सेना में करवा चौथ

कर्नल मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

उत्तर भारत में बड़े ही धूमधाम से त्योहार की तरह मनाए जाने वाले सुहागिन व्रत की सेना में कुछ अलग अहमियत है। मेरे करीब अढाई दशक के सेवाकाल के दौरान मुझे हमारे देश की अलग-अलग वेशभूषा, भाषा, धर्म, जाति,  रीति-रिवाज एवं संस्कृति के बारे में बारीकी से जानने का मौका मिला। होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस एवं गुरु पर्व के अलावा यह भी पता चला कि लोहड़ी, गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, छठ पूजा, पोंगल, बिहू व करवा चौथ आदि भी हमारी संस्कृति का एक अटूट हिस्सा हैं। सेना में इन सब उत्सव को बड़ी ही धूमधाम और शौक के साथ मनाया जाता है। मैंने हर त्योहार पर अपने सीनियर्स, जूनियर्स,  सूबेदार एवं सिपाही रैंक के सैनिकों को छुट्टी जाने का प्लान करते हुए अकसर देखा, पर  दशहरा व दीपावली जैसे बड़े त्योहारों के साथ आने वाले करवा चौथ पर न के बराबर सैनिकों को छुट्टी का प्लान बनाते पाया। फील्ड एरिया में जहां पर परिवार के साथ रहने की सुविधा नहीं होती वहां अलग-अलग तरह के आप्रेशंस में व्यस्त रहने के कारण सैनिक अपने परिवार से कई  बार दो या तीन दिन तक बात नहीं कर पाता, इसी तर्ज पर सैनिक धर्म निभाते हुए मुख्य त्योहारों पर भी इस तरह की सिचुएशन आने पर कोशिश की जाती है कि ऐसे मौकों पर सैनिक की उसके घर वालों से बात करवाई जाए पर यह गंभीरता करवा चौथ के दिन बड़ी ही कम देखी गई। देश की सेवा में समर्पित सिपाही या अधिकारी को उसकी सलामती व दीर्घ आयु के लिए सैकड़ों कोस दूर भूखी-प्यासी बैठी अपनी अर्धांगिनी के समर्पण के बारे में शायद न ही कोई अंदाजा होता है और न ही इसकी गंभीरता को समझ पाता है। करवा चौथ मुख्यतः उत्तर भारत का त्योहार है। इस दिन को दक्षिण व पूर्वी क्षेत्रों में उतनी शिद्दत से नहीं मनाया जाता। पीस एरिया जहां सैनिक के परिवार को साथ रहने का प्रावधान होता है वहां हर क्षेत्र या धर्म  के त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसी तरह करवा चौथ के दिन फैमिली क्वार्टर का नजारा भी देखने लायक होता है। दिवाली की तरह सजा हर घर पूरे सोलह शृंगार के साथ  सजी-संवरी वीरांगनाएं सुबह से शाम तक अलग-अलग तरह के पूजन, गाना-बजाना, सारा दिन सुहागी तथा सरगी का आदान-प्रदान करते हुए दिखती हैं। सेंट्रल प्लेस पर एक पंडाल बनाया जाता है जिसमें हर औरत को बुलाकर यूनिट के पंडित जी करवा चौथ की कथा और उसके महत्त्व के बारे में बताते हैं। हर क्षेत्र और धर्म से नाता रखने वाली हर औरत जब इसकी महत्ता के बारे में जानती है तो इस तरह से माहौल बनता है कि हर औरत अपना धर्म, जाति,  क्षेत्र, भाषा सब भूल सुहागन व्रत का सच्चे दिल से हिस्सा बन जाती है। शायद इसके पीछे उनके जिगर व जहन का छिपा डर है जिसके चलते वे अंदर ही अंदर जानती हैं कि उनके पति या सुहाग जिस तरह की प्रोफेशन में हैं उनकी लंबी आयु के लिए इस व्रत का पालन करना और भी जरूरी हो जाता है।