परमात्मा का प्रकाश

बाबा हरदेव

मानो इंद्रधनुष के फैलाव की भांति जैसे वर्षा के दिनों में जब आकाश में पानी की बूंदे लटकी होती है और वायुमंडल में सूरज की किरणें पानी की बूंदों से गुजरकर सात हिस्सों में टूट जाती है और फिर सात रंगों का इंद्रधनुष निर्मित हो जाता है। अब इंद्रधनुष के बारे में झूठी कोई चीज देखने में नहीं आती क्योंकि ये आकाश में एक कोने से दूसरे कोने तक फैला हुआ तो जरूर दिखाई देता है,मगर पकड़ में नहीं आता यानी ये इंद्रधनुष भ्रम का प्रतीक है। अतः तत्त्वज्ञानियों ने सही फरमाया है कि जो मनुष्य अभी संसार में भटक रहा है और जितना मनुष्य वासना रूपी इंद्रधनुष इससे परे हटता जाता है और  इसे पकड़ने का कोई उपाय नहीं है। हमारा मन एक प्रिज्म की भांति है और जो इस संसार में इतने रंग दिखाई पड़ रहे हैं ये सब हमारे मन के प्रिज्म से टूट कर पड़े रहे हैं। मानो हमारी मन रूपी बूंद संसार रूपी सारा इंद्रधनुष निर्मित हो रहा है और अगर बीच में हम अपने मन को हटाने की कला पूर्ण सद्गुरु से सीख लें तो ये संसार रूपी इंद्रधनुष खो जाएगा। मानो इस सूरत में मन परे हटते ही या तो फिर सफेद रह जाता है या फिर काला रह जाता है। इसी प्रकार कुछ महात्माओें का कथन है कि परमात्मा प्रकाश की तरह है और कुछ फरमाते हैं कि परमात्मा गहन अंधकार की भांति है ये दोनों संभावनाएं हैं क्योंकि धार्मिक ग्रंथों की धारणा के मुताबिक जब प्रलय होती है तो सब कुछ अंधकार हो जाता है, शून्य रह जाता है और जब पुनः सृष्टि की रचना होती है तो फिर पदार्थ प्रकट होता है और ये पदार्थ शून्य से आता है यानी शून्य से आता है संसार यानी शून्य अंधकार पूर्ण प्रकाश। मानो शून्य का अर्थ है छिपा हुआ पूर्ण अप्रकट पूर्ण और पूर्ण का मतलब है प्रकट हो गया शून्य। मानो शून्य होते ही मनुष्य पूर्ण होने का अधिकारी हो जाता है। अब स्पष्ट हुआ मनुष्य जब मन के द्वारा देखता है, तो फिर रंग ही रंग फैल जाता है फिर उलझन खड़ी हो जाती है फिर इंद्रधनुष खड़ा हो जाता है और मन के परे हटते ही सभी रंग खो जाते हैं और एक अभाव रह जाता है। जीवन में जो भी महान उतरता है वो तभी उतरता है जब मनुष्य नहीं होता मगर इसका ये मतलब नहीं है कि तब मनुष्य सच में नहीं होता। जब कहा जाता है कि मनुष्य नहीं होता इसका अर्थ होता है कि केवल मनुष्य का जो मिथ्या व्यक्तित्व है, जो झूठा आवरण है वो नहीं होता। अध्यात्म की भाषा समझने में कई बार मुश्किल पेश आती है क्योंकि ये भाषा शब्दों का बड़ा मौलिक प्रयोग करती है। मनुष्य का जो गहरा केंद्र है ये तो होगा ही क्योंकि ये तो परमात्मा ही है।

न था कुछ तो खुदा था कुछ न होता तो खुदा होता

डूबोया मुझको होने ने न होता मैं तो क्या होता।