बुरा न देखो, न कहो और न सुनो तीन बंदरों का प्रचलन कैसे शुरू हुआ

वर्ष 1617 में जापान के निक्को स्थित तोगोशु की समाधि पर ये तीनों बंदर बने हैं। ऐसा माना जाता है कि ये बंदर जिन सिद्धांतों की ओर इशारा करते हैं, वे बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न बोलो को दर्शाते हैं। मूलतः यह शिक्षा ईसा पूर्व के चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस की थी। वहां से यह विचार जापान गया। उस समय जापान में शिंटो संप्रदाय का बोलबाला था। शिंटो संप्रदाय में बंदरों को काफी सम्मान दिया जाता है। शायद इसलिए इस विचारधारा को बंदरों का प्रतीक दे दिया गया। यह यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है। ऐसे ही विचार जापान के कोशिन मतावलंबियों के हैं, जो चीनी ताओ विचार से प्रभावित हैं। जापानी में इन बंदरों के नाम हैं मिजारू, किकाजा और इवाजा। महात्मा गांधी ने इन तीन बंदरों के मार्फत नैतिकता की शिक्षा दी, इसलिए कुछ लोग इन्हें गांधी जी के बंदर भी कहते हैं।