क्रिकेट मेरे आंगन की

हिमाचल क्रिकेट का इतिहास अपने ही प्रांगण में खुद को दोहरा रहा है। एचपीसीए की कमान न तो लौटी है और न ही बदली, बल्कि सारी परिक्रमा के बीच सितारे की तरह उभरे अरुण धूमल का यह सार्वजनिक अनुमोदन है। क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष होना इतना आसान नहीं कि कोई सामान्य खिलाड़ी यह भ्रम पाल ले या हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन इतनी लघु इकाई है कि अनुराग ठाकुर के पदचिन्हों को परिवार के बाहर से कोई उधार ले सके। आखिर हिमाचल क्रिकेट वास्तव में चली कहां से और इसके उत्थान के पीछे कौन रहा, यह स्पष्ट है तथा आइंदा भी इस एसोसिएशन का कबूलनामा ऐसे सफर को प्रमाणित करता रहेगा। यह क्रिकेट की कंपनी है-पार्टी है, कोई सामान्य खेल संघ नहीं। इसके वजूद में ताकत, ताकत को जीने का एहसास और राष्ट्रीय इतिहास में बरकरार रहने की कसौटियां हैं, इसलिए हिमाचल क्रिकेट के हर आयाम में एक परिवार की शिनाख्त जायज है। यह इसलिए भी कि हिमाचल में क्रिकेट का अपना संघर्ष रहा है और इसको पूरी तरह धूमल परिवार और खासतौर पर सांसद अनुराग ठाकुर ने झेला है। क्रिकेट की कहानी में अगर कोई नायक है तो यह अनुराग ठाकुर के सिवा कम से हिमाचल से तो कोई और नहीं। बीसीसीआई तक बतौर अध्यक्ष पहंुचना शायद ही किसी अन्य हिमाचली के लिए संभव है, बल्कि आज की एचपीसीए तक पहुंचना भी अति दुर्लभ घटना मानी जाएगी। अतः अरुण धूमल की टीम में जो भाग्यशाली शरीक हो रहे हैं, उन्हें एक तरह से अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्ष का अशीर्वाद ही मिल रहा है। हिमाचल की खेलों में क्रिकेट का उत्थान खिलाडि़यों की वजह से कितना है, लेकिन यह प्रमाणित है कि समूचे प्रदेश में इसकी अधोसंरचना सशक्त हुई, वरना खेल विभाग के पास तो मैदानों का टोटा है या जहां खेल आयोजन होते हैं, वहां वाहन पार्किंग, व्यावसायिक मेले और नेताओं की सभाएं भी होती हैं । जाहिर तौर पर यह श्रेय तो अनुराग ठाकुर के कार्यकाल को जाएगा। फिर भी एचपीसीए की बनावट को समझना इतना भी आसान नहीं कि इसे किसी खेल अधिनियम के दायरे में देखा जाए। वीरभद्र सिंह ने काफी प्रयास किया, लेकिन खेल विधेयक को क्रिकेट के मुकाबले खड़ा नहीं कर पाए। वर्तमान खेल मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर हालांकि स्वीकार करते हैं कि खिलाडि़यों को ही खेल संघों का पदाधिकारी होना चाहिए, लेकिन यथार्थ में यह स्थिति नहीं है। हिमाचल के अधिकांश खेल संघों पर राजनीतिक दरबार ही सजा है। ऐसे में खेल नीति के नए एजेंडे में शायद ही कुछ दिखाई दे। वास्तव में जयराम ठाकुर सरकार ने खेल अधिनियम जैसे अभिप्राय से खेल संघों को मुक्त कर दिया, तो फिर क्रिकेट के सामने किसकी औकात कि इससे कुछ पूछे। दूसरी ओर काफी समय से परोक्ष में क्रिकेट एसोसिएशन चला रहे अरुण धूमल को अब फ्रंट फुट पर आकर खेलना होगा। क्रिकेट के इर्द-गिर्द न तो लोढा समिति का उतना खौफनाक पहरा अब दिखाई दे रहा है और न ही इसे अब हिमाचल की सत्ता का फायदा मिल रहा है। यह दीगर है कि बतौर केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर अपने प्रभाव से कांगड़ा एयरपोर्ट के विस्तार में रुचि दिखाने के अलावा धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम को सक्रिय बनाए रखने में छोटे भाई का मनोबल जरूर ऊंचा करेंगे। अरुण धूमल के लिए आगामी सीजन में आईपीएल को यहां से जोड़ने की सबसे बड़ी चुनौती है, जबकि हिमाचल में क्रिकेट विस्तार की बंद फाइलों से मुखातिब होने की परिकल्पना भी रहेगी। राजनीतिक तौर पर भी अरुण धूमल के लिए क्रिकेट के मंच पर कोई बड़ा खेल इंतजार कर सकता है। वह अपने बड़े भाई और पिता के राजनीतिक अभियानों के कर्णधार रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इसी तरह अनुराग ने क्रिकेट के जरिए युवा मतदाताओं के जोश पर संसद का सफर शुरू किया था। भाजपा इस युवा चेहरे को पसंद करे, तो संभावना मैदान से बाहर भी है।