अर्थतंत्र की रीढ़ डेयरी फार्मिंग

प्रताप सिंह पटियाल

लेखक, बिलासपुर से हैं

पुरातन काल से ही देश में कृषि के साथ पशुपालन किसानों का पुश्तैनी व परंपरागत व्यवसाय रहा है। वर्तमान में देश के 70 प्रतिशत कृषक पशुपालन व्यवसाय से जुड़े हैं। दुग्ध उत्पादन व्यवसाय देश की कृषि अर्थ-व्यवस्था का मुख्य आधार स्तंभ तथा सकल कृषि उत्पाद का महत्त्वपूर्ण भागीदार है।

पशुपालन व्यवसाय में देश के किसानों का गहन अनुभव होने के कारण मौजूदा दौर में डेयरी फार्मिंग एक आकर्षक व सफल व्यवसाय बन चुका है। स्मरण रहे देश के करोड़ों किसानों व पशुपालकों की कड़ी मेहनत के दम पर भारत विश्व की सबसे बड़ी डेयरी अर्थ-व्यवस्था बन चुका है। देश के कृषि क्षेत्र की आय में डेयरी फार्मिंग का 25 प्रतिशत योगदान है। दुग्ध उत्पादक की 18.50 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ भारत विश्व का सबसे उत्पादक तथा उपभोक्ता होने की हैसियत रखता है। मगर प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता में 9773 ग्राम के साथ न्यूजीलैंड दुनिया भर के देशों में शीर्ष पर है।

दुनिया की सर्वाधिक पशु संपदा भी भारत में मौजूद है जिनमें सर्वाधिक आबादी गउओं की है यानी पशुपालन में भी देश शीर्ष पर है। पशुओं की चरागाहों के मामले में भारत दुनिया में तीसरे पायदान पर काबिज है, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में, धरातल पर देश के पशु चरांद उद्योगों तथा अतिक्रमण के गुलाम हो चुके हैं। चरागाहों को सहेजने तथा इनकी देखभाल में देश की सियासी नीतियां तथा व्यवस्था विफल रहीं, नतीजतन दुधारू पशुओं के चरने व टहलने की असुविधा के मद्देनजर पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होने से इनमें कई बीमारियों का इजाफा भी हुआ। भारत में दूध उत्पादन का औसत 3 लीटर प्रति पशु आंका गया है। दूध का यही औसत इजराइल में 36 लीटर तथा आस्ट्रेलिया में 16 लीटर प्रति पशु है।

भारत डेयरी क्षेत्र में आस्ट्रेलिया की कृषि प्रौद्योगिकी कंपनी ‘मूफार्म’ की सहायता ले रहा है ताकि देश प्रति पशु दूध उत्पादन के स्तर में भी विश्व के विकसित देशों में शामिल हो सके। मगर वर्तमान में पशुपालक मुर्राह तथा मेहसाणा के पालन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। अत्यधिक दूध उत्पादन क्षमता के चलते डेयरी व्यवसाय में ये दोनों नस्ल की भैंसें लाभदायक सिद्ध हो रही हैं। भारत में दुनिया के सबसे उन्नत देशी नस्ल के दुधारू पशु पाले जाते हैं, जिनके दूध की गुणवता हमेशा सर्वोपरि रही है। देश में भैंस प्रजाति की मान्यता प्राप्त 12 नस्लों में मुर्राह, नीलीरावी, सुरती, भदावरी तथा मेहसाणा मुख्य देशी नस्लों की भारी कीमतों की भैंसें हैं जिन्हें हिमाचल के निचले जिलों के पशुपालक पाल रहे हैं।

मगर भदावरी विश्व की एकमात्र उत्कृष्ट नस्ल की भैंस है जिसके दूध में अत्यधिक 8.5 प्रतिशत तक वसा मौजूद रहने से घी की मात्रा भी अधिक रहती है, इसीलिए भदावरी लंबे समय से हिमाचल के ग्रामीण पशुपालकों की पसंद रही है जो अपनी शारीरिक संरचना तथा पहाड़ के मौसम व भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सक्षम रहती है। जाहिर है यदि डेयरी व्यवसाय को लाभकारी बनाने में निरंतर प्रयास हों तो यकीनन महिला स्वावलंबन की मजबूती का जरिया बन सकता है।

बढ़ती आबादी में पौष्टिक आहार की कमी से जूझ रहे बचपन के परिप्रेक्ष्य शुद्ध डेयरी प्रोडक्ट बहुत महत्त्वपूर्ण हैं तो वहीं बेरोजगारी की मार झेल रहे युवा वर्ग के लिए डेयरी स्वरोजगार का मुफीद विकल्प तथा सशक्त माध्यम बन रहा है।