सही सलामत

निर्मल असो, स्वतंत्र लेखक

अपने-अपने माहौल होते हैं, कुछके नरम, कुछके मिजाज गर्म होते हैं। इसी से बनती है भारत की तासीर-तस्वीर। हमें मालूम है कि किस वक्त, किस तासीर में जीना है। लिहाजा समय के प्रबंधन में खबरिया चैनल चला कर अपने तर्कों की मुनादी देख लेते हैं। तासीर में देखें तो देश सलामत है और इसलिए न विरोध बचा और न ही विरोधी। जो बचा, वह मीडिया में नहीं रहा, बल्कि जो रहा वह अपनी तरह का हो गया। मीडिया की देवी रही भारतीय प्रेस परिषद की सलामती को देखें तो पता चलेगा कि कश्मीर की सूचनाओं को  शेयर होने से बचाने में कितनी पवित्रता से काम कर रही है। कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन को क्या मालूम कि अभिव्यक्ति से कितना बड़ा है भगत होना। अब भक्ति ही अभिव्यक्ति है, लिहाजा प्रेस परिषद भी मीडिया को प्रेम करना समझा रही है। मीडिया धर्म की पाबंदियों में परिषद की कश्मीर भूमिका को स्वीकार करें और देखें जहां तक नजर जाती है और पाएं कि हालचाल किस तरह ठीक ठाक है। अपने आसपास के माहौल में सही सलामत दिखाई देने का योग वास्तव में देश के प्रति हमारी कर्मठता है और इसके आलोक में रहना ही ईश्वर को पाना है। जिन्हें बाबा रामदेव के सान्निध्य में अपने ज्ञान का आलोक प्राप्त है, वे अपनी अपनी बढ़ती उम्र को रोक सकते हैं या नाखुनों की रगड़ से सिर पर बालों की छांव उगा सकते हैं, जो लोग बाबा के आचार्य बाल कृष्ण की बीमारी को लेकर कोस रहे हैं, वे अज्ञानी, राष्ट्रविरोधी, योग व आयुर्वेद विरोधी हैं। बालकृष्ण अगर एम्स में भर्ती हुए, तो वह यह जांच कर रहे थे कि एलोपैथी कितना गैरजरूरी और स्वेदशीपन से दूर है। इसलिए वहां के डाक्टरों को पता चल गया कि यह बंदा क्यों सही सलामत है। दरअसल वहां बीमारों को अनुलोम-विलोम करवा कर लौटे आचार्य बालकृष्ण ने उनका अंग्रेजी दवाओं से मोह भंग करवा दिया। यह बात है भी सही और  ईश्वर न करे कि आप और हम किसी सरकारी अस्पताल में पहुंच जाएं। बीमारी से बचना आसान है, लेकिन डाक्टरी ख्वाहिश के इलाज में जिंदा रहना अपने आप में बड़ी परीक्षा है। सलामत वही है जो अस्पताल से कुशल लौट आए, तहसील को तफसील से बता पाए, वकील के विमर्श में सीख जाए और सरकारी नौकरी से बेदाग सेवानिवृत्त हो जाए। सलामत वह भी है जो सियासत में पलते-पलते गठबंधन हो जाए और घिसते-घिसते चंदन हो जाए। जो चापलूसी करके भी मोम रहे और मसले को झुकाकर विलोम रहे। जिसे अभिव्यक्ति की जरूरत नहीं और सही को सही कहने की मजबूरी नहीं, मीडिया का  शागिर्द होना और अर्नव गोस्वामी जैसे व्यवहार में जीना आ जाए, तो सोशल मीडिया  में भी सही सलामती की तासीर मिल जाएगी। अपने हिसाब के झुंड और अमृत पाने के मुंड मिल जाएंगे। इनसान हो तो सही सलामत होना सीखो। बेनाम संपत्तियों की तरह रहो, क्योंकि जिंदगी की मिलकीयत में रहकर जीने से जिंदा रहने का एहसास कभी सही सलामत नहीं रहेगा।