लाखों रुपए देकर भी काम की मंजूरी नहीं

प्रदेश में फोरेस्ट क्लीयरेंस के फेर में फंसी 90 से ज्यादा माइनिंग साइट्स

शिमला – सरकार को नीलामी में लाखों रुपए की राशि देने वाले लोग पैसा देकर अब फंस गए हैं। करीब एक साल से ज्यादा समय हो चुका है, उन्हें सरकार से ली गई माइनिंग साइट पर काम करने का मौका नहीं मिल पा रहा, क्योंकि इसके लिए फोरेस्ट कंजरवेशन एक्ट के तहत वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी नहीं मिल पाई है। ऐसे में जिन्होंने नीलामी में खनन पट्टे को हासिल किया था, वह खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। बता दें कि पिछले कुछ साल से यहां पर सरकार कानूनी तरीके से खनन पट्टों को लीज पर देने का काम कर रही है। पिछले सरकार ने भी इसी तरह का प्रयास किया और वर्तमान सरकार भी खनन पट्टों की लीज कर रही है। इस साल खनन पट्टों की लीज से सरकार ने 400 करोड़ रुपए के कारोबार की उम्मीद जताई है। दिलचस्प बात यह है कि सरकार को तो करोड़ों रुपए की कमाई हो रही है, लेकिन जो लोग पैसा दे रहे हैं, उन्हें खनन पट्टे पर काम करने की अनुमति नहीं है। सरकार ने शर्त रखी है कि नीलामी में खनन पट्टे को हासिल करने वाले व्यक्ति को खुद ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी लेनी होगी। इसके चलते ये लोग फंसे हुए हैं, क्योंकि डेढ़-दो साल से इन लोगों को मंजूरी नहीं मिल पाई है। बार-बार मंत्रालय से उन्हें औपचारिकताओं में फंसाया जा रहा है। क्योंकि प्रदेश में अधिकांश क्षेत्र फोरेस्ट एरिया है, इसलिए इसमें काम करने के लिए वन मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक है। बताया जा रहा है कि ऐसे सबसे अधिक मामले मंडी जिला में फंसे हुए हैं और उसके बाद दूसरे नंबर पर सिरमौर है। मंडी जिला में 35 माइनिंग साइट्स पर मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिल पाई है, जिन्हें लेने वाले लोग यहां काम नहीं कर पा रहे और उनका लाखों रुपए फंस गया है। इसी तरह से सिरमौर जिला में 20 माइनिंग साइट्स, कुल्लू जिला में 20 साइट्स और शिमला जिला में नौ माइनिंग साइट्स  के मामले लटके हुए हैं। शिमला जिला के रामपुर में दो हैं व रोहडू में सात साइट्स हैं। माइनिंग लीज लेने वाले लोगों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो चुकी है, जो सरकार से मदद मांग रहे हैं। यहां प्रदेश सरकार ने केंद्र से मुद्दे को उठाया है, परंतु अभी तक हल नहीं निकल पाया है। जल्द राहत नहीं मिलती है, तो लोग माइनिंग लीज छोड़ने को मजबूर होंगे और यहां पर अवैध कारोबार शुरू हो जाएगा।