चित्र आदि को साक्षात देवी-देवता ही मानें

-गतांक से आगे…

वस्तुतः आवाहन के अंतर्गत जिस देवी या देवता की साधना की जाने वाली हो, उसे अपनी भक्ति, श्रद्धा, विश्वास एवं साधना के द्वारा किसी विशेष स्थान पर प्रकट होने की प्रार्थना की जाती है। इसके लिए सबसे पहले देवी या देवता का चित्र अथवा मूर्ति आदि अपने सम्मुख रखें तथा कुशासन पर पूरब या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जाएं। यदि उत्तर की ओर मुंह करके बैठेंगे तो देवी या देवता का मुख पूरब की ओर रहेगा। अब दोनों हाथ जोड़कर देवी या देवता को नमस्कार करते हुए आवाहनम् समर्पयामि कहें अर्थात देवी या देवता चित्र अथवा मूर्ति में आ जाएं। इस प्रकार चित्र आदि को साक्षात देवी-देवता ही मानना चाहिए।

विशेष: आगे की क्रिया संपन्न करने से पूर्व तांबे का कलश या तांबे का छोटा सा लोटा अर्थात पंचपात्र (जो प्रायः शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए प्रयुक्त होता है), एक छोटा चम्मच, छोटी कटोरी, पंचमुखी दीपक, थाली, घंटी, शंख, पुष्प, कुशा, तुलसी की पत्तियां, पान का पत्ता, सफेद तिल तथा साबुत चावल (अक्षत)-ये सब वस्तुएं एकत्र करके अपने पास रखें। पंचपात्र या कलश में जल भर लें। उसमें तुलसी की पत्तियां तथा पुष्प की कुछ पंखुडि़यां डाल दें। दो-एक पंखुडि़यां कटोरी में भी डाल दें। फिर आगे की प्रक्रियाएं करें।

आसन

इसके बाद आसनम् समर्पयामि कहकर देवी-देवता को आसन ग्रहण करने की प्रार्थना करें तथा पंचपात्र से चम्मच में जल लेकर कटोरी में छोड़ दें।

अर्घ्य

अब यह कल्पना करके कि इष्ट देवता ने आसन ग्रहण कर लिया है, उन्हें अर्घ्य देने की क्रिया करें। अर्थात पंचपात्र से पान के पत्ते द्वारा जल लेकर शंखादि में भरें और चित्र के दोनों ओर छिड़कते हुए अर्घ्यं समर्पयामि कहें।

हस्तपाद प्रक्षालन

फिर पादयोपाद्यं हस्तयो प्रक्षालनं समर्पयामि कहते हुए चम्मच में जल लेकर कटोरी में डालें। हाथ-पांव धुलाने की यह प्रक्रिया भावलोक में करें।

स्नान

इसके बाद सर्वांगे स्नानं समर्पयामि कहते हुए स्नान कराएं। इसके लिए चित्र पर जल नहीं डालते, बल्कि आचमनी से इधर-उधर छिड़कते जाते हैं। यदि धातु की मूर्ति हो तो उसे पंचामृत, गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।                    -क्रमशः