सेफ शहर में अभागा सांप

अशोक गौतम

साहित्यकार

वह सांप नवरात्र की सेल के आकर्षण का खिचा पहली बार शहर आया था।… और सेल तक पहुंचने से पहले ही वह एक हादसे का शिकार हो गया। उसकी बीवी ने उसे सेल में जाते-जाते उसे समझाया भी था कि वह उसके साथ सेल में चल पड़ती है। शहर की बात है, अकेले घूमने के वहां बहुत खतरे हैं। पर सांप नहीं माना तो नहीं माना। उसे लगा कि जो वह बीवी को साथ ले सेल में जाएगा तो पता नहीं वह सेल के नाम पर वहां से क्या क्या कबाड़ बेकार का उठा लाएगी।… इससे पहले कि वह एक के साथ दो फ्री का आनंद ले पाता, पुलिस चौकी के पास उसे भीड़ ने देख लिया। बस, फिर क्या था? शहर में सांप? देखते ही देखते हर आदमी उसे देखकर उससे भी भयंकर सांप में तबदील होने लगा तो वह समझ गया कि अब वह भी शहर में सेफ  नहीं। उसे जब बचने का कोई चारा न दिखा तो उसने शिवशंकर का नाम लिया और आंखें मूंद ली। प्रभु मन करे तो भीड़ से बचा देना आज। भीड़ में जिसके हाथ में हाथ भी न थे, उसके हाथों में भी पता नहीं कहां से डंडे उग आए। उसे उस वक्त अपने आसपास एक भी आदमी, आदमी नहीं लग रहा था। उसे नहीं लग रहा था कि वह शहर की पुलिस चौकी के पास है। उस डरे सांप को जब मैंने देखा तो मुझे लगा कि यह सांप तो बिलकुल नई प्रजाति का सांप है यार! इक्कीसवीं सदी की प्रजाति का! सुसभ्य और क्लासिकल आदमी का मिक्सचर। सांपों और आदमियों की विभिन्न प्रजातियां तो मैंने बहुत देखी थीं पर वह उन सबसे हटकर था। तब भीड़ में एकाएक एक ने उससे मजाक करते उसे एक नेता का नाम देने को भीड़ से अपील करते कहा, ‘हे बुद्धिजीवियों! जो इस सांप का नाम किसी प्रिय नेता के नाम पर सुझवाएगा वह शाम को मेरे होटल में मुफ्त में डिनर का हकदार होगा।’ बस, फिर क्या था, राशन की दुकान का आटा, रिलायंस का डाटा खाने वाले बुद्धिजीवियों में सांप के लिए नेता का नाम सुझाने की होड़ लग गई। जितने भीड़ में लोग, उससे दस गुणा अधिक नाम पेश हुए। तब उन नामों को सुनकर सांप जब परेशान हो गया तो उसने भीड़ के मुखिया से हाथ जोड़ कर कहा,‘ बंधु! भगवान के लिए चाहे तो मुझे मार डालो। चाहे तो मुझे इस पुलिस चौकी के आगे अधमरा छोड़ दो, पर मुझे किसी नेता के नाम से मत जोड़ो। मैं सांपों का कोई नेता नहीं। मैं तो जन्मजात सांप हूं,‘जब वह सांप बहुत ही डर गया तो मैंने उस सांप के नजदीक जाकर उससे कहा, ‘हद है दोस्त! हम तुम्हें किसी नेता का नाम दे रहे हैं और तुम हो कि… जानते हो! नेता से बढ़कर समाज में कोई उच्च पद नहीं। भगवान भी नेताओं के पद पखारते हैं। सुबह शाम उनके दरबार में सलाम मारते हैं। लो, हमसे किसी भी नेता का नाम लो और जंगल में लोकतंत्र की स्थापना का श्रेय हासिल करो, ‘इससे पहले कि वह आगे कुछ कह पाता कि इतने में पता नहीं कहां से इंसपेक्टर मातादीन आ धमके। उन्होंने मूंछों को ताव देते कानून के डंडे से उसे उठाया और थाने के अंदर फेंक दिया, उसके शहर आने का सच उगलवाने के लिए। उनकी लाल खुफिया आंखों को बास लगी कि हो सकता है, यह सांप पाकिस्तान की शहर के खिलाफ एक साजिश हो? हो सकता है इसे पाकिस्तान ने शहर में जासूसी करने भेजा हो! पुलिस अब उससे पूछताछ करके सच उगलवा कर ही दम लेगी।