बीमारियों से गिरते बच्‍चे

महानगरों में वक्त की कमी के कारण मां-बाप अपने बच्चों को हरी सब्जियां, फल, दूध, अनाज आदि देने की बजाय फास्टफूड की ओर धकेल रहे हैं, जिस के चलते उनके शरीर में न सिर्फ  अतिरिक्त चर्बी जमा हो रही है, बल्कि वे कई तरह की बीमारियों की चपेट में भी हैं। अपौष्टिक खाना उन के अंदर जहां आलस्य को बढ़ा रहा है, वहीं वे उम्र से पहले ही परिपक्व भी हो रहे हैं। मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यही है कि वे भावुक और मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त हो जाते हैं। उन की सोचने समझने की शक्ति क्षीण होती है। वे बहुत ज्यादा कन्फ्यूज्ड रहते हैं।

बच्चों में मोटापा है खतरनाक

बच्चों में मोटापा जीवनभर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है, जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा रोग, कैंसर और अन्य समस्याएं। कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, आहार विकार जैसे एनोरेक्सिया और त्वचा में संक्रमण और अस्थमा व श्वसन से संबंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं।

मौत का रहता है खतरा

अध्ययनों से पता चला है कि अधिक वजन वाले बच्चों में वयस्क होने पर भी अधिक वजन बने रहने की संभावना अधिक होती है। ऐसा भी पाया गया है कि किशोरावस्था के दौरान स्थूलता वयस्क अवस्था में मृत्युदर को बढ़ाती है। मोटे बच्चों को अकसर उन के साथी चिढ़ाते हैं। ऐसे कुछ बच्चों के साथ तो खुद उन के परिवार के लोगों द्वारा भेदभाव किया जाता है। इस से उनके आत्मविश्वास में कमी आती है। वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से ग्रस्त भी हो जाते हैं। वर्ष 2008 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि स्थूलता से पीडि़त बच्चों में कैरोटिड धमनियां समय से पहले इतनी विकसित हो जाती हैं जितनी कि 30 वर्ष की उम्र में विकसित होनी चाहिए। साथ ही उन में कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी असामान्य होता है। ये हृदय संबंधी रोगों के कारक हैं। कैलोरीयुक्त पेय और खाद्य पदार्थ बच्चों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। चीनी से भरी हुई सॉफ्ट ड्रिंक्स का सेवन बच्चों में मोटापे को बहुत अधिक योगदान देता है। 19 महीने तक 548 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रतिदिन 600 मिलीग्राम सॉफ्ट ड्रिंक पीने से स्थूलता की संभावना 1/6 गुना तक बढ़ जाती है।

फास्ट फूड मार्केट का पहला लक्ष्य ही बच्चे हैं

बाजार के लिए बच्चे सब से बड़े उपभोक्ता हैं। फास्ट फूड मार्केट का पहला लक्ष्य ही बच्चे हैं। इस बाजार को बच्चों की सेहत से कोई लेना-देना नहीं है। उसे सिर्फ  अपने उत्पाद की बिक्री से मतलब है। अत्यधिक कैलोरीयुक्त स्नैक्स आज बच्चों को हर जगह आसानी से उपलब्ध हैं। युवा फास्ट फूड रेस्तरां में भोजन करना बहुत पसंद करते है। अध्ययन में पाया गया है कि 7वीं से 12वीं कक्षा के 75 प्रतिशत स्टूडेंट्स फास्ट फूड खाते हैं।

घातक स्थिति की ओर

एक अध्ययन में पाया गया कि स्कूल के पास फास्ट फूड रेस्तरां का होना बच्चों में स्थूलता के जोखिम को बढ़ाता है। बाल्यकाल स्थूलता एक ऐसी स्थिति है, जिस में शरीर में उपस्थित अतिरिक्त वसा बच्चे के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। बच्चों में मोटापा एक महामारी की तरह आज दुनिया के कई देशों में फैलता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 2 करोड़ 20 लाख बच्चों का वजन बहुत ज्यादा है, जिन की उम्र 5 साल से भी कम है। विकासशील देशों में भी यह समस्या जोर पकड़ रही है।

मोटापे के कारण होती हैं ये बीमारियां-

मोटापे के कारण बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर जोर पकड़ रहा है। अगर इसे काबू नहीं किया जा सका, तो दिल की खतरनाक बीमारियां उनको जकड़ लेंगी। बचपन में मोटापे के शिकार लोगों के लिए युवावस्था में डायबिटीज होने का खतरा कई गुना ज्यादा रहता है। इसके अलावा इन बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होता है यानी उन में मानसिक बीमारियों का जोखिम कहीं अधिक होता है।