साधना में मानसिक क्रिया पर नियंत्रण हो

तंत्र साधक के लिए यह आवश्यक है कि वह साधना में कायिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं पर पूरा नियंत्रण रखे। जिस प्रकार आसन, पात्रासादन एवं अर्चनादि में क्रियाओं का विधान है, उसी प्रकार उनके साथ कुछ मुद्रा बनाने का भी विधान है। ये मुद्राएं हाथ और उसकी उंगलियों के प्रयोग से बनाई जाती हैं। जैसे हमारा शरीर पंचतत्त्वमय है, वैसे ही पांचों उंगलियां भी पंचतत्त्वात्मक हैं। महर्षियों ने कहा है कि उंगलियों के प्रयोग से इन तत्त्वों की न्यूनाधिकता दूर की जा सकती है तथा तत्त्वों की समता-विषमता से होने वाली कमी को उंगलियों की मुद्रा से सम बनाया जा सकता है…

-गतांक से आगे…

तंत्र साधक के लिए यह आवश्यक है कि वह साधना में कायिक, वाचिक और मानसिक क्रियाओं पर पूरा नियंत्रण रखे। जिस प्रकार आसन, पात्रासादन एवं अर्चनादि में क्रियाओं का विधान है, उसी प्रकार उनके साथ कुछ मुद्रा बनाने का भी विधान है। ये मुद्राएं हाथ और उसकी उंगलियों के प्रयोग से बनाई जाती हैं। जैसे हमारा शरीर पंचतत्त्वमय है, वैसे ही पांचों उंगलियां भी पंचतत्त्वात्मक हैं। महर्षियों ने कहा है कि उंगलियों के प्रयोग से इन तत्त्वों की न्यूनाधिकता दूर की जा सकती है तथा तत्त्वों की समता-विषमता से होने वाली कमी को उंगलियों की मुद्रा से सम बनाया जा सकता है। इतना ही नहीं, ऐसी मुद्राओं द्वारा उन तत्त्वों को स्वेच्छापूर्वक घटाया-बढ़ाया भी जा  सकता है। ये तत्त्व क्रमशः अंगुष्ठ में अग्नि, तर्जनी में वायु, मध्यमा में आकाश, अनामिका में पृथ्वी और कनिष्ठिका में जल के रूप में विद्यमान रहते हैं। मुदं रातीति मुद्रा के अनुसार ये मुद्राएं देवताओं के समक्ष दिखाने से उन्हें प्रसन्नता प्रदान करती हैं। पूजा विधानों में मुद्रा एक आवश्यक अंग माना गया है। देवी-देवताओं के समक्ष बनाई जाने वाली मुद्राएं अलग-अलग कर्म की दृष्टि से सहस्रों प्रकार की होती हैं जिनमें कुछ जपांगभूत तो कुछ नैवेद्यांगभूत हैं। कुछ का प्रयोग कर्म विशेष के प्रसंग में होता है तो कुछ मानस पूजा और अन्य पूजाओं में प्रयुक्त होती हैं। प्रत्येक जप-पूजा आदि विधानों में देवता के अनुरूप मुद्रा दिखाने का निर्देश रुद्रयामल में किया गया है। जिस प्रकार श्रीगणेश की पूजा में एकदंत, बीजापूर, अंकुश एवं मोदक मुद्रा आदि दिखाई जाती है, उसी प्रकार शिव, विष्णु, शक्ति तथा सूर्य आदि देवों की पूजा में अलग-अलग मुद्राओं के प्रदर्शन का विधान है। इनका नैमित्तिक और काम्य प्रयोग की दृष्टि से भी मंत्रपूर्वक साधन होता है तथा सिद्ध हो जाने पर इनके प्रयोग से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

षोडशोपचार तांत्रिक पूजा विधि तंत्र क्रिया द्वारा सिद्ध किए जाने वाले देवी-देवताओं की तांत्रिक पूजा सोलह उपचारों से की जाती है जिसे ‘षोडशोपचार पूजा विधि’ कहते हैं। साधनारत साधकों को इस विधि का ज्ञान पहले से प्राप्त कर लेना चाहिए। क्योंकि पूजा में किसी भी प्रकार की त्रुटि होने से साधना निष्फल हो जाती है और यह निष्फलता सिद्धि मार्ग का अवरोध बन जाती है।