बाढ़ की त्रासदी

     -किशन सिंह गतवाल,सतौन, सिरमौर

हमारे देश में बाढ़ की  बड़ी विकट समस्या है। प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु भयंकर रूप धारण कर आती है। बिहार, महाराष्ट्र्र, गुजरात, कर्नाटक, गोवा आदि कई प्रांतों में बाढ़ कहर बन टूटती है और हजारों जानें चली जाती हैं और यह क्रम ऐसे ही चलता रहता है और शायद  चलता रहेगा। जब प्रतिवर्ष मानसून आता है और तबाही मचा कर हमें रुला कर चला जाता है, यह सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता है। हैरानी की बात यह है कि हम वक्त से कुछ सीख नहीं लेते हैं, बाढ़ आने पर हवाई सर्वेक्षण होता है, सर्वेक्षणों की रिपोर्ट्स तैयार होती हैं, क्षति के आकलन होते हैं, राहत राशि जारी होती है, वितरित होती है और मरहम लगाने की कोशिश होती है, न लोगों को नदी किनारों से दूर मकान बनाने को कहा जाता है और न ठीक प्लानिंग से कार्य कर सुरक्षित जगहों पर मकान बनवाए जाते हैं, और तो और ग्रीष्म ऋतु में नालियों, सीवरेज तथा गलियों की सफाई करवा कर अवरोध नहीं हटाए जाते हैं, लेकिन ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे के कारण हैं, प्राकृतिक। जब-जब हम प्रकृति से छेड़छाड़ करेंगे, तब-तब तबाही के बादल देखने को मिलेंगे। और तो और दरियायों के खनन रोकने की कोशिश तक नहीं होती है, यदि बाढ़ रोकने के लिए नदियों को जोड़ने- मोड़ने को अमलीजामा समय रहते पहनाया जाए तो इतनी तबाही और जानी नुकसान को रोका जा सकता है तथा हमेशा  के लिए  बाढ़ की समस्या का समाधान हो सकता है। पर पता नहीं वह दिन कब आएगा।