी में उत्पादक अपने प्रोजेक्ट छोड़ने की इच्छा जता रहे हैं। कइयों ने काम बिल्कुल रोक दिया है। इसी तरह से सियूल-एक परियोजना भी है, जिसका काम 50 फीसदी होने के बाद कंपनी इसे छोड़ गई। उन्होंने कहा कि कंपनी से बातचीत हुई है, जो प्रोजेक्ट बनाने को तैयार हैं। कंपनी ने लिखित रूप में दिया है, लेकिन वहां पर स्थानीय लोगों से बात करनी होगी। सीएम ने कहा कि वहां की विधायक भी इसमें सहयोग करें। इसके अलावा सियूल के साथ लगने वाले दूसरे प्रोजेक्टों जिन पर अभी काम शुरू नहीं हुआ है, उन्हें एनएचपीसी को देने पर भी विचार किया जाएगा। यह सुझाव आशा कुमारी ने सीएम को दिया था। आशा कुमारी का कहना था कि हिमाचल में बिजली की बड़ी क्षमता है, परंतु आज प्रोजेक्ट मालिक फंस कर रह गए हैं। पावर सेक्टर एक तरह से नेगेटिव लिस्ट में जा चुका है। एक मेगावाट, जो पहले एक करोड़ में बनता था आज पांच करोड़ में बन रहा है, जिससे यहां प्रोजेक्ट वाइबल नहीं रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में 45 हजार मेगावाट क्षमता ऊर्जा का दोहन किया जा रहा है, जिसमें से हिमाचल प्रदेश 11 हजार मेगावाट का उत्पादन कर अपना योगदान दे रहा है।

700 प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में

सीएम ने कहा कि सरकार ने कुछ रियायतें ऊर्जा उत्पादकों को दी हैं, जिससे वह प्रोत्साहित हुए हैं, लेकिन स्थानीय लोग काम आगे नहीं बढ़ने देते। ऐसे 700 से ज्यादा प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में पड़े हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों को नाजायज मांग नहीं रखनी चाहिए।