कर्म का सिद्धांत

श्रीश्री रवि शंकर

कर्म का रास्ता बहुत अजीब है। जितना आप इसे समझते हैं यह उतना ही आपको आश्चर्यचकित करता है। यह लोगों को मिलाता है भी है और उन्हें दूर भी कर देता है। कर्म के कारण ही कोई व्यक्ति कमजोर हो जाता है और कोई व्यक्ति शक्तिशाली। कर्म ही किसी को गरीब तो किसी को अमीर बनाता है। इस संसार में जो भी संघर्ष हो रहा है, वो सब कर्म बंधन के कारण ही है। कर्म आपकी तार्किक और बैद्धिक क्षमता के परे है। जब आप कर्म को समझने लगते हैं, तो आप घटनाओं और लोगों से बंधना बंद कर देते हैं और आपकी स्वयं के लिए यात्रा प्रारंभ हो जाती है। अच्छी और बुरी बातें कर्म के आधार पर ही घटित होती हैं।  जब समय अच्छा होता है, तो दुश्मन भी दोस्त जैसा व्यवहार करने लगते हैं। जिन लोगों के लिए आपने बहुत कुछ किया होता है, वो भी कभी-कभी आपके दुश्मन बन जाते हैं। आपके जीवन में ऐसे लोग भी आपके मददगार बन कर आ जाते हैं, जिनके लिए आपने कभी भी कुछ नहीं किया होता है। इस सब में समय की भूमिका ही सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। सिर्फ  मनुष्यों में ही यह क्षमता होती है कि वे समय के प्रभाव को बदल दें और स्वयं को कर्म के बंधन से मुक्त कर सकें और केवल कुछ लोग ही अपने जीवन में इससे मुक्त होने के उद्देश्य को स्थापित कर पाते हैं।  कुछ कर्म बदले जा सकते हैं जबकि कुछ कर्म नहीं बदले जा सकते। इसके लिए सबसे पहले हमें कर्म के प्रकारों को जानना होगा, ये तीन प्रकार के कर्म हैः प्रबुद्ध, संचित और आगामी।

प्रबुद्ध कर्म –प्रबुद्ध  का अर्थ है शुरू किया हुआ, जो कर्म पहले से ही चल रहा है। प्रबुद्ध कर्म वह है जिसका परिणाम वर्तमान में आपको मिल रहा है। आप इसे बदल नहीं सकते क्योंकि यह पहले से ही घटित हो रहा है।

संचित कर्म – संचित कर्म इकट्ठा किए गए वे कर्म हैं, जिन्हें आध्यात्मिक क्रियाओं जैसे कि ध्यान आदि के द्वारा दूर समाप्त किया जा सकता है। हम अपने संचित कर्मों को प्रार्थना, सेवा और लोगों में प्रेम व आनंद बांटकर भी समाप्त कर सकते हैं। सत्य का साथ, जो कि निश्चित रूप से ऐसे बुद्धिमान और दयावान लोगों की संगति में मिलता है जिनकी उपस्थिति में हम स्वयं को बेहतर और आनंदपूर्ण महसूस करते हैं। सभी प्रकार के नकारात्मक कर्मों के बीजों को नष्ट कर देता है।

आगामी कर्म – आगामी का शाब्दिक अर्थ होता है, जो अभी नहीं आया है। आगामी कर्म वे कर्म होते हैं जो अभी आपके सामने आए नहीं है, वे कर्म जो भविष्य में आने वाले हैं। यदि आप कोई अपराध करते हैं, तो हो सकता है कि आप आज न पकड़े जाएं परंतु इस बात की पूरी संभावना है कि आप भविष्य में पकड़े जाएंगे। ये आपके द्वारा किए गए कार्यों के भविष्य के कर्म हैं। हमारे मस्तिष्क पर हमारे कुछ कार्य इस प्रकार की मजबूत छाप छोड़ते हैं जो भविष्य के कर्म का रूप ले लेते हैं। आप किसी के भी साथ जो कुछ भी करते हैं वो आपको वापस मिलता है। यही कर्म का सिद्धांत है।  इसलिए हमारे कर्म हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर अच्छे या बुरे हो सकते हैं।  इसलिए भगवान कृष्ण भागवत गीता में कहते हैं अपने कर्मों के फल मुझे अर्पित कर दो।