सरकार एवं शिक्षक पुरस्कार

सुरेश शर्मा

लेखक, कांगड़ा से हैं

प्रशंसा, पुरस्कार या शाबाशी पाने की इच्छा करना व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है। पुरस्कार वह होता है, जो किसी व्यक्ति को उसकी उपलब्धियों के आधार पर हजारों श्रेष्ठ व्यक्तियों में से चयन कर प्रदान किया जाए…

कर्म करो तथा फल की इच्छा मत रखो। श्रीमद भगवत गीता में कहे गए भगवान श्रीकृष्ण के ये शब्द केवल अच्छा करने के लिए प्रेरित करते हैं। भगवान ने कर्ता और कारक भी स्वयं को कहा है तथा उसका फल व्यक्ति के कर्म के अनुसार अपने हाथ मेें रखा है। अध्यात्म व दर्शन के अनुसार यह प्रेरिक वचन व्यक्ति को सत्कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। भौतिक दृष्टिकोण से अच्छा कार्य करने के फलस्वरूप कौन व्यक्ति मान-सम्मान, प्रोत्साहन व प्रशंसा नहीं पाना चाहता। यह मनुष्य की आंतरिक इच्छा व स्वभाव है कि वह उसके द्वारा किए गए अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहन पाए। चाहे वह प्रोत्साहन अच्छे शब्दों का हो, प्रशस्ति पत्र, प्रोत्साहन राशि या अलंकरण हो। ये सभी आकर्षण किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों को प्रेरित करते हैं। प्रशंसा, पुरस्कार या शाबाशी पाने की इच्छा करना व्यक्ति का स्वाभाविक गुण है पुरस्कार वह होता है, जो किसी व्यक्ति को उसकी उपलब्धियों के आधार पर हजारों श्रेठ व्यक्तियों में से चयन कर प्रदान किया जाए। सत्य पर आधारित पुरस्कार प्राप्त होने पर शांति, संतुष्टि व आत्मसम्मान की प्राप्ति होती है, जबकि झूठी संस्तुतियों, अनुमोदनों तथा अलंकृत शब्दों की इबारतों से पुरस्कार प्राप्त करने के उद्देश्य से निराशा, कुंठा, आत्मग्लानि व हीन भावना ही पैदा होती है।

इसलिए पुरस्कार उपलब्धियों के आधार पर प्रदान किए जाने चाहिए न कि ’पुरस्कार प्रबंधन कला कौशल’ के माध्यम से प्राप्त करने पे। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति एवं महान शिक्षक सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिवस देश मे शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष पांच सितंबर को केंद्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों द्वारा शिक्षक सम्मान समारोह आयोजित किए जाते हैं तथा शिक्षा के लिए समर्पित तथा कर्मठ शिक्षकों का सम्मान किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियों तथा हजारों शिक्षकों में से इस वर्ष केवल 34 शिक्षकों ने राज्य स्तरीय पुरस्कारों के लिए आवेदन किया। 12 जिलों में से केवल 34 अध्यापकों का आवेदन प्राप्त होना चिंतनीय विषय है, जो यह सिद्ध करता है कि अब यह पुरस्कार अपनी गरिमा को खो चुके हैं या फिर इनका आकर्षण समाप्त हो चुका है, यह भी हो सकता है कि शिक्षक बहुत ही स्वाभिमानी हो चुके हों और वह इन पुरस्कारों के लिए आवेदन ही नहीं करना चाह रहे हों। ये पुरस्कार औपचारिकता मात्र ही बनकर रह गए हैं। कम संख्या में इन प्रतिष्ठित पुरस्कारों के लिए आवेदन प्राप्त होना आश्चर्य व चिंता का विषय है, जो कि बहुत से प्रश्नों को जन्म देता है। 1.् क्या हजारों कार्यरत शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा कार्य नहीं कर रहे? 2. क्या सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले पुरस्कारों के लिए उनकी कोई रुचि नहीं? 3. क्या इन पुरस्कारों के नियम व आवेदन प्रक्रिया क्लिष्ट व जटिल है? 4. क्या अध्यापक इन पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं? 5. क्या सच में कर्मठ अध्यापक इन पुरस्कारों के लिए अपने आवेदन करना अपनी मान-सम्मान व प्रतिष्ठा के खिलाफ  समझते हैं? 6. क्या सच में योग्य, कर्मठ व समर्पित अध्यापकों का पुरस्कारों के लिए चयन हो पाता है? पिछले कुछ वर्षों में सरकार व विभाग द्वारा प्रदत्त इन पुरस्कारों पर बहुत सी अंगुलियां उठी हैं, कभी किसी का पुरस्कार वापस करने के आदेश हुए हैं, कभी न्यायालय में मुकदमे दर्ज हुए  हैं। कभी शिक्षक पुरस्कार प्राप्त करने वाले अध्यापकों की उपलब्धियों पर कार्यरत अध्यापक की पाठशाला के अध्यापकों ,सामाजिक प्रतिनिधियों तथा लोगों ने अंगुली उठाई है। पुरस्कार प्राप्त किये शिक्षकों की सत्यता तथा पुरस्कार चयन प्रक्रिया पर प्रश्न उठे हैं तथा आखिरी क्षणों में  पुरस्कार के लिए चयनित अध्यापकों का नाम बदला गया है। सरकार द्वारा चार वर्षों के भीतर दो बार आवेदन प्रक्रिया के नियमों व शर्तों को बदला जा चुका है, जिससे इन पुरस्कारों की प्रतिष्ठा, शिक्षक की गरिमा तथा विभाग व सरकार की सत्यता पर संदेह होकर शिक्षा व्यवस्था को ठेस पहुंची है। शिक्षा विभाग का लक्ष्य गुणवत्ता को प्राप्त करना है। श्रेठ कार्य करने वालों को सम्मान तथा कार्य न करने वालों को दंड का विधान सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिस व्यवस्था में अच्छा कार्य करने वालों का सम्मान नहीं होता है तथा अवसरवादी व अयोग्य लोगों को अर्श पर स्थापित कर दिया जाता है, वहीं पर विरोध के स्वर उठना स्वाभाविक है। समर्पित, योग्य व कर्मठ व्यक्तियों को नकार कर जब अयोग्य व अवसरवादी व्यक्तियों को अधिमान दिया जाता है, तो तकलीफ  तो होती है तथा समर्पित भाव व तन-मन-धन से कार्य करने वालों की भावना कमजोर पड़ती है। परिणामतः शिक्षा में गुणवत्ता के लक्ष्य को प्राप्त करने में जुटे असंख्य ईमानदार अध्यापकों की भावना आहत होती है।

शिक्षा विभाग का तंत्र अपनी चयन प्रक्रिया में भी सुधार व बदलाव कर सकता है। इसके लिए विभाग को निरीक्षण, परीक्षण, गोपनीय रिपोर्ट तथा अध्यापकों की उपलब्धियों के आधार पर मूल्यांकित करने की आवश्कता है। विभाग को यह जानकारी होनी चाहिए कि कौन से अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता के लिए विशिष्ट कार्य कर रहे हैं। विभाग की निरीक्षण व परीक्षण की आंख हर समय खुली रहनी चाहिए, इससे शिक्षक की गरिमा तथा पुरस्कार की श्रेठता भी बनी रहेगी। गौरतलब है कि पुलिस व सेना में मेडलों और अलंकरणों के लिए स्वयं आवेदन नहीं करना पड़ता है। वहां पर श्रेठ कार्य व विशिट उपलब्धियों का रिकार्ड रखा जाता है तथा मेडलों से अलंकृत किया जाता है। सरकार व विभाग को सर्वप्रथम चयन प्रक्रिया को सबल बनाकर शिक्षक पुरस्कारों को स्थापित व प्रतिष्ठित करने का प्रयास करना चाहिए। शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर सम्मानित करने का उद्देश्य निश्चित रूप से सर्वश्रेष्ठ तथा सर्वोपरि है। शर्त यह है कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी हो तथा पुरस्कारों के लिए चयनित अध्यापक व्यावसायिक, शैक्षिक, व्यावहारिक, सामाजिक व चारित्रिक रूप से श्रेष्ठतम हों।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

-संपादक