सच्चाई का मार्ग

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…

वह बहुत ही धीमे-धीमे  किसी एक से बात कर पाते थे। उनको पीने के लिए सिर्फ जौ का पानी ही दिया जाता था। वह भी निगलने में उन्हें काफी कठिनाई होती थी, लेकिन फिर भी इस महामानव की कृपा की कोई हद नहीं थी। हमेशा ही वह अपने भक्तों को उपदेश देते रहते थे। नरेंद्र को अपने पास बुलाकर कभी-कभी कहते, नरेंद्र मेरे शिष्यों में तू सबसे ज्यादा बुद्धिमान व शक्तिशाली है,उनकी रक्षा और उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलाना अब तुम्हारा कर्त्तव्य है। क्योंकि अब मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। एक बार रात के समय नरेंद्र की तरफ आंखों में आंसू भरकर देखते हुए बोले, पुत्र आज मैंने तुझे अपना सब कुछ दे दिया और मैं भिखारी बन गया। नरेंद्र को थोड़ा ज्ञान होने लगा कि अब श्रीराम कृष्ण जी की जीवन लीला समाप्त होने वाली है, इसलिए वे बच्चों की तरह उनके सामने रोने लगे। उनके बिना तो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था। यह बात नरेंद्र के मन को अंदर से खाए जा रही थी और इस बात पर वे व्याकुल हो उठता था। जब अपने को काबू करने में वह असमर्थ होता जा रहा था, तो कमरे से बाहर निकल गया। यह घटना श्री रामकृष्ण देव की महासमाधि के दो दिन पहले की है। मानते हैं, क्या यह सही है?  इस सच्चाई का पता अभी तक नहीं हो पाया था। अब अगर श्रीरामकृष्ण खुद इस समस्या को सुलझाएंगे तो ठीक है, तभी इसी बात का यकीन भी होगा। धर्म संस्थापक के लिए जो शक्ति युग-युग में अवर्तीण होती है,श्रीरामकृष्ण क्या उसी का समष्टि रूप हैं? क्या वाकई श्रीरामकृष्ण आज के युग के अवतार हैं? तभी उसी समय श्रीरामकृष्ण ने आंखें खोलकर नरेंद्र पर एक भरपूर दृष्टि जमाई और बोले, नरेंद्र बेटा अभी तक तुझे विश्वास नहीं हुआ? अरे जो राम जो कृष्ण हैं वो ही अब की बार एक आधार में श्रीरामकृष्ण तेरे वेदांत की दृष्टि से नहीं हैं। नरेंद्र का मन शांति से भर गया। वो वहीं खड़े हुए थे। श्रीरामकृष्ण ने इस प्रकार मानों ताला लगाकर नरेंद्र का समाधि पथ रुद्ध कर रखा, तभी हम विश्वप्रेमिक पीडि़तों के ताता स्वामी विवेकानंद को पा सके। हमें याद रहे कि श्रीरामकृष्ण ने ही सप्तऋषि मंडल के इन ऋषि को ध्यान भूमि से इस लोक में खींच लाकर जगत कल्याण के काम में नियुक्त किया था। उनको यंत्र बनाकर अपने युगधर्म का सम्यक रूप से प्रचार किया था। श्रीरामकृष्ण ने सभी शिष्यों को बुलाया और नरेंद्र को इनका नेता घोषित कर दिया। उनका एक ही उद्देश्य था कि इन युवकों के द्वारा उनका साम्यमैत्री प्रेम विश्वबंधुत्व, त्याग, तपस्या, ईश्वरपरायणता एवं महासामवय का युगसंदेश संपूर्ण विश्व में हरेक नर-नारी तक पहुंच जाए। श्रीरामकृष्ण जी की शैय्या को चारों ओर से सभी ने घेर रखा था।