श्री गोरख महापुराण

गोरखनाथ ने बच्चों के ऊधम से तंग आकर  माथा पच्ची करने में भलाई नहीं समझी। उनके  संजीवनी विद्या के पाठ में विघ्न पड़ रहा था। इसलिए उन्होंने हारकर कहा, गाड़ीवान बन जाने पर तुम लोग यहां से दूर जाकर खेल लोगे? सब बच्चों ने एक स्वर में कहा, गाड़ीवान बन जाने पर हम यहां से बहुत दूर चले जाएंगे। गोरखनाथ बच्चों की बात सुनकर हंस पड़े और गीली मिट्टी हाथ में लेकर गाड़ीवान बनाने लगे…

गतांक से आगे…

जिससे इनकी साधनाओं में विघ्न न पड़े। एक दिन की बात है योगी मछेंद्रनाथ हाथ में भिक्षापात्र लिए एक नगरी में भिक्षा मांगने गए और अपने शिष्य गोरखनाथ को आदेश दे गए कि बेटा! संजीवनी विद्या का पाठ याद कर लेना। गोरखनाथ गुरु  के आदेशानुसार संजीवनी विद्या का पाठ याद करने में तन,मन से लग गए। वहीं कुछ बालक तालाब के किनारे गीली मिट्टी से खेल रहे थे। सब के हाथों में गीली मिट्टी थी। जो वह एक-दूसरे पर फेंक रहे थे और ऊधम मचा-मचाकर  खेलने का आनंद लूट रहे थे। कुछ बालक एक-दूसरे को गंदी गालियां बक कर आपस में मारपीट कर रहे थे, जिससे कोई जोर-जोर से रोता, तो कोई तालियां बजाकर हंसता था। बच्चों के ऊधम मचाने से गोरखनाथ काफी परेशान थे। बच्चों के शोर के कारण उनके पाठ याद करने में काफी विघ्न पड़ रहा था। तब भी वह पाठ याद करने की साधना में लगे हुए थे। उसी समय उन बालकों ने आपस में निश्चय किया कि मिट्टी की एक गाड़ी बनानी चाहिए, जिसमें हांकने वाला गाड़ीवान भी मिट्टी का होना चाहिए। पर सबसे कठिन प्रश्न इस बात का था कि गाड़ी बने किस प्रकार? उन बालकों ने तालाब की मिट्टी को आटे के समान छानकर गोरखनाथ के पास आकर बोले साधू महाराज, आप इस मिट्टी से हम लोगों के लिए एक गाड़ी बना दीजिए जिस पर गाड़ीवान भी बैठा होना चाहिए। गोरखनाथ बोले, बच्चो मैं गाड़ी बनाना नहीं जानता। ऐसा कह कर उन्होंने बच्चों को टाल दिया, लेकिन धुन के पक्के बच्चों ने बार-बार गाड़ी बनाकर, बार-बार बिगाड़कर अंत में गाड़ी को बना ही लिया। पर गाड़ी पर बैठाने के लिए गाड़ीवान वह न बना सके। गाड़ी पर गाड़ीवान न होने की कमी सभी बालकों को बुरी तरह खटक रही थी। गाड़ी पर गाड़ीवान किस तरह बैठाया जाए यह उनके दिमाग में बैठता ही नहीं था। जब किसी तरह भी गाड़ीवान बनने की आशा नहीं रही, तो निराश होकर बालक फिर से गोरखनाथ के पास  आए और गिड़-गिड़ाकर बोले, साधू बाबा! गाड़ी तो हमने बना ली है पर गाड़ीवान हमसे नहीं बन रहा है। आप हमारे लिए एक गाड़ीवान बना दें। गोरखनाथ ने उन्हें टालने के इरादे से कहा, बच्चे होते हैं, वह कहां मानने लगे। उनमें से एक बोला, बड़ी बजीब बात है। आप इतने पढ़े-लिखे लोग मूढा, तिपाई, चारपाई वगैरह सब कुछ बना लेते हैं। फिर सब बच्चों ने अपनी साथी की बात का समर्थन करते हुए ताली बजाना शुरू कर दिया और बोले साधू बाबा झूठ बोलते हैं, इन्हें गाड़ी बनान आता है मगर झूठ बोलते हैं। गोरखनाथ ने बच्चों के ऊधम से तंग आकर  माथा पच्ची करने में भलाई नहीं समझी। उनके  संजीवनी विद्या के पाठ में विघ्न पड़ रहा था। इसलिए उन्होंने हारकर कहा, गाड़ीवान बन जाने पर तुम लोग यहां से दूर जाकर खेल लोगे? सब बच्चों ने एक स्वर में कहा, गाड़ीवान बन जाने पर हम यहां से बहुत दूर चले जाएंगे।

गोरखनाथ बच्चों की बात सुनकर हंस पड़े और गीली मिट्टी हाथ में लेकर गाड़ीवान बनाने लगे। गोरखनाथ हाथों से गाड़ीवान बना रहे थे और मुख से संजीवनी विद्या का पाठ पढ़ते जा रहे थे। अभी गाड़ीवान पूरा बन नहीं पाया था कि संजीवनी विद्या के मंत्रों के प्रभाव से गाड़ीवान के हाथ-पांव हिलने लगे। परंतु गोरखनाथ ने उसके हिलने-डुलने पर ध्यान नहीं दिया। गाड़ीवान पूरा बन चुका, लेकिन संजीवनी का जाप बराबर चलता रहा।                     – क्रमशः