पौंग बांध विस्थापित परिवारों की व्यथा

सुखदेव सिंह

लेखक, नूरपुर से हैं

दशकों से विस्थापन का दंश झेल रहे पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मिलने वाले मुरब्बों की प्रक्रिया कब पूरी होगी, कोई नहीं जानता है। हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने राजस्थान सरकार से मिलकर कुछ पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बे दिलाने की पहल की थी, मगर पौंग बांध विस्थापितों ने राजस्थान सरकार के इस फैसले पर एतराज जताया कि जमीन एक जगह की बजाय टुकड़ों में उन्हें दी जाएगी। इसलिए ऐसी जगह पर न तो बिजली, पानी और सड़क नाम की सुविधा है। ऐसे मुरब्बे लेने का ही क्या औचित्य जहां पर खेतीबाड़ी भी न की जा सके…

दशकों गुजर जाने के बावजूद बेघर हुए लोगों को न्याय पाने के लिए सड़कों पर उतरना पड़े तो इससे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था की त्रासदी और क्या हो सकती है। केंद्र और हिमाचल प्रदेश में भाजपा शासित सरकारें होने पर भी इन असहाय पौंग बांध विस्थापित गरीब परिवारों के नाम पर सिर्फ  राजनीति ही की जाती रही है। पीडि़त व्यक्ति को देरी से मिलने वाला न्याय, न्याय नहीं होता, जहां कई पीढि़यों के लोग बेबसी की वजह से मर चुके हों। सात दशकों बाद पौंग बांध विस्थापितों को उनके हक मिल सके। हाई पावर कमेटी एक बार फिर से अगले महीने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखने वाली है। इस कमेटी का चयन सर्वोच्च न्यायालय की तर्ज पर ही किया गया है जिससे बेघर हुए लोगों को जल्दी न्याय मिल सके। अब पौंग बांध विस्थापितों को न्याय की आस तो बस सिर्फ  सर्वोच्च न्यायालय से है। दशकों से विस्थापन का दंश झेल रहे पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मिलने वाले मुरब्बों की प्रक्रिया कब पूरी होगी, कोई नहीं जानता है।

हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने राजस्थान सरकार से मिलकर कुछ पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बे दिलाने की पहल की थी, मगर पौंग बांध विस्थापितों ने राजस्थान सरकार के इस फैसले पर एतराज जताया कि जमीन एक जगह की बजाय टुकड़ों में उन्हें दी जाएगी। इसलिए ऐसी जगह पर न तो बिजली, पानी और सड़क नाम की सुविधा है। ऐसे मुरब्बे लेने का ही क्या औचित्य जहां पर खेतीबाड़ी भी न की जा सके। पौंग बांध विस्थापितों ने इसके बाद बैठक करके अपने हकों के लिए लड़ने की आगामी रणनीति बनाई। पौंग बांध विस्थापित ऐसे हालात में अपने आपको दशकों से ठगा महसूस कर रहे हैं। कभी कांगड़ा जिला की सबसे उपजाऊ हल्दून घाटी के लोग खेतीबाड़ी करके अपना जीवन यापन करते थे। सन 1926 में पंजाब सरकार की और से पौंग बांध बनाने की प्रोपोजल तैयार की गई। सन 1955 में जीओलॉजिकल सर्वे विभाग ने पूरे एरिया का अध्ययन किया।

सन् 1959 में पौंग बांध का डिजाइन बनाया गया और अंतिम रूप सन् 1961 को दिया गया। इस परियोजना के पावर स्टेशन सन 1974 को बनकर पूरे हुए। पौंग बांध कार्य सन् 1978 को शुरू होकर 1983 में पूरा हुआ। परियोजना के लिए विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास आज दिन तक नहीं हो पाया है। हिमाचल और राजस्थान सरकारों ने समझौते करके निर्णय लिया था कि पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बे दिए जाएंगे। कई दशकों के लंबे इंतजार के बाद मुरब्बे आबंटन की प्रक्रिया शुरू हो पाई है। राजस्थान सरकार गंगानगर की बजाय पौंग बांध विस्थापितों को जैसलमेर में बसाना चाहती थी। शुरुआती दौर में ही राजस्थान सरकार की नीयत में खोट साफ  देखी जा सकती थी, इसलिए ही विस्थापित अभी तक मुरब्बों पर सही काबिज नहीं हो पा रहे हैं। पौंग बांध विस्थापितों को जैसलमेर के दूर दराज इलाकों रामगढ़ और मोहनगढ़ में मुरब्बे दिए गए। वहां बेघर हुए हिमाचली लोगों को बसाया गया। इस बीच विस्थापितों की स्थायी समिति ने पुनर्वास का स्थान बढ़ाने की पुरजोर मांग की, मगर भूमि चयन का अधिकार केवल मात्र भारत सरकार और दोनों राज्यों की सरकारों का था। इसलिए यह प्रक्रिया सिरे न चढ़ सकी। उस समय राजस्थान में गंगानगर जिले में 2.20 लाख एकड़ भूमि पुनर्वास के लिए अधिसूचित हुई। हालांकि दोनों राज्यों की सरकारों के समझौते अनुसार जिन पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बा नहीं मिलेगा, उन्हें हिमाचल प्रदेश में ही बसाया जाएगा।

पौंगबांध निर्माण में उजड़े परिवारों में प्रदेश सरकार द्वारा 16,342 परिवारों को ही राजस्थान में भूमि आबंटन के लिए योग्य करार दिया गया था। अभी तक प्रदेश सरकार 105824 को राजस्थान में भूमि आबंटन करवाने में सफल हो पाई है। 1.43 लाख एकड़ जमीन का आबंटन होना अभी बाकी है। पौंग बांध विस्थापित जो वहां पर खुद खेतीबाड़ी कर रहे वही अपनी जमीनों पर काबिज हैं। कुछेक पौंग बांध विस्थापितों ने अपने मुरब्बे राजस्थान के लोगों को खेतीबाड़ी करने के लिए सौंप रखे थे। नतीजन ऐसे लोगों के साथ जालसाजी की गई है। गंगानगर में हिमाचली लोगों की अधिकतर जमीनों पर राजस्थान के प्रभावशाली लोगों ने उन पर जबरदस्ती कब्जा करके रखा है। ऐसे हालात में राजस्थान सरकार अवैध कब्जाधारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रही है। यही नहीं पौंग बांध विस्थापितों के कुछ मुरब्बों का अवैध कब्जाधारियों ने जाली दस्तावेज तैयार करके आगे उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के पास बेच दिया है।

ऐसे हालात में कब्जा दोवारा से लें पाना विस्थापितों के लिए मुसीबत बना हुआ है। पुनर्वास के चक्कर में कई लोगों पर आत्मघाती हमले करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। प्रदेश सरकार भी ऐसे अवैध कब्जाधारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही न करके पुनः विस्थापितों के कब्जे दिलाने में कोई पहल नहीं दिखा रही है। राजा का तालाब स्थित भू अर्जुन अधिकारी कार्यालय के सहयोग से नाजायज कब्जे हटाकर पुनः पौंगबांध विस्थापितों को दोबारा बसाने की कोशिशें जारी हैं। चुनाव नजदीक आते देखकर हर बार सरकारें पौंग बांध विस्थापितों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश करती है, मगर अभी तक सफल नहीं हो पाई हैं।