गीता रहस्य

अतः वेदों में कहे श्रीकृष्ण महाराज प्रदत्त भावों को जानकर जीव आज भी वेदों के विद्वान गुरु की शरण में जाएं अन्यथा वेद-विद्या एवं ईश्वर के सच्चे स्वरूप को कोई नहीं जान सकता और न ही पाप नष्ट होंगे और जीव सदा दुःखों के सागर में गोते लगाता रहेगा…

गतांक से आगे…

पूरे वेदों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि वास्तव में ईश्वर पाप कर्मों को क्षमा नहीं करता अपितु जब जिज्ञासु वेदों के विद्वानों की शरण लेकर उसकी आज्ञा में रहकर ऊपर कहे यज्ञादि शुभ कर्म करता है और उसकी इंद्रियां मन, एवं बुद्धि संयम में आते हैं और जिज्ञासु वैराग्य को प्राप्त हो जाता है तब ही विद्वान आचार्य एवं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कृपा उस पर बरसती है और ईश्वर उसके सभी पापों को नष्ट करके ब्रह्मलीन कर देता है। अतः वेदों में कहे श्रीकृष्ण महाराज प्रदत्त भावों को जानकर जीव आज भी वेदों के विद्वान गुरु की शरण में जाएं अन्यथा वेद-विद्या एवं ईश्वर के सच्चे स्वरूप को कोई नहीं जान सकता और न ही पाप नष्ट होंगे और जीव सदा दुःखों के सागर में गोते लगाता रहेगा। स्वर्गतिम (आध्यात्मिक स्वर्गलोक) का वेदों में कहा अर्थ शुभ कर्म यज्ञ एवं योगाभ्यास आदि द्वारा परवैराग्य एवं योग शास्त्र सूत्र 4/29 के अनुसार असम्प्रज्ञात/ धर्ममेघ समाधि प्राप्त करना ही स्वर्ग की प्राप्ति है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई स्वर्ग वेदों में नहीं कहा। अथर्ववेद मंत्र 11/1/20 में कहा (ब्रह्मौदनः) यह ब्रह्म का ज्ञान रूप भोजन (अक्षित) हमें नष्ट नहीं होने देता, (देवयान) देव/ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है ( स्वर्ग) जीवन को सुख देने वाला यह ब्रह्म का भोजन ही स्वर्ग है। अतः स्वर्ग क्या है कि हम विद्वानों के आश्रय में रहकर वेद विद्या को सुनें, समझे, मनन करें और आचरण में जब लाएंगे, तो यह आचरण में लाना ही ब्रह्मौदन है। जैसे किसी भूखे ने भूख मिटाने के लिए भोजन कर लिया उसी प्रकार किसी ब्रह्म के जिज्ञासु ने वेदों के ज्ञान को सुनकर आचरण में ले लिया अर्थात ब्रह्म का भोजन कर लिया। इस ब्रह्म भोजन से ही जीवन सदा सुखमय रहता है। यह सुख ही स्वर्ग है क्योंकि यह ब्रह्म का भोजन हमें ईश्वर की ओर ले चलता है और सब काम क्रोध आदि का नाश करके हमें आनंद में रखता है, यही स्वर्ग है। अतः भौतिक एवं आध्यात्मिक (मोक्ष) रूप स्वर्ग को पाने के लिए वेदों का ज्ञान प्राप्त करें, निरोग रहें, ब्रह्मचर्य धारण करें।