ईमानदारी की बिल्ली, बेईमानी के चूहे

अजय पाराशर 

लेखक, धर्मशाला से हैं

बात सतयुग की है, जब भ्रष्टाचारी और बेईमान राक्षसों ने समाज से छल करने के लिए चूहों का रूप धारण कर लिया और उन्हें काबू करने के लिए सदाचारी और ईमानदार देवताओं ने खुद को एक बड़ी बिल्ली के रूप में ढाल लिया। चूंकि चूहों की संख्या बहुत ज्यादा थी और बिल्ली केवल एक, उन्होंने सतयुग का अंत होते-होते जतन के साथ बिल्ली के गले में घंटी बांध दी। बावजूद इसके शुरू में बिल्ली किसी तरह चूहों को काबू करती रही, लेकिन हर युग में धर्म की शक्ति क्षीण होने के साथ उसकी शक्ति भी क्षीण होती गई। समाज में नैतिकता का पतन जारी रहा। इसीलिए परमात्मा को समय के साथ हर युग में क्षीण होते नैतिक मूल्यों और सदाचार को बनाए रखने के लिए पहले नेता में मर्यादा, फिर द्वापर में बढ़ते संशय को दूर करने के लिए धर्म का पाठ पढ़ाने के लिए अवतार लेने पड़े। कलियुग तक आते-आते भ्रष्टाचारी चूहों की संख्या इतनी अधिक हो गई कि ईमानदारी की बिल्ली कहीं कोने में दुबकने को मजबूर हो गई। चूहों ने बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ इतनी तरक्की कर ली कि अगर कहीं नींद में भी बिल्ली के बाल हिलते हैं तो वे चौकन्ने हो जाते हैं। नतीजा, अब राज चूहों का है। ऐसे में जाहिर है कलयुग में चूहों अर्थात केवल बेईमानी और भ्रष्टाचार का ही बोलबाला होगा। अब चूहों की संख्या इतनी ज्यादा हो चुकी है कि वे दशकों से लंबित किसी भी परियोजना को चट कर जाते हैं। सड़कों को जगह-जगह से काट कर बड़े-बड़े गड्ढ़े बना देते हैं। कहीं नवनिर्मित नहर के तटबंधों में उद्घाटन के तुरंत बाद छेद डालकर, गांवों में सैलाब ले आते हैं। कहीं खड़ी फसलों को तबाह कर देते हैं तो कहीं सरकारी गोदामों का अनाज चट कर जाते हैं। कभी शराबबंदी के दौरान जब्त लाखों शराब के पाउच पी जाते हैं। हर जगह तहकीकात के बाद पता चलता है कि ये चूहे इतने पाजी हो गए हैं कि सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में हुए घोटालों की जिन फाइलों की जरूरत होती है, उन्हें साबुत निगल जाते हैं, लेकिन जहां सरकार को किसी मामले में विपक्ष को खींचना हो, उन फाइलों की ओर देखना भी गवारा नहीं करते। चूंकि चूहे तो चूहे हैं, जब वह देवताओं से नहीं डरे तो संविधान से क्या डरेंगे? दूसरे वे संविधान की परिभाषा के अनुसार भारत के नागरिक भी नहीं हैं। उन्हें एनआरसी में शामिल न किए जाने का डर भी नहीं। उन्हें पता है कि उन्हें कहीं निष्कासित भी नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके बिरादर पूरे विश्व में फैले हुए हैं। वैसे भी हमारे देश के चूहे उदंड मचाने के बाद पाकिस्तान, मलेशिया, यूरोप या किसी कैरेबियाई देश में जा बसते हैं। भारतीय दंड संहिता की परिभाषा में भी चूहे कहीं फिट नहीं बैठते। भारत में अपराध करने पर केवल आदमी ही दंड के भागीदार हो सकते हैं। आजकल नींद में भी बस यही डर सताता रहता है कि किसी युद्ध के दौरान हमारे सैन्य बल यह घोषणा न कर दें कि उनकी गोलियों-गोलों, मिसाइलों, रायफलों, तोपों, टैंकों, जहाजों और पनडुब्बियों को चूहे चट कर गए हैं।