सिद्ध बाबा शिब्बोथान

हिमाचल देवभूमि के नाम से अपने आंचल में स्थित अनेक प्राचीन  देवस्थलों के लिए जाना जाता है। प्राचीनकाल से ही इन देवस्थलों पर लगने वाले मेलों से आपसी भाईचारे की अनूठी मिसाल मिलती है। उतरी भारत में इन्हीं देवस्थलों में कांगड़ा जिला का प्राचीन देवस्थल बाबा शिब्बोथान धाम भरमाड़ भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र बिंदु है। इस पावन देवस्थल में इन दिनों श्रावण-भादों महीनों में लगने वाले मेले चल रहे हैं। जहां लाखों की तादाद में दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा शिब्बोथान के दरबार में नतमस्तक होते हैं। इन मेलों के दौरान भक्तों का सैलाब उमड़ कर आता है, जिससे हमारे देश-प्रदेश की मेला संस्कृति की अनूठी मिसाल मिलती है। बाबा शिब्बोथान धाम मंदिर का इतिहास नौ सदी पुराना है ।

बाबा शिब्बोथान धाम के इतिहास को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार बाबा शिब्बो का जन्म माता सुधावती एवं पिता आलम के घर सिद्धपुर घाड़ नामक स्थान पर हुआ। भगवान शिव में पूर्ण आस्था व अखंड भक्ति के कारण दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत शिब्बो के दो भाई मेधवा व भीरू थे। जिनसे आगे इनका वंश चला। इनकी बहन का नाम शिब्बा देवी था। विवाह से पूर्व इनकी बहन शिब्बा देवी के पति का अचानक देहावसान होने से इनकी बहन पति के साथ सती हो गई। शिब्बा देवी का मंदिर सिद्धपुर घाड़ में स्थित है । बहन शिब्बा के सती हो जाने पर बाबा शिब्बो ने भरमाड़ के जंगलों में घोर तप किया। बाबा शिब्बो की अखंड भक्ति व तपस्या से जाहर वीर गुग्गा जी ने प्रसन्न होकर अपनी संपूर्ण देवमंडली के साथ प्रकट होकर इन्हें साक्षात दर्शन दिए तथा आशीर्वाद दिया। बाबा शिब्बो ने प्रकट हुए जाहरवीर गुग्गा जी से निवेदन किया कि हे देव! इस धरती पर सांप के काटने से असंख्य लोग काल का ग्रास बन जाते हंै। उन्हें जहर मुक्ति के लिए कोई वरदान देने की कृपा करें। बाबा शिब्बो ने उनसे चारपासा खेल खेलने का निवेदन किया। जाहरवीर गुग्गा जी ने बाबा शिब्बो के साथ चारपासा खेल खेला तथा उनकी निष्काम भक्ति से अति प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिए। पहला वरदान  यह कि तेरे इस पावन दरबार में किसी भी प्रकार के जहर से पीडि़त जो भी प्राणी आएगा, तेरे कुल के पुरुषों द्वारा 3 चरणामृत की चूलियां पिलाने से जहर के प्रभाव से मुक्त हो जाएगा। दूसरा वरदान यह दिया कि जिस स्थान पर चारपासा खेल खेला था, वहां से जो भक्त दरबार में माथा टेकने के उपरांत मिट्टी को अपने घर ले जाएगा तथा तेरे कुल के पुरुषों द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उपयोग करेगा, वह भी जहर के प्रभाव से मुक्त रहेगा। तीसरे वरदान में जाहरवीर गुग्गा जी ने कहा कि इस स्थान का नाम सिद्ध बाबा शिब्बोथान के नाम से विख्यात होगा व मेरी पूजा भी तेरे नाम से होगी। मंदिर के सेवको अनुसार इस पावन मंदिर के अंदर अति प्राचीन संगलों की विशेष पूजा गुग्गा नवमी के दिन की जाती है। वहीं इस पवित्र धाम में बाबा शिब्बो जी, जाहरवीर गुग्गा जी, मत्स्यंेद्र नाथ, गोरखनाथ, बाबा कयाल, अजीपाल, कालिया वीर,  माता बाछला, नाहर सिंह, कामधेनु, बहन गुगड़ी, वासुकी नाग भी मूर्ति रूप विराजमान हैं।

इस पावन स्थान में नव शक्ति का आधार नवपिंडियों सहित शिवलिंग कैलाशपर्वत आकार तुल्य है। बाबा जी के मंदिर के सामने सदा हरा-भरा रहने वाला कांटों से रहित पवित्र बैरी (बेर) का अद्भुत पेड़ देव तथा प्रकृति का अनूठा आध्यात्मिक संदेश देता है। मंदिर के पूर्व छोर की तरफ  ही वह भंगारा नामक स्थान है, जिसकी मिट्टी लोग घरों को ले जाते हंै जिसे पानी में डालकर छिड़काव तथा स्नान से अनेक व्याधियां, भूतप्रेत छाया व रोगों से मुक्ति मिलती है। बाबा शिब्बो जी के दरबार में सर्पदंश से पीडि़त हजारों लोग आते हंै तथा आशीर्वाद प्राप्त करके सकुशल घरों को लौटते हैं। 

                           -राजेंद्र पंडित,  गोंदपुर बनेहड़ा