अब नवंबर में राम मंदिर

अयोध्या विवाद पर तारीख-दर-तारीख का सिलसिला टूट सकता है। भारत एवं सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने सुनवाई और जिसकी आखिरी तारीख 18 अक्तूबर तय कर दी है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को फैसला लिखने में चार सप्ताह का वक्त चाहिए। चूंकि 17 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो रहे हैं, लिहाजा वह उससे पहले अयोध्या विवाद पर निर्णायक फैसला देना चाहेंगे। अब कोई भी पक्ष नहीं चाहेगा कि फैसले को लटकाया, भटकाया या अटकाया जाए। तारीखों के इस सिलसिले के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि 17 नवंबर से पहले अयोध्या विवाद का निर्णायक निष्कर्ष सामने आ सकता है-राम मंदिर या मस्जिद! मुद्दा या मामला आस्था, इबादत का नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने छह अगस्त से रोजाना सुनवाई के तहत जमीन की मिलकीयत सरीखे व्यावहारिक पक्ष पर दलीलें सुनी हैं और साक्ष्य देखे हैं। कहने को यह मामला 1934 से शुरू हुआ, तो मुस्लिम पक्ष 1949 से मानता है। उनके वकील राजीव धवन ने भगवान राम के अस्तित्व और जन्म को ही सवालिया बना दिया। उन्होंने यह दलील भी दी कि 1949 में हिंदुओं ने घुसपैठ की और राम की मूर्तियां छल से रख दीं। बहरहाल यह विवाद भी संविधान पीठ के विवेक पर छोड़ते हैं। राम को काल्पनिक पात्र मानने वालों की भी कमी नहीं है। कांग्रेस ने यूपीए सरकार के दौरान सर्वोच्च अदालत में यह हलफनामा तक दाखिल किया था कि रामसेतु और प्रभु राम एक काव्य के काल्पनिक पात्र और घटना हैं। यह दीगर है कि बाद में वह हलफनामा वापस ले लिया गया। अब मौजूदा संदर्भ में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने सवाल किया है कि महाराजा दशरथ के महल में 10,000 कमरे होंगे, लेकिन राम का जन्म किस कमरे में हुआ था? बहरहाल हमें लगता है कि संविधान पीठ के सामने ऐसे वाहियात सवाल बेमानी होंगे। बुनियादी सवाल मंदिर और मस्जिद का है। यह सवाल 500 साल पुराना भी है और 130 साल पुराना भी है। एक वकील की दलील थी कि यह शगूफा ईस्ट इंडिया कंपनी ने उछाला था। दरअसल सवाल यह भी है कि सर्वोच्च अदालत के फैसले को पूरी तरह स्वीकार किया जाएगा या नहीं? अपने-अपने कालखंडों में बाबर और औरंगजेब सरीखे मुगल बादशाहों ने हिंदुओं और उनके मंदिरों पर क्रूर और बर्बर प्रहार किए थे, क्या इस पर भी संविधान पीठ की कलम चलेगी? सवाल यह भी है कि ऋग्वेद, स्कंद पुराण, अन्य ग्रन्थों में भगवान राम से संबंधित जो उदाहरण दिए गए हैं, क्या उन्हें साक्ष्य माना जाएगा? जिस दौर में राम का जन्म हुआ, तब नगरपालिका या राजपत्र के रिकार्ड कहां होते थे? जन्म पंजीकरण प्रणाली की शुरुआत कहां हुई थी? दरअसल मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना में जो आस्था है, वही अयोध्या के राम में हिंदुओं की है। इसे आज की अदालत और कानूनी बहस खारिज कैसे कर सकती है? अयोध्या का जो इतिहास उपलब्ध है और जर्मन, ब्रिटेन, चीन के भारत आए यात्रियों ने जो किताबें लिखी हैं, उनमें अयोध्या में राम के जन्म और उनके अवतार को माना गया है। इनके अलावा 1976 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के नेतृत्व में जो खुदाई की गई थी, उसमें आठ खंभे मिले थे। उन पर शिव, कृष्ण, राम और कमल के फूल के चित्र बने थे। क्या उन खंभों को भी संघ-भाजपा ने रखवा दिया था? किसी भी मस्जिद में चित्रों की कोई परंपरा नहीं रही है। एएसआई के ये भी निष्कर्ष थे कि बाबर के दौर में हिंदू मंदिर तोड़े जाते थे और मस्जिदें बनाई गईं। बहरहाल ऐसे तमाम तथ्यों और सत्यों को संविधान पीठ के सामने चुनौती दी गई है। यही हमारी लोकतांत्रिक सोच का प्रमाण है कि हिंदू करीब 100 करोड़ हैं, लेकिन 17 करोड़ मुसलमानों की दलीलें भी बराबरी के स्तर पर सुनी गई हैं। दरअसल हिंदू मानसिक तौर पर सहिष्णु है, लिहाजा मजहबी मामले में भी मुस्लिम समुदाय से कभी हिंसक टकराव नहीं लिया। हालांकि ऐसे तत्त्व हैं, जो इसी सांप्रदायिकता पर खेलते रहे हैं, हिंदुओं को मनुवादी करार देकर सियासत करते रहे हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि इस विवाद का संवैधानिक निपटारा सामने आ सकता है। कमोबेश उसे समरसता के साथ स्वीकार करना चाहिए।