मेरा भविष्य मेरे साथ-3
करियर काउंसिलिंग कर्नल रिटायर्ड मनीष धीमान
शहर के कालेज में दाखिला होने पर गांव के सबसे मशहूर दर्जी द्वारा सिले हुए दो जोड़ी पेंट और शर्ट, दिल्ली वाली बुआ जो खास करके मेरे कालेज जाने के लिए करोल बाग से बिना कालर वाली दो टी-शर्ट लाई थी तथा गांव की ही दुकान से सेमी प्लास्टिक और रबर के नए जूतों का जोड़ा खरीद कर मैं तैयारी कर चुका था। जब मैं बन-ठन के पहले दिन कालेज पहुंचा तो मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था, आखिर अपने स्कूल का मैं अकेला ऐसा छात्र था, जो साइंस के साथ पास हुआ था। पर जैसे-जैसे कालेज में समय बीतता गया, साथ वाले स्टूडेंट्स का रहन सहन, वेशभूषा, बातचीत का तरीका और खासकर अंग्रेजी और हिंदी भाषा पर पकड़ मेरे आत्मविश्वास को कमजोर करती गई । मैं जिस स्कूल में पढ़ा था उसमें ज्यादातर डोगरी भाषा में बात की जाती थी, हिंदी सिर्फ किताब पढ़ने के लिए या फिर किसी प्रश्न के उत्तर के लिए ही प्रयुक्त की जाती थी। अंग्रेजी भाषा में बातचीत करना छात्रों के लिए ही नहीं अपितु अध्यापकों के लिए भी दूर की कौड़ी हुआ करती थी, पर इन सब चीजों में ध्यान ना देते हुए मैं बार-बार अपने आत्मविश्वास को मजबूत करता था और पूरी शिद्दत के साथ दिए हुए हर काम को पूरा करने की कोशिश करता था। शहर के अच्छे स्कूलों कॉन्वेंट और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ कर आए कुछ लड़के और लड़कियां मेरे जैसे गांव से आए पेन्डू छात्रों का अकसर मजाक उड़ाया करते थे । हमारे साथ मेडिकल की पढ़ाई करने वाली एक छात्रा जो देखने में किसी परी से कम नहीं थी हमेशा अच्छे और महंगे परिधानों के साथ सज धज कर कार में कालेज आया करती थीं। क्लास का हर लड़का उसका दीवाना था और उससे बात करना चाहता था मैं भी शायद उस बाल्य काल से यौवन की तरफ रखे जाने वाले कदमों में उस लड़की की तरफ मन ही मन आकर्षित था। एक दिन मैं उस लड़की के पीछे उसकी क्लास में रसायन विज्ञान जो हमारा कॉमन सब्जेक्ट था का पीरियड लगवाने के लिए पहुंच गया और उसी के ही पिछले वाले डेस्क पर बैठ कर उसको इंप्रेस करने के लिए उल्टे सीधे शब्द और मुहावरे बोलने लगा। जैसे क्लास शुरू हुई तो प्रोफेसर ने जो पढ़ाने से ज्यादा लड़कों और लड़कियों की बेज्जती करने को अपना पहला कर्त्तव्य समझता था, उसने मेरे को बुलाया और पिछली क्लास में पढ़ा, हुए कुछ प्रश्न पूछे, मैंने उसको बताया कि ‘मैं नॉन मेडिकल की क्लास से हूं और यह हमारा कॉमन सब्जेक्ट है हमारे प्रोफेसर के आज न आने की वजह से मैं पढ़ाई करने के लिए आपकी क्लास लगवाने आया हूं। उस प्रोफेसर ने मेरे से बहुत सारे प्रश्न करना शुरू कर दिए जैसे कि मैंने उसकी क्लास में जाकर कोई बहुत बड़ा जुर्म कर दिया हो, उसने मेरी बहुत बेज्जती की और सारी क्लास के सामने कहा कि मैं जानता हूं तुम लड़के गांव से जब शहर आते हो तो यहां पर पढ़ने के बजाय लड़कियों से शरारत करते हो। तुम यहां पढ़ने नहीं बल्कि गुंडागर्दी और मस्ती करने आते हो। यही पर आग में घी डालते हुए उस लड़की ने भी कहा सर ये लड़का पीछे बैठकर मेरे से शरारत कर रहा था। बस फिर क्या था, प्रोफेसर ने मेरे को खूब खरी-खोटी सुनाई, बोर्ड साफ करवाया और फिर क्लास से बाहर निकाल दिया। इतनी सारी बेज्जती के बाद मैं शाम को कमरे में पहुंचा और यह सब भाई को बताया। मैंने बताया कि किस तरह से गांव के होने के कारण और अंग्रेजी स्कूल में न पड़े होने के कारण आज मेरे को प्रोफेसर और स्टूडेंट्स के सामने बेइज्जती सहन करनी पड़ी । मेरे को रसायन विज्ञान के सभी प्रश्नों के जवाब आते थे पर अच्छी तरह से अंग्रेजी न बोल पाने के कारण मैं आज हंसी का पात्र बन गया। दुखी मन से मैं अपने आप को कुचोटते हुए सो गया । जब मैं सुबह उठा तो दीवार पर लिखा था। आप जैसे हो उस हकीकत को कबूल करो बजाय इसके कि काश मैं ऐसा होता। मैंने भाई को कहा यह सब तो मैं कर लूंगा पर मैं उस लड़की को और प्रोफेसर को सारी क्लास के सामने बताना चाहता हूं कि मैं उनसे कम नहीं हूं इस पर भाई ने कहा कि जब कोई आपके स्वाभिमान और योग्यता पर संदेह या प्रश्न करे तो उसका जवाब शब्दों से नहीं बल्कि अपने आप को सिद्ध करके दिया जाता है। जब मैंने कहा कि मैं अपनी कमियों को दूर करने के लिए किसकी मदद लूं, तो भाई ने कहा किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए आपको खुद मेहनत करनी पड़ती है, आपका अपने से बड़ा मददगार इस दुनिया में और कोई नहीं है। याद रखना पतवारों के सहारे, तो हर कोई किनारे पाता है। पर अपने बाजुओं के दम से दरिया पार करने वालों को दुनिया मानती है। मैंने भी यह बात गांठ बांध ली और अपना सारा वक्त पढ़ाई की तरफ लगाना शुरू कर दिया। सुबह-शाम, उठते-बैठते, हर बात अंग्रेजी भाषा में करना शुरू कर दी, कमरे के पोस्टर, किताब , पेड़, पत्थर मैं हर वस्तु से अंग्रेजी में बात करने लगा और अपने सारे सब्जेक्ट को रात दिन मेहनत कर समझने लगा उसका परिणाम यह निकला कि मैं प्रथम वर्ष में अपने कालेज में मेडिकल और नॉन मेडिकल दोनों में प्रथम आया। उस दिन मेरा आत्मविश्वास फिर से सातवें आसमान पर था। मेरे को बधाई देने वालों में वह प्रोफेसर और लड़की भी थे जिन्होंने कुछ दिन पहले मेरे आत्म सम्मान पर चोट पहुंचाने की कोशिश की थी। आज जब मैं उनकी आंखों में आंखें डाल कर उनकी बधाई का धन्यवाद कर रहा था, तो मेरे को महसूस हो रहा था कि शायद मैंने उनको उस बेज्जती का जवाब दे दिया है और उनकी आंखंे भी मानो अपने उस कृत्य पर शर्मिंदा थी और माफी चाहती थी। इससे पता चलता है कि आप क्या हो ,कहां से आए हो, किस बैकग्राउंड से हो, इसको कबूल करो। हर व्यक्ति में एक गुण और काबिलीयत होती है हमें अपनी सच्ची लगन और मेहनत से उसको प्रमाणित करना होता है। कभी भी अच्छे कपड़े और अच्छी भाषा में बात करने वालों को देख कर अपने आप को नीचा नहीं समझना चाहिए भाषा सिर्फ एक विचारों को आदान-प्रदान करने का माध्यम है न कि किसी की काबिलीयत या ज्ञान पैमाना। हमेशा याद रखो कि आप जैसे हो उस हकीकत को कबूल करो बजाय इसके कि काश मैं ऐसा होता। दूसरा अगर कोई आपके स्वाभिमान और योग्यता पर संदेह या प्रश्न करता है तो उसका जवाब शब्दों से नहीं बल्कि अपने आप को सिद्ध करके दो। सबसे महत्त्वपूर्ण आपका, खुद से बड़ा मददगार इस दुनिया में और कोई नहीं है।