आरसीईपी में शामिल नहीं होगा भारत

पीएम मोदी ने लिया समझौते से बाहर रहने का फैसला

नई दिल्ली – भारत ने रीजनल कॉम्प्रिहैंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में शामिल न होने का फैसला लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आरसीईपी के तहत कोर हितों पर कोई समझौता नहीं होगा। भारत का कहना है कि आरसीईपी समझौता अपनी मूल मंशा को नहीं दर्शा रहा है और इसके नतीजे संतुलित और उचित नहीं हैं। भारत ने इस समझौते में कुछ नई मांगें रखी थीं। भारत का कहना था कि इस समझौते में चीन की प्रधानता नहीं होनी चाहिए, नहीं तो इससे भारत को व्यापारिक घाटा बढ़ेगा। रिपोर्ट के मुताबिक, वे दिन गए जब व्यापार के मुद्दों पर वैश्विक शक्तियों द्वारा भारत पर दबाव डाला जाता था। इस बार भारत ने फ्रंट फुट पर खेला और व्यापार घाटे पर भारत की चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता पर जोर दिया। भारतीय सेवाओं और निवेशों के लिए वैश्विक बाजार खोलने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया। भारत के इस रुख से गरीबों के हितों की रक्षा तो होगी ही, साथ ही इससे सर्विस सेक्टर को भी फायदा पहुंचेगा। आरसीईपी सम्मिट में पीएम मोदी ने कहा कि ऐसे फैसलों में हमारे किसान, व्यापारी, प्रोफेशनल्स और उद्योगों की भी बराबर भागीदारी होनी चाहिए। कामगार और ग्राहक दोनों ही समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, जो भारत को एक विशाल बाजार और क्रय शक्ति के मामले में देश को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाते हैं। गौर हो कि उद्योग जगत ने भी इस समझौते को लेकर चिंता जताई थी। उद्योग जगत का कहना था कि आयात शुल्क कम करने या खत्म करने से विदेश से भारी मात्रा में सामान भारत आएगा और इससे देश के घरेलू उद्योगों को काफी नुकसान होगा। अमूल ने भी डेयरी उद्योग को लेकर चिंता जाहिर की थी।

क्या है आरसीईपी

आरसीईपी एक ट्रेड एग्रीमेंट है, जो सदस्य देशों को एक-दूसरे के साथ व्यापार में सहूलियत प्रदान करता है। एग्रीमेंट के तहत सदस्य देशों को आयात और निर्यात पर लगने वाला टैक्स नहीं भरना पड़ता है या बहुत कम भरना पड़ता है। आरसीईपी में 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल हैं।