बिलासपुर की पर्यटन गणना

पर्यटन मानचित्र को नए आधार पर खड़ा करने की कोशिशें बिलासपुर की परिधि में अपनी परिकल्पना के साथ आश्वासन दे रही हैं, तो यह संपूर्णता की दिशा में अहम पड़ाव हो सकता है। वर्षों से बंदला की पहाडि़यों को पैराग्लाइडिंग के लिए उचित ठहराते प्रयास-अभ्यास, आज उस मुकाम पर खड़े हैं, जहां बीड़-बिलिंग के बाद हिमाचल को एक और स्थान संभावनाओं से परिपूर्ण मिल रहा है। बिलासपुर में बंदला की पहाडि़यों से गोबिंद सागर झील तक फैली पर्यटन  संभावनाओं की गणना शुरू करने के गंभीर प्रयासों में केवल योजना ही नहीं, बल्कि एशियन डिवेलपमेंट बैंक का वित्तीय समर्थन भी दिखाई दे रहा है। हालांकि घोषणाएं तो पहले भी बिलासपुर को पर्यटन की किश्ती पर बैठाती रहीं, लेकिन वित्तीय अभाव से कुछ भी मुकम्मल नहीं हुआ। यहां तक कि गोबिंद सागर में डूबे मंदिरों को फिर से बसाने की परिकल्पना, आज तक कोई भी आकार नहीं ले सकी। वाटर स्पोर्ट्स की गिनी चुनी गतिविधियां भी धीरे-धीरे सिमट गईं और विस्थापन की टीस लिए गोबिंद सागर झील के किराने विदू्रप होते गए। ऐसे में पुनः अगर पर्यटन परिधि के रूप में बिलासपुर का महत्त्व सामने आ रहा है, तो यह मनाली हाई-वे पर एक सदाबहार डेस्टिनेशन हो सकता है। झील की विशालता में टापुओं पर अगर अहमियत देता पर्यटन खोजा जा रहा है, तो एडीबी की मदद से परियोजनाएं कारगर सिद्ध होंगी। जाहिर तौर पर झील पर्यटन की दिशा में हिमाचल के प्रयत्न एक साथ आधा दर्जन के करीब नए डेस्टिनेशन, वाटर ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तथा जल क्रीड़ाओं के केंद्र विकसित कर पाएंगे। झील पर्यटन के केंद्र बिंदु में योजनाएं तो पिछले कई दशकों से बन रही हैं, लेकिन यथार्थ में हुआ कुछ भी नहीं। गोबिंद सागर, कौल डैम, पौंग जलाश्य और चमेरा के साथ-साथ प्राकृतिक झीलों को अगर पर्यटन की भावी मंजिलें बनानी हैं, तो कसरतें झील पर्यटन की खूबियों को स्थापित तथा परिमर्जित करने की होनी चाहिएं। झील पर्यटन सुविधाओं के खाके से पूर्ण होगा, तो साहसिक तथा नौकायन जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन भी हो सकेगा। हिमाचल को बाकायदा वाटर स्पोर्ट्स संस्थान स्थापित करते हुए प्रतिभाओं को प्रशिक्षित करना चाहिए। विडंबना यह भी है कि कृत्रिम झीलों की स्थापना के दौरान हुए समझौतों ने हिमाचली अधिकारों की बाड़बंदी कर दी है। बीबीएन की अधोसंरचना में हिमाचली मिलकीयत भी गुलामी कर रही है। जिन शिकारों की बात हो रही है, उनकी अनुमति के लिए बीबीएन प्रबंधन खुद को तानाशाह बना लेता है। करीब चार दशक पूर्व तत्कालीन पर्यटन मंत्री सत महाजन ने पौंग जलाश्य में शिकारे चलाने की योजना का मौखिक प्रारूप तो बनाया, लेकिन बीबीएन की फाइलों में इसकी चीख निकल गई। ऐसे में झील पर्यटन हो या साहसिक पर्यटन, हिमाचल को दीर्घकालीन योजनाओं पर काम करना होगा ताकि बांध परियोजनाओं या वन संरक्षण कानून के पहरों से मुक्त ढांचागत विकास हो सके। इसी के साथ यह भी तय करना होगा कि पर्यटन की नई परिपाटी के जिम्मेदार विभाग कौन हैं। पर्यटन निवेश की वर्तमान स्थिति न तो सार्वजनिक क्षेत्र में सही है और न ही निजी क्षेत्र को इसकी दिशा मालूम है। पैराग्लाइडिंग ही लें, तो बीड़-बिलिंग का विकास अपनी होड़ में बहक कर दूरगामी आर्थिक तथा सामाजिक प्रभाव को खतरे में डाल रहा है। अतः बिलासपुर की पर्यटन गणना को एक दो मंजिलों तक न देखते हुए दीर्घकालिक संभावनाओं के परिप्रेक्ष्य में भी समझना होगा। यह इसलिए कि पहले भी पर्यटन इकाइयां असफल हुईं, तो इसके कारण समझे ही नहीं गए।